Wednesday, 27 April 2016

ट्रेन क्वाक पैगोडा , हनोई ,वियतनाम
ट्रेन क्वाक हनोई शहर में सबसे पुराना बौद्ध पैगोडा है मूल रूप से सम्राट लय नाम दे के समय छठी शताब्दी में निर्मित 1,450 साल पुराना है यह बौद्ध पैगोडा में सबसे बड़ा मरम्मत का काम 1815 में किया गया था जब इस के हाल के साथ रिसेप्शन हॉल और सैंक्चुअरी में मरमत की गयी थी इस पैगोडा का एक मुख्य भाग ट्रेन क्वाक बौद्ध मंदिर या पैगोडा है यह कुछ महत्वपूर्ण भिक्षु की अस्थियां रखी है पगोडा में से अधिकांश 17 वीं सदी में बनाया गया था, लेकिन सबसे बड़ा पैगोडा 2004 में पुनर्निर्माण किया गया था। यह पैगोडा लाल रंग का है क्योंकि चीनी और वियतनामी संस्कृति में लाल सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है

Thursday, 7 April 2016

प्राचीन बौद्ध गुफा देवगढ़, ललितपुर, उत्तर प्रदेश,
देवगढ़ गांव बेतवा नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है और यह स्थान देवगढ़ नाम के प्रसिद्द जैन तीर्थस्थल के पास है यह महावीर स्वामी वन्यजीव अभयारण्य में मौजूद है इस तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है इस तक पहुंचने के लिए आप को नाव का इस्तेमाल करना होगा यह प्रसिद्द देवगढ़, जैन तीर्थस्थल से 6 किलोमीटर दूर जंगल में स्थित है





बौद्ध धर्म की बाग की गुफाएँ



बाग गुफाएं, मध्य प्रदेश में धार जिले से 17 किलोमीटर दूर विन्ध्य पर्वत के दक्षिणी ढलान पर हैं । ।कुछ इतिहासकार इन्हें चौथी और पांचवी सदी में निर्मित मानते हैं । लेकीन अधिकतर 7 वीं सदी में बानी है । ये इंदौर और वडोदरा के बीच में बाघिनी नदी के किनारे हैं इन गुफाओं का संबंध बौद्ध धर्म के महायान मत से है दुर्गम स्थल पर स्थित होने के कारण सैर-सपाटा पसंद करने वाले लोग उस तरफ आसानी से रुख नहीं करते लेकिन दूर देश से आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए यह धरोहर एक जिज्ञासा का विषय हमेशा से बनी रहती है। बौद्ध धरम को दर्शाती हुई इन 9 गुफायों में से केवल 5 ही अभी बची हुई हैं

पहली गुफा 'गृह गुफा' कहलाती है। दूसरी गुफा 'पांडव गुफा' के नाम से प्रख्यात है। यह बाकी सब गुफाओं से अधिक बड़ी और अधिक सुरक्षित प्रतीत होती है। तीसरी गुफा का नाम 'हाथीखाना' है। इसमें बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए कोठरियाँ बनी हुई हैं। चौथी गुफा को 'रंगमहल' कहा जाता है। पाँचवी गुफा बौद्ध भिक्षुओं के एक स्थान पर बैठकर प्रवचन सुनने के लिए बनाई गई थी। पाँचवी और छठी गुफा आपस में मिली हुई हैं तथा इनके बीच का सभा मंडप 46 फुट वर्गाकार है।

सातवीं, आठवीं और नौवीं गुफाओं की हालत ठीक नहीं है और वे अवशेष मात्र ही नजर आती हैं। इन गुफाओं की एक विशेषता यह भी है कि इनके अंदर जाकर इतनी ठंडक का अहसास होता है जैसे आप किसी एयरकंडीशन कक्ष में आ गए हों। गुफाओं के अंदर कई जगह से पहाड़ों से प्राकृतिक तरीके से पानी भी रिसकर आता रहता है। ये गुफाएँ कई शताब्दी पुरानी हैं।



भित्ति चित्र अब संग्रहालय में :



बाग की गुफाओं के भित्ति चित्र कई शताब्दियों तक प्रकृति ने सहेजकर रखे थे। बाद में जंगलों की कटाई और गुफाओं में बाबाओं-महात्माओं द्वारा आग जलाने और धुँआ करने के बाद इन भित्ति चित्रों पर संकट मंडराने लगा। गुफाओं के अंदर चमगादड़ों ने भी अपने डेरे बना लिए थे। नमी और आर्द्रता की वजह से भी भित्ति चित्र प्रभावित हो रहे थे। तब इन्हें गुफा से हटाने का निर्णय लिया गया।

1982 से इन चित्रों को दीवारों व छतों से निकालने का कार्य शुरू हुआ। नमी से प्रभावित इन चित्रों को तेज धार वाले औजारों से काटकर दीवारों से अलग किया गया। निकाले गए चित्रों को मजबूती देने के उद्देश्य से फाइबर ग्लास एवं अन्य पदार्थों से माउंटिंग की गई। चित्रों को वापस मूल स्वरूप में लाने के लिए उनकी रासायनिक पदार्थों से फैंसिंग की गई।

बाद में इन चित्रों को गुफाओं के सामने निर्मित संग्रहालय में रखा गया। इन चित्रों को अब संग्रहालय में ही देखा जा सकता है। गुफाओं के भीतर अब सिर्फ मूर्तियाँ ही बची हैं जिनमें से अधिकांश बुद्ध की हैं या फिर बुद्ध के जीवनकाल से जुड़ी घटनाओं को बयान करती हैं।

कैसे जाएँ, कब जाएँ :
बाग की गुफाएँ बहुत सुंदर स्थान पर स्थित हैं। सामने बाग नदी बहती है और चारों ओर हरियाली तथा जंगल हैं। धार जिले में विंध्य श्रेणी के दक्षिणी ढाल पर, नर्मदा नदी की एक सहायक नदी बागवती के किनारे उसकी सतह से 150 फुट की ऊँचाई पर यह विश्व प्रसिद्ध गुफाएँ हैं। अगर आप स्वंय के वाहन से बाग जाना चाहते हैं तो उसमें काफी सहूलियत रहेगी। इंदौर से 65 किलोमीटर दूर है धार।

धार से 71 किलोमीटर की दूरी पर आदिवासी क्षेत्र टांडा है। यहाँ पहुँचने के बाद बाग कस्बा सिर्फ 20 किमी दूर रह जाता है। बाग पहुँचने के बाद 7 किमी का रास्ता तय करके इन गुफाओं तक पहुँचा जा सकता है। यहाँ जाने का सबसे अच्छा मौसम बारिश का है क्योंकि गुफाओं के सामने बहने वाली बाग नदी उस समय बहती है। यह मौसमी नदी है और गर्मियाँ आने तक सूख जाती है। नदी के सूखने से वहाँ का दृश्य थोड़ा अधूरा-अधूरा सा लगने लगता है।