Wednesday 22 April 2015

टाइगर'स नेस्ट  बुद्धिस्ट मोनेस्ट्री ,भूटान 

टाइगर'स नेस्ट  बुद्धिस्ट भूटान  में  पारो वैली में एक सीधे पहाड़ की चोटी पर स्थित  है। और यह मोनेस्ट्री समुद्र तल से3,000 मीटर ऊपर है ,यह मोनेस्ट्री को पहली बार 1692 में बनाया गया था,कहा ऐसा जाता है यह वह स्थान पर बानी है जहा बौद्ध गुरु पद्मसंभव ने 8 वीं सदी में तीन साल, तीन महीने, तीन सप्ताह, तीन दिन तक ध्यान किया था और वही स्थान पर यह मोनेस्ट्री है। भूटान में यह मानयता है की हर  भूटानी व्यक्ति को  कम से कम एक बार इस स्थान पर आना ही चाहिए ,बौद्ध गुरु पद्मसंभव को ही भूटान में  बौद्ध धर्म के प्रसार का श्रेय जाता है 

Thursday 16 April 2015

शेरगोले मोनास्ट्री

शेरगोले मोनास्ट्री एक गुफा नुमा मोनेस्ट्री है जो लद्दाख के कारगिल जिले में मौजूद है। जहा बहुत सारे भित्तिचित्रों है। यह मोनास्ट्री भूरे रंग के ग्रेनाइट के बीच में बानी है जो जिस के लिए यह मोनास्ट्री मश्हूर है।
स्तकना मोनेस्ट्री लेह
स्तकना मठ स्तकना (टाइगर नाक) की आकार की एक पहाड़ी पर स्थापित एक बौद्ध मठ है यह लेह के 45 किमी दक्षिण में है। जहाँ लेह शहर से आसानी से पहुँचा जा सकता है । इसका निर्माण लगभग 1580 में महान विद्वान संत चोसजे जम्यांग पालकर ने किया था।
ज़्होंगखुल गोम्पा या मठ ,लद्दाख
ज़्होंगखुल गोम्पा या मठ उत्तरी भारत में जम्मू-कश्मीर में जांस्कर की स्टोड घाटी में स्थित है।, यह शनि मठ की तरह तिब्बती बौद्ध धर्म के दृक्पा स्कूल के अंतर्गत आता है।यह श्रीनगर की राजधानी से 190 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ज़्होंगखुल मठ बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ है और यह मठ घोसले की तरह चट्टान के बीच में स्थित है।
इसकी मठ की स्थापना बिहार में प्रसिद्ध विक्रमशिला विश्वविद्यालय से मशहूर भारतीय बौद्ध योगी, अध्यात्मवादी और साधु कौन था नरोपा (956-1041 ), द्वारा मानी जाती है । ऐसा कहा जाता है की मठ के पास स्थित दो गुफाओ में से एक में वो ध्यान किया करते थे और वही यह मठ बना है।
अलची मोनेस्ट्री लद्दाख 
सिंधु नदी के ठीक किनारे पर स्थित यह मोनेस्ट्री लद्दाख में सबसे पुरानी और सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस मठ की दीवारो पर लघु आकर की भगवान बुद्ध की हज़ारो पैन्टिन्ग बानी है ,अब यह एक सक्रिय धार्मिक केंद्र नहीं है, और इस मठ की देखरेख लिकिर मठ से भिक्षुओं द्वारा की जाती है ।
नामग्याल तेसमो मठ ,लद्दाख
नामग्याल तेसमो मठ या नामग्याल तेसमो गोम्पा लद्दाख की लेह जिले में एक बौद्ध मठ है । इसे लद्दाख के राजा ताशी नामग्याल द्वारा 1430 में स्थापित किया गया था , यहाँ मैत्रेय बुद्ध की तीन मंजिला उच्च सोने की मूर्ति है और प्राचीन पांडुलिपियों और भित्तिचित्रों भी मौजूद है।

Saturday 11 April 2015

दिस्किट बौद्ध मठ, लद्दाख
दिस्किट बौद्ध मठ लद्दाख के नुब्रा घाटी में सबसे पुराना और सबसे बड़ा बौद्ध मठ (गोम्पा) है।यह तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग्पा (पीली टोपी वाला) संप्रदाय के अंतर्गत आता है।यह 14 वीं सदी में बनाया गया था। यह मैत्री बुद्ध की एक बड़ी सी मूर्ति भी है जो सब के आकर्षण का केंद्र है

माथो बौद्ध मठ, लद्दाख
माथो मठ, इंडस नदी घाटी पर, शहर से 16 किमी की दूरी पर स्थित है। इसका इतिहास 500 साल पुराना है, इसे ‘सक्या मठ प्रतिष्ठान, लद्दाख के द्वारा प्रतिबंधित किया जाता है। इस मठ का निर्माण 16 वीं शताब्दी में ‘लामा दुग्पा दोर्जे, के द्वारा किया गया था। चार सौ साल पुराने ‘थांगका’ या सिल्क से बनाई जाने वाली धार्मिक तिब्बती पेंटिंग और इसके साथ जुड़ा त्योहार ‘माथो नागरंग’ पर्यटकों के बीच लोकप्रिय हैं।
आगंतुक मठ के अंदर बनाए गए संग्रहालय में ‘थांगकों’ के एक प्राचीन संग्रह को देख सकते हैं, जो मंडलों के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। मठ में रखा गया मंदिर रक्षक देवताओं का प्रतीक है। यह भी माना जाता है कि यह जगह बौद्ध ज्ञान और विचारधाराओं को सीखने और समझने के लिए आदर्श है।
इस मठ में मार्च के प्रथमार्ध में मनाए जाने वाले त्यौहार ‘माथो नागरंग’ के दौरान पवित्र अनुष्ठान और नृत्य प्रदर्शित किए जाते हैं। इस स्थान तक पहुँचने के लिए यात्री आसानी से कार या टैक्सी प्राप्त कर सकते हैं।
कर्मा दुप्ग्युद चोएलिङ्ग बौद्ध मठ, लेह
कर्मा दुप्ग्युद चोएलिङ्ग मठ की देख रेख तिब्बती बौद्ध धर्म के एक संप्रदाय करमापा द्वारा की जाती है। कर्मापा का शाब्दिक अर्थ है 'जो बुद्ध के गतिविधियों का पालन करे'। यह मठ तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रोत्साहन और उनकी संस्कृति के संरक्षण के लिए काम करता है। वर्तमान में वहाँ 17करमापा हैं, उनमें से प्रत्येक करमापा बौद्ध धर्म के बारे में जागरूकता पैदा करने के प्रति समर्पित हैं। लोगों की एक बड़ी संख्या करमापा प्रशिक्षण केंद्र में करमापा की शिक्षाओं को समझने के लिए शामिल होते हैं।
शांति स्तूप, लेह
लेह के चंग्स्पा के कृषि उपनगर के ऊपर, लेह से 5 किलोमीटर की दूरी पर, लेह पैलेस के पास स्थित, शांति मठ सबसे अलग किस्म का मठ है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, इसका निर्माण 1983 में परमपावन दलाई लामा के आदेश पर शांति संप्रदाय के जापानी बौद्धों ने कराया था। दलाई लामा ने आदेश देते हुए कहा था कि ऐसा करने से भगवान बुद्ध के सिद्धांतों को जन साधारण तक आसानी से पहुँचाया जा सकता है। इस स्तूप का निर्माण 1991 में पूरा हुआ और इसका उद्घाटन 14 वें दलाई लामा तेनजिंग ग्यात्सो ने किया था। इस स्थान तक जीप माध्यम से पहुँचा जा सकता है और टैक्सियों के। सफेद रंग के पत्थर से निर्मित यह मठ अत्यंत मोहक है तथा रंग-बिरंगी कलाकृतियों व संदेशों से ओतप्रोत, शांति, सद्भाव और मित्रता की शिक्षा देता है।
थिकसे गोम्पा या थिकसे बौद्ध मठ ,लेह
लेह से 25 कि.मी. की दूरी पर है अत्यंत सुंदर थिकसे मठ। थिकसे मठ के ऊपर से देखने पर सिंधु घाटी के सुंदर नजारे को देखा जा सकता है। इसके ऊपरी भाग में गुरु रिनपोच या लामा के लिए स्थान हैं। दीवारें अत्यंत सुंदर चित्रों और कलाकृतियों से मढ़ी हैं। लखंग और दुखंग का भी अन्य बौद्ध गुरुओं-जैसे बोद्धिसत्व, मैत्रेय, अवलोकेत्श्वर की तरह स्थान है। स्थानीय भाषा में थिकसे का अर्थ है पीला। यह गोम्फा पीले रंग का होने के कारण थिकसे गोम्पा कहलाता है। 12 हज़ार फीट पर पहाड़ी के ऊपर बनी हुई यह गोम्फा तिब्बती वास्तुकला का सुंदर उदाहरण है। इस मठ को 15 वीं शती में शेर्ब जंगपो के भतीजे पल्दन शेराब ने बनवाया था। 12 मंजिलों वाले इस मठ में कई भवन, मंदिर और भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ है। प्रमुख मन्दिर में बुद्ध की 15 मीटर ऊँची काँसे की मूर्ति को हर मंजिल से देखा जा सकता है। दीवारों पर बनी कलाकारी अद्भुत है और बुद्ध भगवान के मुकुट की चित्रकला अनूठी! यह मठ लगभग 10 छोटे बौद्ध मठों की देखभाल करता है.17वीं और 18वीं शताब्दी के 12वें तिब्बती गुरु की स्मृति में कार्यक्रम इसी मठ में आयोजित होते हैं। इसके पास ही शेय गोम्पा व माथो गोम्पा है।
स्पीतुक गोम्पा या स्पीतुक बौद्ध मठ ,लेह
लेह हवाई-अड्डे से कुछ ही दूरी पर है, स्पीतुक मठ। इस मठ का निर्माण 11 वीं शताब्दी में ओद डी द्वारा करवाया गया था। यह बौद्धों के साथ हिन्दुओं व सिखों की आस्था का भी केंद्र है। इस मठ के ऊपरी भाग में भगवती तारा का मंदिर है। मूर्ति सालभर कपड़े से ढँकी रहती है। सिर्फ जनवरी में दो दिन आवरण हटता है।
माना जाता है कि तारा की आराधना भगवान बुद्ध करते थे। हिन्दुओं के लिए सिद्धपीठ काली का मंदिर है। लद्दाखी जनता के लिए यह देवी पालदन लामो है। यहाँ विभिन्न आकार-प्रकार वाले मठों की शृंखलाएँ हैं। स्पीतुक मठ दलाईलामा के लिए विशेष रूप से आरक्षित किया गया है। यहाँ आने पर वह इसी मठ में ठहरते हैं। पर्यटक यहाँ वज्र-भैरव की एक विशाल मूर्ति भी देख सकते हैं। इसके अतिरिक्त 11 सिर वाली अवलोकतेश्वर तथा बुद्ध की एक सुंदर प्रतिमा भी यहाँ स्थापित है। यहाँ एक काली माँ का मंदिर भी है। कुछ हिंदू यहाँ मंदिर के आकर्षण से आते हैं।
हेमिस गोम्पा या हेमिस बौद्ध मठ ,लद्दाख
जम्मू कश्मीर में लेह के दक्षिण-पूर्व दिशा में शहर से 45 कि.मी. की दूरी पर, हेमिस मठ स्थित है। इसे लद्दाख के सुंदर मठों के रूप में जाना जाता है। मठ में दो-द्वार हैं, जहाँ से मध्य भाग तक पहुँचा जा सकता है। छठे तिब्बती गुरु की याद में चलने वाले कार्यक्रम के 10 वें दिन 'मास्क नृत्य समारोह' इसी मठ में आयोजित किया जाता है। इस मठ का निर्माण 1630 ई। में स्टेग्संग रास्पा नंवाग ग्यात्सो ने करवाया था। 1972 में राजा सेंज नामपार ग्वालवा ने मठ का पुर्ननिर्माण करवाया। यह धार्मिक विद्यालय धर्म की शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य स्थापित किया गया था। तिब्बती स्थापत्य शैली में बना यह मठ बौद्ध जीवन और संस्कृति को प्रदर्शित करता है। मठ के हर कोने-कोने में कुछ न कुछ विशिष्ट है और कई तीर्थ भी हैं लेकिन पूरे मठ का आकर्षण बिंदु ताँबे की धातु में ढली भगवान बुद्ध की प्रतिमा है। मठ की दीवारों पर लगी हुई कलाकृतियाँ वर्द्धन भगवान के जीवन को चित्रित करती हैं, वर्द्धन भगवान बौद्ध धर्म में चारों भागों के ईश्वर माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ जीवन के चक्र को दर्शाते कालचक्र को भी स्थान मिला है। मठ के दो मुख्य भाग है जिन्हे दुखांग और शोंगखांग कहा जाता है। वर्तमान में इस मठ की देखरेख द्रुकपा संप्रदाय लोग किया करते है, यह लोग बौद्ध धर्म के ही अनुयायी हुआ करते हैं। जून के अंत में या जुलाई के प्रारंभ में यहाँ भारी सख्ंया में लोग आते हैं और गुरू पद्मसंभव के लिए वार्षिक उत्सव का आयोजन करते हैं। गुरू पद्मसंभव तिब्बती बौद्ध धर्म के परिचित व्यक्ति हैं

Monday 6 April 2015

शेय गोम्पा या शेय बौद्ध मठ ,लेह
लेह से 12 कि.मी. की दूरी पर शेय नामक स्थान पर शेय मठ या शेय गोम्पा स्थापित है। कहा जाता है कि 1633 में राजा डेल्डन नामग्याल ने इसकी नींव रखी थी। उनके पिता संजय नामग्याल के सम्मान में इसे 'लाछेन पाल्जीगों' नाम से भी जाना जाता है के।
हालाँकि वर्तमान में यह जर्जर हालत में है, पर पहले 'शेय' को लद्दाख की ग्रीष्मकालीन राजधानी माना जाता था। शेय सातवें तिब्बत गुरु की याद में दस दिन तक चलने वाले कार्यक्रमों का मुख्य स्थान है। मठ से लगा एक विशाल वृक्ष है, जिसमें सोने का पानी चढ़ी, ताँबे की भीमकाय बुद्ध प्रतिमा स्थापित है। इसे लद्दाख क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति माना जाता है। महल के नीचे एक भाग में बुद्ध की एक और प्रतिमा स्थापित है। शेय का अन्य भाग छोटे मठों (कोरटन) से घिरा हुआ है।
थांग युंग बौद्ध मठ हिमाचल प्रदेश
यह बौद्ध मठ हिमाचल के स्पीति के पश्चिमी भाग में कज़ा शहर से ह 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है,थांग युंग बौद्ध मठ का निर्माण 14 वीं सदी की पहले भाग में किया गया था।

Saturday 4 April 2015

गन्धोला बौद्ध मठ हिमाचल प्रदेश
गन्धोला बौद्ध मठ हिमाचल के मनाली रोड पर केलांग के लाहौल से 18 किलोमीटर पूर्व पड़ता है। यह चंद्रा और भागा नदियों के पवित्र संगम पर तुपचिलिंग गांव के ऊपर एक पहाड़ी पर स्थित है इसे 8 वीं सदी में बौद्ध गुरु रिनपोछे द्वारा बनाया गया था पर शायद यह मठ उस से पहले का है। शायद पहली सदी के आस -पास की क्यों की1857 में ब्रिटिश मेजर हे ने यहा पर पहली सदी का तांबे से बना कटोरा मिला था यो यहा उस समय बौद्ध भिक्षु के मौजूद होने का प्रमाण देता है.
ला - लुंग बौद्ध मठ, हिमाचल प्रदेश
इस मठ लालुन गांव में लगभग 3658 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है,जो प्रसिद्ध धनकर बौद्ध मठ से 2घंटे की दूरी पर है यहाँ के लोग ऐसा बताते है की रिनचेन ज़ैंगपो ने इस बौद्ध को बनवाया था जो एक महान बौद्ध आचार्य थे ,और यह भी बताया जाता है यह बौद्ध मठ रातोरात बन के तैयार हो गया था ,जब आचार्य रिनचेन ज़ैंगपो ने यहा एक पेड लगाया था,जिसे आज भी इस बौद्ध मठ में देखा जा सकता है ,यह हिमाचल में मौजूद सबसे पुराने बौद्ध मठो में से एक है।
क्‍ये बौद्ध मठ ,हिमाचल प्रदेश
क्‍ये मठ काज़ा के उत्तर में 12 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है और यह हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्‍पीति की पश्चिमी आबादी के साथ जुड़ा है। यह घाटी का सबसे पुराना और सबसे बड़ा मठ है तथा ये गांव के ऊपर (4116 मीटर) पर स्थित है। यहां महात्‍मा बुद्ध के सुंदर शिला लेख और चित्र रखे गए हैं तथा साथ ही अन्‍य देवी देवताओं के चित्र भी हैं। यहां लामा नृत्‍य, गीत गायन और नाटकों में पाइपों तथा सींगों का इस्‍तेमाल करते हैं। अनेक लामा यहां धार्मिक प्रशिक्षण प्राप्‍त करते हैं। यहां उच्‍च सौंदर्य मूल्‍य की पुस्‍तकें तथा भित्ति चित्र हैं। यह मठ विहार वास्‍तुकला का असाधारण उदाहरण है, जो चीनी प्रभाव के अनुसार 14वीं शताब्‍दी के दौरान विकसित हुई थी। मंगोलों ने 17वीं शताब्‍दी के मध्‍य में आकर इस मठ को नष्‍ट कर दिया। तब 19वीं शताब्‍दी में इस पर तीन बार और भयानक आक्रमण किए गए। विनाश और दोबारा सुधारने की इस लंबी प्रक्रिया के परिणाम स्‍वरूप यह एक डिब्‍बे के समान टेढ़ी मेढ़ी संरचना के रूप में है और यह संकुल एक रक्षात्‍मक किले की तरह दिखाई देता है।
मकलोडगंज (दलाईलामा का निवास स्थान ),हिमाचल प्रदेश
कांगड़ा घाटी में हिमालय की धौलाधार पहाडि़यों पर बसा हुआ एक और टूरिस्ट डेस्टिनेशन है धर्मशाला । साल 1960 में जब धर्मशाला तिब्बती गुरू दलाई लामा का अस्थाई निवास बना तब से ये जगह बौद धर्म के अनुयायियों के बीच काफी लोकप्रिय हो गई। मिनी ल्हासा कहे जाने वाला धर्मशाला दो हिस्सों में बंटा हुआ है। पहला लोअर धर्मशाला व्यवसायिक केंद्र है और दूसरा अपर धर्मशाला जिसे मैक्लाडगंज भी कहते हैं। दोनों के बीच की दूरी करीब 9 किलोमीटर है।
अपर धर्मशाला यानि कि मैक्लाडगंज को संस्कृति का संगम भी कहा जा सकता है क्योंकि जब चीन ने तिब्बत पर अटैक किया था तब धर्म गुरू दलाई लामा तिब्बत से यहां पर आ गए थे और अब इस जगह से ही तिब्बत की गतिविधियां चलाई जाती है जिसकी वजह से ही इसे मिनी ल्हासा भी कहा जाता है।
नाको बौद्ध मठ ,हिमाचल प्रदेश
नाको बौद्ध मठ हिमाचल के किन्नौर जिले में है और इस महान बौद्ध आचार्य रिंचेन ज़ांग्पो द्वारा 11 शताब्दी बनाया गया था। नाको बौद्ध मठ भारत -चीन सीमा पर स्थित है और इस की उचाई समुद्र तल से 3,660 मीटर (12,010 फीट) है यह पर प्रसिद्ध नाको झील भी है।