Saturday 31 October 2015

मतली अलु विहार , अलुविहारे,श्रीलंका
मतली अलु विहार श्रीलंका के जिला के अलुविहारे शहर मौजूद एक विहार है। पहाड़ियों से घिरा, अलुविहारा गुफा विहार कैंडी शहर के दक्षिण में मातले -दांबुला सड़क पर 30 किलोमीटर दूर है। इस विहार का इतिहास 3 शताब्दी ईसा पूर्व में राजा देवनम्पियातिस्सा के शासनकाल के आस पास पता लगता है। यहा राजा ने दोगबा (स्तूप ) बनवया था और बोधि वृक्ष लगाया था। यह मतली अलु विहार ही वह स्थान है जहा बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को पहली बार पाली भाषा में ओला (ताड़) के पत्तों पर लिखा गया था यहा कुछ गुफाएं जहा भिक्षु निवास करते थे स्थित है और प्रदर्शनी भित्तिचित्रों इस विहार के निकट स्थित हैं।
1 शताब्दी ई.पू.,,श्रीलंका के राजा वलागम्बा के समय श्रीलंका में सुखा पड़ा जो 12 साल तक चला और श्रीलंका पर भारत के दक्षिण से आक्रमण हुआ जिस की वजह से राजा वलागम्बा को 14 सालो तक निर्वासित जीवन जिन पड़ा बाद में उन्होंने अपने शत्रु को हरा के अपना राज्य वापस ले लिया था ,12 साल के सूखे में बौद्ध भिक्षु मरने लगे जिस की वजह से उन्हें बौद्ध धर्म के श्रीलंका में खत्म होने का खतरा महसूस हुआ और उन्होंने धम्म के उपदेशो को ओला (ताड़) के पत्तों पर लिखा कर सुरक्षित किया ताकि बौद्ध धर्म खत्म न हो जाये इस मतली अलु विहार में ,

Friday 23 October 2015

माहियानगंना राजा माहविहार ,माहियानगंना शहर,श्रीलंका
माहियानगंना राजा माहविहार श्रीलंका के माहियानगंना शहर में एक प्राचीन बौद्ध विहार है। इस विहार के बारे में महावंश नाम के बौद्ध ग्रन्थ ,में भी मिलता है ,जिस में बताया गया है बुद्ध आपने ज्ञान प्राप्ति के 9 महीने में श्रीलंका आये थे और यहा पर रुके थे ऐसा कहा जाता है तक यहा यक्षों के राजा बुद्ध के प्रवचन सुनने के बाद ज्ञान की पहली अवस्था को प्रपात किया था और उन्होंने बुद्ध से उनके कुछ बाल प्राप्त किये थे ताकि वह उनकी पूजा कर सके (महावंश ग्रन्थ में लिखे अनुसार )
543 ईसा पूर्व में बुद्ध के निर्वाण के बाद, साराभु नामक एक बौद्ध भिक्षु बुद्ध की चिता की राख से बुद्ध की गर्दन की हड्डी का पवित्र अवशेष लेकर यहा आये और उसे स्तूप में स्थापित किया
महावंश ग्रन्थ
महावंश नाम का एक बौद्ध ग्रन्थ जो श्रीलंका के इत्तिहास के बारे में और बुद्ध धर्म के श्रीलंका में विकास के बारे में बताता है ,और तथागत के तीन बार लंका आगमन का, तीनों बौद्ध संगीतियों का,विजय के लंका जीतने का, देवानांप्रिय तिष्य के राज्यकाल में अशोकपुत्र महेंद्र के लंका आने का, मगध से भिन्न भिन्न देशों में बौद्ध धर्म प्रचारार्थ भिक्षुओं के जाने का तथा बोधि वृक्ष की शाखा सहित महेंद्र स्थविर की बहन अशोकपुत्री संघमित्रा के लंका आने का वर्णन है और श्रीलंका के राजाओ का इत्तिहास महावंस" पाँचवीं शताब्दी ई पू से चौथी शताब्दी ई तक लगभग साढ़े आठ सौ वर्षों का लेखा है।

Monday 12 October 2015

सेनानायके अरमाया स्तूप, पुत्तलम जिला ,श्रीलंका
सेनानायके अरमाया श्रीलंका के पुत्तलम जिले के मादामपे नाम के शहर में है ,यहा पर बुद्ध की 2500 वी जयंती के उपलक्ष्य में सम्बुद्ध जयंती स्तूप का निर्माण किया गया बुद्ध जयंती स्तूप ठोस ग्रेनाइट बना है और यह पूरी तरह मानव निर्मित है और इसे पूरा करने के लिए 10 साल लग गए है
यहा बुद्ध के बालो के अवशेष रखे है जिसे कहा जाता है बुद्ध ने ही दो भाइयों तपस्सु और भल्लुका को दिया था इस के अलावा इस स्तूप में में निहित अन्य पवित्र सामान है
स्वात घाटी के एक स्तूप से प्राप्त पवित्र बुद्ध के अवशेष
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-धर्मा कालवन स्तूप गांधार से प्राप्त पवित्र बुद्ध के अवशेष
-एक सोने की थाली में लिपटे बुद्ध की चिता से प्राप्त पवित्र राख के अवशेष,
-सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान आयोजित तीसरी बौद्ध परिषद में भाग लेने वाले मज्झिमा और कन्तिपुरा नाम के दो बौद्ध भिक्षु के पवित्र अवशेष
-कनिष्क अवधि के मीर पुर खास बौद्ध स्तूप से प्राप्त कुछ पवित्र बुद्ध के अवशेष
-दो पवित्र डिबियो में रखे पवित अवशेष
रिड़ी विहार, कुरुनेगला जिला,श्रीलंका

रिड़ी विहार या चांदी का विहार श्रीलंका के कुरुनेगला जिले के रिड़ीगमा गांव में , 2-शताब्दी ईसा पूर्व का थेरवाद बौद्ध विहार है,जिसे दुत्थागामनी के समय बनवाया गया था
दुत्थागामनी, प्राचीन श्रीलंका के अनुराधापुरा के की सिंहली राजा थे जिन्हे जाना जाता है चोला साम्राज्य के तमिल राजा एलारा को हराने के लिए ,(चोला साम्राज्य का उदय भारत के दक्षिण में हुआ और इन्होने जावा ,श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया में एक बड़ा साम्राज्य स्थापित किया )दुत्थागामनी इनका राज्य161 ईसा पूर्व से 137 ईसा पूर्व तक रहा ,अपनी एलारा पर जीत की ख़ुशी में उन्होंने रुवनवेलिसया के बड़े स्तूप का निर्माण करवाने का निश्चय किया जो उस समय दुनिया की तीसरा सबसे बड़ा कोई इमारत थी जिस के लिए उन्हें चांदी की जरूत थी ,उसी वक़्त कुछ व्यापारियों श्रीलंका के मध्य से देश की तत्कालीन राजधानी अनुराधापुरा के लिए जा रहे थे उन्होंने रिड़ीगमा क्षेत्र में पका हुआ कटहल देखा; और उसे काटा और वहाँ की प्रथा अनुसार उस कटहल का पहला भाग बौद्ध भिक्षुओ को दिया सबसे पहले चार भिक्षुओं उनकी इच्छा के अनुसार दिखाई दिए और उन्होंने दाना स्वीकार किया ,फिर चार भिक्षु और आ गए और उन्होंने भी दान स्वीाकर किया ,इनमेसे आखरी भिक्षु का नाम इंद्रगुप्त था ,दान लेने के बाद भिक्षुओं ने उन्हें चांदी की गुफा का पता दिया ,जिस का पता उन व्यापारियों ने अनुराधापुरा पहुंच कर राजा को दिया ,जिस से राजा को एक बड़े स्तूप में लगाने जितना चांदी मिल गए और इस लिए उस ने वहा एक विहार बनवाया इस विहार के आस पास करीब 25 गुफाएं जिस में कभी भिक्षु निवास किया करते थे
केलनिया राजा माहविहार,केलनिया श्रीलंका
श्रीलंका के मुख्य शहर से करीब 7 किलोमीटर दूर है केलनिया उपनगर यह पर है केलनिया राजामाहविहार ऐसा कहा जाता है की बुद्ध अपने ज्ञान प्राप्ति के 8 साल बाद अपने तीसरे और श्रीलंका के आखरी दौरे पर यहा ठहरे थे

Thursday 8 October 2015

नागदीपा पुराना विहार , जाफना , श्रीलंका
नागदीपा पुराना विहार श्रीलंका के जाफना जिले में स्थित एक प्राचीन बौद्ध विहार है। यह श्रीलंका के 16 पवित्र स्थानो में भी गिना जाता है जो सोलोसमस्थाना कहे जाते है। समकालीन इतिहास के अनुसार,गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पाचवे साल में इस स्थान दौरा किया था दो विरोधी नागा राजा चुलोदरा और महोदरा का विवाद सुलझाने के लिए

सिथुलपव्वा राजा माहविहार, हंबनटोटा, श्रीलंका
सिथुलपव्वा राजा माह विहार दक्षिण पूर्वी श्रीलंका के हंबनटोटा जिला, में स्थित एक प्राचीन बौद्ध मठ है।यह विहार राजा कवनतिस्सा द्वारा 2 शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित किया गया है । [
सिथुलपव्वा राजा माह विहार 2200 वर्षों पुराना बौद्ध विहार और बौद्ध भिक्षु के लिए बौद्ध शिक्षा का एक केंद्र है यहाँ पर अनुराधापुरा युग के पत्थर पर तराशे गए बुद्ध के चित्र, बोधिसत्व के चित्र, और भी कई अवशेष मठ परिसर भर में फैले हुए हैं।

Tuesday 6 October 2015

तिस्सा महारामा राजा महाविहार,हंबनटोटा ,श्रीलंका

तिस्सा महारामा राजा महाविहार तिस्सा महारामा,(हंबनटोटा के पास ) श्रीलंका में एक बौद्ध विहार है।
यह रुहुना के राजा कावन् तिस्सा (दक्षिणी श्रीलंका)के द्वारा 2 शताब्दी ईसा पूर्व में बनाया गया था। भगवान बुद्ध ने स्वयं 500 अरिहन्त के साथ ध्यान कर इस स्थान पर कुछ समय बिताया था। तिस्सा महारामा दोगबा जो तिस्सा महारामा राजा महाविहार के परिसर में स्थित है श्रीलंका में सबसे बड़ा स्तूप में से एक है




बौद्ध स्थल रानीगाट,खैबर पख्तूनख्वा प्रांत,पाकिस्तान
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बुनेर जिले में स्थित बौद्ध स्थल है रानीगाट रानी हिदी का शब्द है और गाट पश्तो जिसका मतलब है बड़ा पत्थर। पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस स्थल को जिले के दूरदराज इलाकों से भी साफ देखा जा सकता है।
पुरातत्वविदों के मुताबिक, रानीघाट सदियों तक बौद्ध कला व संस्कृति का केंद्र रहा था। पाकिस्तान के प्रमुख अखबार "डान" में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, प्राचीन समय में जापान से कई लोग यहां बौद्ध धर्म की शिक्षा लेने आते थे।
पहली से छठी शताब्दी के कालखंड से संबंध रखने वाले रानीगाट को पुरावशेष अधिनियम 1975 के तहत संरक्षित किया गया है और तीस जनवरी, 2004 को इसे वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल किया गया था।
बौद्ध गांधार सभ्यता के मूल का एक हिस्सा होने के कारण जापानी शोध संस्थानों की ओर से इसकी मरम्मत के लिए वित्तीय सहायता भी मिलती रहती है। पाकिस्तान सरकार ने गांधार सभ्यता के उद्गम स्थल की एक प्रमुख बौद्ध विरासत स्थल के रूप में रानीगाट का प्रचार किया गया था।
लेकिन पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियों के चलते पयर्टकों का यहां आना लगातार कम हुआ हैजिस वजह से इसे सरकार की उपेक्षा का सामना करना पड़ा है और लंबे समय से उपेक्षित होने की वजह से नष्ट होने की कगार पर है।। रानीगाट चार किलोमीटर के दायरे में फैला गांधार क्षेत्र का सबसे बड़ा पर्यटन स्थल है।

Thursday 1 October 2015

गंगारमैया बौद्ध विहार , कोलंबो, श्रीलंका
गंगारमैया बौद्ध विहार , कोलंबो, श्रीलंका में सबसे महत्वपूर्ण विहारों में से एक है जो बीरा झील के किनारे है और इसे डॉन बेस्टाइन्((डी सिल्वा जयसूर्या गुनेवर्धने , मुदलियार) जो एक प्रसिद्ध 19 वीं सदी के शिपिंग व्यापारी थे दवरा बनवाया गया था
इस विहार की वास्तुकला में श्रीलंकाई, थाई, भारतीय और चीनी स्थापत्य कला मिश्रण है
बेल्लानविला राजमाहा विहार , कोलम्बो , ,श्रीलंका
बेल्लानविला राजमाहा विहार कोलम्बो के पास बेल्लानविलामें स्थित एक बौद्ध विहार , है। कोलंबो शहर में 12 किमी दक्षिण में है
यहा विहार और बोधि पेड़ है ,और यह विहार काफी पुराना मन जाता है


ऐतिहासिक रिकॉर्ड पता चलता है कि यहा लगा बोधि पेड़ ( वह पेड़ या पेड़ की शाखा जिस के निचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था ) अनुराधापुरा का जया श्री महाबोधि पेड़ की उन32 पौधे में से एक है जिसे 2000 से अधिक साल पहले पुरे श्रीलंका में लगाया गया था यह अनुराधापुरा का जया श्री महाबोधि पेड़ सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा द्वारा श्रीलंका में तब लाया गया जब वे बौद्ध धर्म का प्रचार करने श्रीलंका आयी थी।
15 वीं सदी में, यह स्थान पराक्रमबाहुVI (1412-1476) के शासनकाल में उनके राज्य की राजधानी भी रहा
इस पवित्र स्थान को देश के तटीय क्षेत्रों के पुर्तगाली आक्रमण के बाद छोड़ दिया गया था और यह स्थान इतिहास में गुम हो गया था । और1850 में यह थेन्गोदगेऩ्दरा हामुदुरुवो नाम के साहसी भिक्षु द्वारा फिर से खोज गया।