Saturday 28 March 2015

धनकर बौद्ध मठ हिमाचल प्रदेश
धनकर बौद्ध मठ धनकर गांव में है जो कि हिमाचल के स्पीति में समुद्र तल से 3890 मीटर की उंचाई पर स्थित है । यह जगह ताबो और काजा दो प्रसिद्ध जगहो के बीच में भी है । स्पीति और पिन नदी के संगम पर स्थित ये जगह दुनिया में बौद्ध धर्म के भी और ऐतिहासिक विरासतो में भी स्थान रखती है
यह जगह प्राचीन काल का इतिहास आंखो के सामने खोलकर रख देती है । 1000 फुट उंची एक ढांग पर बनाया गया और दो नदियो के संगम पर स्थित ये किसी भी बौद्ध मठ के लिये आदर्श जगह मानी जाती है । ढांग जो कि हमारे यहां पर देशी भाषा में बोला जाता है यानि की पहाड का एक छोटी सा भाग और कर या कार का मतलब किला कहा जाता है इसीलिये इसका नाम धनकर जो कि अब अपभ्रंश में हो गया है पडा ।
यहां से स्पीति और पिन दोनो नदियो का अदभुत दृश्य दिखायी देता है । गोम्पा के नीचे गांव बसा हुआ है । गोम्पा और किला आपस में जुडे हुए थे । हालांकि लगातार होते वायु एवं जल के क्षरण के कारण अब ये विलुप्त होने की कगार पर खडे हैं क्योंकि ये जगह लगातार गिर रही है



परिहासपुर ( उल्लास का नगर),बारामूला, कश्मीर
आजकल के शादीपुर के पास ही परिहासपुर नगर था। परिहासपुर श्रीनगर से 26 किलोमीटर की दूरी पर बारामूला के पास स्थित है इसका मतलब होता है परिहासपुर ( उल्लास का नगर)। ललितादित्य कर्कोटक वंश के राजा जिन का शासन 695 ईस्वी और 731 ईस्वी के बीच था ,उसने इस नगर को बसाया था।यहा कई मंदिर और बौद्ध विहार, चैत्य और स्तूप पाये गए है
यहा की सबसे आमूल्य कृति थी मुक्तेश्वर शिव मंदिर की मुख्य प्रतिमा 84000 तोले स्वर्ण से निर्मित थी। यहाँ का प्रमुतम मंदिर विष्णु जी को समर्पित था।

Monday 23 March 2015

हारवन बौद्ध स्तूप ,श्रीनगर, कश्मीर

यह जगह श्रीनगर से 12 किलोमीटर उत्तर पूर्व दिशा में मौजूद है 

इस विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्थल की खोज सर अर्ल स्टेन ने की थी। यहां चौथी शताब्दी में तीसरा बौद्ध सम्मेलन आयोजित हुआ था यह स्तूप कुषाण काल का है । नब्बे कनाल में फैले इस बौद्ध स्थल को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है और इसकी देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) कर रहा है। इस जगह की खुदाई के दौरान यहां बौद्ध स्तूप, उस जमाने के घर जिन पर चित्रकारी कश्मीर में उस समय की कलाकारी को बयान करती है, बरामद हुए थे। इस स्थल के मिले कुछ अवशेष एएसआई ने म्यूजियम में रखे हैं, तो कुछ विश्व के अन्य म्यूजियम में संरक्षित हैं

मिन्हद्रोहलिंग मोनास्ट्री ,देहरादून,उत्तराखण्ड

मिन्हद्रोहलिंग मोनास्ट्री को 1676 में बनाया गया था यह न्यिन्गमा बौद्ध धर्म से संबंधित मोनास्ट्री है

तकत्सांग मठ (बाघ का मांद),,, तवांग,अरुणाचल प्रदेश ,भारत

तवांग शहर से करीब 45 किमी दूर स्थित तकत्सांग मठ के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में किया गया था। यह मठ एक छोटी सी पहाड़ी के एक टीले पर स्थित है और हरे-भरे जंगलों से घिरा हुआ है। यहां आने वाले पर्यटकों के पास एक विकल्प यह भी रहता है कि वे उस स्थान की तीर्थयात्र भी कर सकते हैं, जहां गुरू पद्मासंभव ने तपस्या की थी। यहां का शांत और निर्मल माहौल मन को सुकून पहुंचाने वाला होता है
गोरसम चोरटेन,, तवांग,अरुणाचल प्रदेश ,भारत
यह एक स्तूप है, जो तवांग कस्बे से 90 किमी दूर है। खास बात यह है कि यह इस क्षेत्र का सबसे बड़ा स्तूप है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तूप का निर्माण 12वीं शताब्दी के आरंभ में एक मोनपा संत लामा प्राधार द्वारा किया गया था। यह एक अर्ध-वृत्ताकार गुंबदनुमा संरचना है, जिसका ऊपरी हिस्सा नुकीला है। यह तीन चबूतरे वाले स्तंभ पर टिका हुआ है। इस स्तूप के चार लघु रूप को तल के सबसे निचले चबूतरे के चारों कोणो पर स्थापित किया गया है। स्तूप तक एक फुटपाथ भी बनाया गया है, जिससे तीर्थ यात्री प्रार्थना करने के लिए पहुंचते हैं।
उर्गेलिंग मठ, तवांग,अरुणाचल प्रदेश ,भारत

तवांग के प्रचीन मठों में से एक उर्गेलिंग मठ तवांग शहर से 3 किमी दूर स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि इसका अस्तित्व 14वीं शताब्दी से है। इस मठ का निर्माण उर्गेन संगपो द्वारा किया गया था और यह भी माना जाता है कि यह मठ उनके द्वारा बनवाए गए पहले तीन मठों में एक है। एक मान्यता यह भी है कि 1683 में जन्मे छठे दलाई लामा त्सांगग्यांग ग्यामत्सो का जन्म स्थल भी है। वह लामा ताशी तेंजिन के बेटे और तेर्टन परमालिंगपा के वंश के थे
बोमडिला मठ अरुणाचल प्रदेश ,भारत

बोमडिला मठ अरुणाचल प्रदेश राज्य में स्थित है जो अरुणाचल प्रदेश के बोमडिला शहर में है 2 , 700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बोमडिला वेस्ट कमेंग जिले का हेडक्वॉर्टर है यहा है यही है बोमडिला मठ जिसे वर्ष 1965 में इसे 1965-66 में त्सोना गोंटसे रिनपोछे के 12वें अवतार द्वारा बनवाया गया था

मुख्य गोम्पा की तीन डिवीज़नें हैं- लोअर गोम्पा, मध्य गोम्पा और ऊपरी गोम्पा। ऊपरी गोम्पा को मुख्य मठ माना जाता है।

लोअर गोम्पा तिब्बती वास्तुकला की समृद्धि को दर्शाते हुए मुख्य बाज़ार के अंत में स्थित है। वहीं मध्य गोम्पा मुख्य बाज़ार से 2 कि.मी. दूर है। लोअर गोम्पा के अंदर एक विशाल प्रार्थना कक्ष भी है। लोगों की आम धारणा है कि यहाँ घंटी बजाने से मनोकामनाएं पूरी होती है।

मध्य गोम्पा में एक ब्लू चिकित्सक बुद्ध है जो चिकित्सा का भगवान भी कहा जाता है क्योंकि स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि यह रोगों का इलाज करता है। तीनों गोम्पा में से मध्य गोम्पा सबसे पुराना है। लोअर गोम्पा और मध्य गोम्पा के अलावा जी.आर.एल मठ में ऊपरी गोम्पा भी है जो मठ का प्रमुख भाग है।

तवांग मोनेस्ट्री, अरुणाचल प्रदेश,भारत
तवांग मठ अरुणाचल प्रदेश राज्य में स्थित है यह यह बोमडिला से लगभग 183 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह बौद्ध मठ समुन्द्र से लगभग 10,000 फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ी की चोटी पर खड़ा है। यह भारत के सबसे बड़े बौद्ध मठो में एक है और इस मठ को 6 वे दलाई लामा त्सांग्यांग ग्यात्सो के जन्म स्थान होने का गौरव प्राप्त है यह मठ वर्ष 1860-61में बनाया गया था

Thursday 19 March 2015

सांगो-चोलिंग' मोनास्ट्री सिक्किम ,भारत
सिक्किम का दूसरा सबसे पुराना मठ 'सांगो-चोलिंग' है. ये सिक्किम के महत्‍वपूर्ण मठों में से एक है. इस मठ में एक छोटा सा कब्रिस्‍तान भी है. मठ के दीवारों पर बहुत ही सुंदर चित्रकारी की गई है.
टिसुक ला खंग मोनास्ट्री सिक्किम ,भारत
यहां बौद्ध धर्म से संबंधित प्राचीन ग्रंथों का सुंदर संग्रह है। यहां का भवन भी काफी सुंदर है। इस भवन की दीवारों पर बुद्ध तथा संबंधित अन्‍य महत्‍वपूर्ण घटनाओं का प्रशंसनीय चित्र है। यह भवन आम लोगों और पर्यटकों के लिए ‘लोसार पर्व’ के दौरान खोला जाता है। लोसार एक प्रमुख नृत्‍य त्‍योहार है।
रालेंग मोनास्ट्री सिक्किम ,भारत
यह मोनास्ट्री दक्षिण सिक्किम में स्थित यह रवंगला से छह किलोमीटर की 6 पर स्थित है।सिक्किम के राजा ने जब 9 करमापा को सिक्किम में आमंत्रित किया तब करमापा ने इस के नीव रही थी
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ताशी लिंग मोनास्ट्री सिक्किम ,भारत
ताशी लिंग मुख्‍य शहर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से कंचनजंघा श्रेणी बहुत सुंदर दिखती है। यह मठ मुख्‍य रुप से एक पवित्र बर्त्तन ‘बूमचू’ के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस बर्त्तन में पवित्र जल रखा हुआ है। यह जल 300 वर्षों से इसमें रखा हुआ है और अभी तक नहीं सुखा है।
इनहेंची या इंचे मोनास्ट्री सिक्किम ,भारत
इनहेंची का शाब्दिक अर्थ होता है निर्जन। जिस समय इस मठ का निर्माण हो रहा था। उस समय इस पूरे क्षेत्र में सिर्फ यही एक भवन था। इस मठ का मुख्‍य आकर्षण जनवरी महीने में यहां होने वाला विशेष नृत्‍य है। इस नृत्‍य को चाम कहा जाता है। मूल रुप से इस मठ की स्‍थापना 200 वर्ष पहले हुई थी। वर्तमान में जो मठ है वह 1909 ई. में बना था। यह मठ द्रुपटोब कारपो को समर्पित है। कारपो को जादुई शक्‍ित के लिए याद किया जाता है।
दो द्रूल चोर्टेन स्‍तूप ,सिक्किम ,भारत
यह गंगटोक के प्रमुख आकर्षणों में एक है। इसे सिक्किम का सबसे महत्‍वपूर्ण स्‍तूप माना जाता है। इसकी स्‍थापना त्रुलुसी रिमपोचे ने 1945 ई. में की थी। त्रुलुसी तिब्‍बतियन बौद्ध धर्म के नियंगमा सम्‍प्रदाय के प्रमुख थे। इस मठ का शिखर सोने का बना हुआ है। इस मठ में 108 प्रार्थना चक्र है। इस मठ में गुरु रिमपोचे की दो प्रतिमाएं स्‍थापित है।
पेमायनस्ती मोनेस्ट्री, सिक्किम ,भारत
पेमायनस्ती मठ सिक्किम राज्य के गंगटोक के पश्‍िचम में स्थित पेलिंग से कुछ ही दूरी पर स्थित है। ग्‍यालसिंग से इसकी दूरी 6 किलोमीटर पड़ती है। यह सिक्किम का सबसे महत्‍वपूर्ण और प्रतिष्‍िठत बौद्ध मठ हैइसे 1705 में बनाया गया है और लामा ल्हत्सन् चेम्पो द्वारा स्थापित किया गया है, यह सिक्किम का सबसे पुराना और प्रमुख मठों में से एक है मठ तिब्बत में बौद्ध धर्म के न्यिन्गमा आदेश का पालन करता है और न्यिन्गमा बौद्ध धर्म मानाने वाले सभी दूसरे मठों को नियंत्रित करता है।इस मठ के भिक्षुओं सामान्य रूप से सिक्किम भूटिया लोगो (एक सिक्किम के आस -पास पाया जाने वाला समुदाय ) में से चुना जाता है।यह मठ तिब्बती समुदाय के "शुद्ध भिक्षुओं" के लिए बनाया गया था जो( कुंवारा और किसी भी शारीरिक विकृति के बिना हो ) जिन्हे "ता- तशांग" कहा जाता है और इन्हे चुनने के लिए एक विशेष प्रक्रिया का पालन होता है और केवल यह बौद्ध मठ के लामा अपने नाम के साथ "ता- तशांग" शब्द का इस्तेमाल कर सकते है।
पेमायनस्‍ती मठ का विशेष आकर्षण यहां लगने वाला बौद्ध मेला है। यहां हर वर्ष फरवरी महीने में यह मेला लगता है।पेमायनस्ती मठ में पचास बिस्‍तरों का एक विश्राम गृह भी है, जहाँ पर्यटकों को ठहरने की सुविधा मिलती है
रूमटेक मोनेस्ट्री, सिक्किम ,भारत
(सिक्किम की सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध मोनास्ट्री में एक )
रूमटेक मठ, रूमटेक में स्थित है जो गंगटोक से 24 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह मठ, तिब्‍बती बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक केन्‍द्रों में से एक है। इसे धर्म चक्र केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। यह मठ, समुद्र स्‍तर से 5800 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और गंगटोक शहर के समीप ही बना हुआ है। यह मठ तिब्‍बत के बाहर, काग्‍यु वंश के महत्‍वपूर्ण केन्‍द्रों में से एक है।
रूमटेक मठ, तिब्‍बत के सुरफू मठ के समान बनवाया गया है। यह मठ चार मंजिला है जो पूरे सिक्किम में सबसे बड़ा मठ है। तिब्‍बत पर चीनी आक्रमण के बाद, तिब्‍बत के ग्‍यालवा कारमापा के 16 वें अवतार अपने कुछ भिक्षुओं के साथ यहां आकर बस गए। इसके बाद, चोग्‍याल ने रूमटेक के इस क्षेत्र को इन भिक्षुओं को तोफहे के रूप में दे दिया था, जिसे बाद में धार्मिक अध्‍ययन के लिए एक केन्‍द्र बना दिया गया था।
मठ की मुख्‍य संरचना के पीछे, वहां भारी साज - सज्‍जा वाला कर्मा नालंदा इंस्‍टीट्यूट ऑफ बौद्धिस्‍ट स्‍टडीज है जहां दुनिया भर से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। यहां एक छोटा सा हॉल भी है,जिसमें स्‍वर्ण स्‍तूप है, यह स्‍तुप पूरी तरह से गहनों से जड़ा हुआ है। यह माना जाता है कि इस स्‍तुप में 16 वें ग्‍यालवा कारमापा की पवित्र अस्थियों को रखा गया है।
रूमटेक धर्म चक्र केन्‍द्र, मठ से 2 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस केन्‍द्र में अनूठे धार्मिक शिलालेख, पुस्‍तकों और कला वस्‍तुओं का संग्रह है। इन कला की वस्‍तुओं के प्रदर्शन के अलावा, यह केन्‍द्र प्रत्‍येक वर्ष के दसवें महीने में 28 और 29 तारीख को वार्षिक नृत्‍य का आयोजन करता है। यह स्‍थल, सिक्किम का सबसे ज्‍यादा भ्रमण किए जाने वाले जगहों में से एक है।
फोडोंग मोनेस्ट्री, सिक्किम ,भारत
फोडोंग मोनेस्ट्री सिक्किम में मौजूद एक बौद्ध मठ है। यह सिक्किम की राजधानी गंगटोक से 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका मौजूदा स्वरुप 18 वीं सदी में बनाया गया था,पर यह उस से पुरानी मोनास्ट्री है। सिक्किम के राजा ने जब 9 करमापा को सिक्किम में आमंत्रित किया तब उन्होंने तीन मोनास्ट्री की नीव राखी जो थी :रूमटेक, तिब्बती बौद्ध धर्म के काँग्यू .संप्रदाय का सबसे महत्वपूर्ण मठ, फोडोंग मोनेस्ट्री और रालेंग मोनास्ट्री
तोलुंग मोनास्ट्री , सिक्किम,भारत
तोलुंग मोनास्ट्री उत्तरी सिक्किम के दज़ोंगु क्षेत्र में स्थित है और यह सिक्किम के सभी मठों से अलग एकांत में स्थित है। इस मोनेस्ट्री तक पहुचने के लिए सीधी ढलान पर मौजूद घने सागौन के वृक्ष के जंगलो को पर करना होता है। इस प्राचीन मठ को 18 वीं सदी के प्रारंभिक भाग में चोग्याल चकडोर नामग्याल ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है की लहत्त्सन चेम्पों का अवतार ने नेपाल की तरफ से सैन्य आक्रमण की भविष्यवाणी की थी इस लिए अन्य मठों से दुर्लभ और बहुमूल्य शास्त्रों सहित कीमती वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए तोलुंग मोनास्ट्री भेजा गया था ,यह मोनास्ट्री सिक्किम की सबसे पुरानी धार्मिक कला ,और थांका चित्रकला के कुछ नमूने पाये जाते है , यहा पर मौजूद सभी अवशेष 13 बक्से में बंद है और जिसे हर 30 साल में बहार निकला जाता है ,यहा तब मेले का माहौल होता है।
प्रभोसा उत्तर प्रदेश
प्रभोसा उत्तर प्रदेश राज्य के कौशाम्बी जिले से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्राचीन समय में, इस जगह मंकुला के रूप में जाना जाता था प्रभोसा में बहुत से गुफाएं है और यह भी मना जाता है की यहा जो सीता खिड़की गुफा है वहा पर बुद्ध भगवन ने अपने प्रभोसा निवास के दौरान रहे थे

Monday 16 March 2015

सम्राट अशोक का भाब्रू ,राजस्थान का शिलालेख (अब कोलकाता की एशियाटिक सोसाइटी में है )
भाब्रु राजस्थान मे जयपुर के निकट स्थित है यहां से सम्राट अशोक का शिलालेख मिला था जिस से उनके के बौद्ध मतावलम्बी होने का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। इस शिलालेख में सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म तथा संघ में अपनी आस्था प्रकट की है और बौद्ध ग्रंथों के कुछ उदाहरण भी दिये गयें हैं और भिक्षुओं तथा उपासकों दोनों से कहा गया है कि वे उनका पठन एवं मनन करें यह शिलालेख अब कोलकाता के बंगाल एशियाटिक सोसाइटी के भवन में है।


इस के कोलकाता पहुचने की कहानी
ब्रिटिशकाल के एक कैप्टेन बर्ट ने इसवी 1837 में विराट नगर से कुछ दूर भाब्रू गाँव से सम्राट अशोक के इस शिलालेख को खोज निकाला था। इसके नष्ट हो जाने के डर से कैप्टेन ने बड़ी सावधानी से इस शिलालेख को चट्टान से अलग काटकर विभाजित करवाया। माना जाता है की यह शिलालेख बीजक की पहाड़ी से ही प्राप्त हुआ था, जो कालांतर में भाब्रू पहुँच गया। कैप्टेन बर्ट इसे कोलकाता ले गए और वहां ये अभिलेख बंगाल एशियाटिक सोसाइटी के भवन में स्थापित किया गया है।इसी कारण से यह शिलालेख भब्रू बैराठ कोलकाता अभिलेख के नाम से भी जाना जाता है।
सम्राट अशोक का बिहार सासाराम का शिलालेख ( शिलालेख को चाहिए आज़ादी )
कैमूर पहाड़ी पर मौजूद मौर्य सम्राट अशोक के लघु शिलालेख पर अंकित है। ब्राह्मी लिपि में लिखित इस पंक्ति का अर्थ है जम्बू द्वीप (भारत) में सभी धर्मो के लोग सहिष्णुता से रहें। आज यह शिलालेख पहाड़ी पर वर्षो से ताले में कैद है। इतिहासकार, पुरातत्वविद् व पर्यटक शिलालेख को पढ़ने की चाहत में थककर पहाड़ी पर पहुंचने के बाद वहां से निराश होकर लौटते हैं। खासकर बौद्ध पर्यटक ज्यादा निराश होते हैं। सासाराम से सटी चंदतन पीर नाम की पहाड़ी पर अशोक महान के इस शिलालेख को लोहे के दरवाजे में कैद कर दिया गया है। इसपर इतनी बार चूना पोता गया है कि इसका अस्तित्व ही मिटने को है। यह स्थल पुरातत्व विभाग के अधीन है, पर इसपर दावा स्थानीय मरकजी दरगाह कमेटी का है, कमेटी ने ही यह ताला जड़ा है। जिला प्रशासन से लेकर राज्य सरकार तक गुहार लगाकर थक चुके पुरातत्व विभाग ने अब इस विरासत से अपन हाथ खड़े कर लिए हैं। इतिहास गवाह है कि सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ई. पूर्व देशभर में आठ स्थानों पर लघु शिलालेख लगाये थे। इनमें से बिहार में एकमात्र शिलालेख सासाराम में है। शिलालेख उन्हीं स्थानों पर लगाए गए थे जहां से होकर व्यापारी या आमजन गुजरते थे। सम्राट अशोक ने यहां रात भी गुजारी थी
सम्राट अशोक का राजुला -मंदगिरी , आंध्र प्रदेश का शिलालेख

राजुला मंदगिरी का शिलालेख आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले मे है।

Tuesday 10 March 2015

सम्राट अशोक का पालकीगुंडु , कर्नाटक का शिलालेख
सम्राट अशोक का पालकीगुंडु , कर्नाटक का शिलालेख इंद्रकीला पहाड़ पर कोप्पलजिले मे है

द बुद्ध पार्क (तथागत तसल) सिक्किम (भारत )
यह जो पार्क है उस का कुल क्षेत्रफल 23 एकड़ है और बुद्ध की मूर्ति की 137.2 फ़ीट है .भगवान बुद्ध की प्रतिमा के चेहरे3.5 किलो शुद्ध सोने से ढंका गया है। इस पार्क की कुल कीमत 39.20 करोड़ रूपये आई है जिसे आसियान देशों देशो की मदद से पूरा किया गया है।इस पार्क का काम 2006 में पूरा किया गया है। यह भारत में मौजूद बड़ी बुद्ध की मूर्तियों में एक है

सम्राट अशोक का येर्रागुड़ी, आंध्र प्रदेश का शिलालेख
यह शिलालेख आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले मे गूटी-पट्टिकोंडा सड़क पर है और इस में सम्राट अशोक ने खुद को पियदासीऔर देवताओं के प्रिय बताया है उन्होंने प्रजा को यह सन्देश दिया है की हर एक आदमी को अपने माता-पिता के आज्ञाकारी होना चाहिए, हर एक आदमी को बड़ों का सम्मान करना चाहिए और उन का आज्ञाकारी होना चाहिए,हर किसी को जीवित प्राणियों से अच्छा व्यहार करना चाहिए ,हर किसी को सदा सत्य बोलना चाहिए,हर किसी को धर्म (बौद्ध धर्म ) की विशेषताओं का प्रचार करना चाहिए,और किसी प्राणी की बलि न दी जाये यह शिलालेख बताता है सड़कों पर, पेड़ लगाए गए है और कुए खोदे गए है जिस का हर जनवार और मनुष्य इस्तेमाल कर सकताहै

बराबर गुफाएँ ,गया जिला, बिहार
बराबर गुफाएं भारत में चट्टानों को काटकर बनायी गयी सबसे पुरानी गुफाएं हैंजिनमें से ज्यादातर का संबंध मौर्य काल (322-185 ईसा पूर्व) से है और कुछ में अशोक के शिलालेखों को देखा जा सकता है; ये गुफाएं भारत के बिहार राज्य के जहानाबाद जिले में गया से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
ये गुफाएं बराबर (चार गुफाएं) और नागार्जुनी (तीन गुफाएं) की जुड़वां पहाड़ियों में स्थित हैं - 1.6 किमी दूर स्थित नागार्जुनी पहाड़ी की गुफाओं को कभी-कभी नागार्जुनी गुफाएं मान लिया जाता है। चट्टानों को काटकर बनाए गए ये कक्ष अशोक (आर. 273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व) और उनके पुत्र दशरथ के मौर्य काल[2], तीसरी सदी ईसा पूर्व से संबंधित हैं। यद्यपि वे स्वयं बौद्ध थे लेकिन एक धार्मिक सहिष्णुता की नीति के तहत उन्होंने विभिन्न जैन संप्रदायों की पनपने का अवसर दिया. इन गुफाओं का उपयोग आजीविका संप्रदाय[3] के संन्यासियों द्वारा किया गया था जिनकी स्थापना मक्खाली गोसाला द्वारा की गयी थी, वे बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ गौतम और जैन धर्म के अंतिम एवं 24वें तीर्थंकर महावीर के समकालीन थे।[4] इसके अलावा इस स्थान पर चट्टानों से निर्मित कई बौद्ध और हिंदू मूर्तियां भी पायी गयी हैं

लोमस ऋषि गुफा : मेहराब की तरह के आकार वाली ऋषि गुफाएं लकड़ी की समकालीन वास्तुकला की नक़ल के रूप में हैं। द्वार के मार्ग पर हाथियों की एक पंक्ति स्तूप के स्वरूपों की ओर घुमावदार दरवाजे के ढांचों के साथ आगे बढ़ती है।
सुदामा गुफा : यह गुफा 261 ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा समर्पित की गयी थी और इसमें एक आयताकार मण्डप के साथ वृत्तीय मेहराबदार कक्ष बना हुआ है।
करण चौपर (कर्ण चौपर) यह पॉलिश युक्त सतहों के साथ एक एकल आयताकार कमरे के रूप में बना हुआ है जिसमें ऐसे शिलालेख मौजूद हैं जो 245 ई.पू. के हो सकते है
विश्व जोपरी : इसमें दो आयताकार कमरे मौजूद हैं जहां चट्टानों में काटकर बनाई गई अशोका सीढियों द्वारा पहुंचा जा सकता है।
यहा सम्राट अशोक का शिलालेख भी है
नागार्जुनी गुफाएं
गोपी (गोपी-का-कुभा): शिलालेख के अनुसार इन्हें लगभग 232 ईसा पूर्व में राजा दशरथ द्वारा आजीविका संप्रदाय के अनुयायियों को समर्पित किया गया था।
वदिथी-का-कुभा गुफा (वेदाथिका कुभा): यह दरार में स्थित है।
वापिया-का-कुभा गुफा (मिर्जा मंडी): इन्हें भी दशरथ द्वारा आजीविका के अनुयायियों को समर्पित किया गया था।

सम्राट अशोक का सन्नति, कर्नाटक का शिलालेख
सन्नति कर्नाटक के गुलबर्गा जिले के चितापुर तालुका में एक छोटा सा गाँव है जो भीमा नदी के तट पर मौजूद है । यहा चंद्रलांबा मदिर की छत गिर जाने के कारण सम्राट अशोक का एक शिलालेख मिला है। वैसे यह जगह सम्राट अशोक के शिलालेख के अलावा चन्द्रला परमेश्वरी मदिर के लिए भी प्रसिद्ध है जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने सन 1986में खोज था।

Monday 9 March 2015

प्राचीन बौद्ध स्थल “सोपारा" -वर्तमान-नालसोपारा (मुंबई)
सोपारा महाराष्ट्र राज्य के ठाणे ज़िले में स्थित एक प्राचीन स्थान है। आजकल सोपारा दादर स्टेशन से वेस्टर्न सबर्बन रेलमार्ग पर लगभग 48 किलोमीटर दूर अंतिम पड़ाव 'विरार' से पहले पड़ता है।
'नाल' और 'सोपारा' दो अलग अलग गाँव थे। रेलवे लाइन के पूर्व की ओर 'नाल' है तो पश्चिम में 'सोपारा' गावँ है। वर्तमान में यह एक बड़ा शहर हो गया है। पुराने सोपारा गाँव के क़रीब चारों तरफ हरियाली और बहुत सारे पेड़ हैं।

सोपारा गाँव में सम्राट अशोक द्वारा ईसा पूर्व तीसरी सदी में निर्मित स्तूप भी है। यह स्तूप भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है।
वहां बुद्ध और साथ ही किसी बौद्ध भिक्षु की मूर्ती भी थी. हमें बताया गया कि यहाँ से निकली मूर्तियाँ, शिलालेख आदि औरंगाबाद के संग्रहालय में प्रर्दशित हैं.
जिस प्रकार दक्षिण भारत के पश्चिमी तट पर ईसा पूर्व से ही “मुज़रिस” (कोडूनगल्लूर) विदेश व्यापर के लिए ख्याति प्राप्त बंदरगाह रहा उसी प्रकार उत्तर भारत के पश्चिमी तट पर उसी कालक्रम में सोपारा भी भारत में प्रवेश के लिए एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था. इस बंदरगाह का संपर्क विभिन्न देशों से रहा है. सोपारा को सोपारका, सुर्परका जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता था. प्राचीन अपरानता राज्य की राजधानी होने का भी गौरव सोपारा को प्राप्त है. इस्राइल के राजा सोलोमन के समय से ही बड़ी मात्रा में उनके देश से व्यापार का उल्लेख मिलता है. कदाचित बाइबिल में उल्लेखित भारतीय बंदरगाह “ओफिर” सोपारा ही था. बौद्ध साहित्य “महावंश” में उल्लेख है कि श्रीलंका के प्रथम राजा, विजय ने “सप्पारका” से श्रीलंका के लिए समुद्र मार्ग से प्रस्थान किया था. प्राचीन काल में सोपारा से नानेघाट, नासिक, महेश्वर होते हुए एक व्यापार मार्ग उज्जैन तक आता था. इस बात की पुष्टि नानेघाट में सातवाहन वंशीय राजाओं के शिलालेख से होती है, जो मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद हावी हो गए थे. सोपारा इनके आधीन आ गया था. नानेघाट में तो बाकायदा चुंगी वसूली एवं भण्डारण हेतु प्रयुक्त पत्थर से तराशा हुआ कलश आज भी विद्यमान है.
बौद्ध स्तूप के चारों तरफ अच्छे से देख लेने के बाद हम लोग लौट पड़े. रास्ते में चक्रेश्वर महादेव जी का प्राचीन मंदिर एक बड़े ताल के बगल से था. यहाँ दर्शन तो पिंडी के हुए परन्तु वहीँ बेचारे ब्रह्माजी भी थे जिनकी चर्चा ऊपर की है.

सोपारा में सम्राट अशोक का एक शिलालेख भी है


सम्राट अशोक का गिरनार, गुजरात का शिलालेख

भारत के गुजरात राज्य के जूनागढ़ जिले स्थित पहाड़ियाँ गिरनार नाम से जानी जाती हैं। यह अहमदाबाद से 327 किलोमीटर की दूरी पर जूनागढ़ के १० मील पूर्व भवनाथ में स्थित हैं। यह एक पवित्र स्थान है यह जो गिरनार का अभिलेख है यह उंची पहाड़ी पर है और इस लिए इस देखने बहुत कम लोग जा पाते है यह ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है।

Saturday 7 March 2015

सम्राट अशोक का जौगाड़ा , ओडिशा का शिलालेख
जौगाड़ा , ओडिशा के गंजम जिले में है यहा भी सम्राट अशोक का एक शिलेख है जो प्राकृत भाषा में है।
सम्राट अशोक का धौली, ओडिशा का शिलालेख
सम्राट अशोक का धौली शिलालेख उड़ीसा मे है इसे लेफ्टिनेंट एम . कीटोए ने1837 खोजा था यह मगध की प्राकृत भाषा में और ब्राह्मी लिपि लीपी में लिखा गया है।

देउर कोठार,रीवा,मध्य प्रदेश
देउर कोठार भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रीवा जिले में स्थित पुरात्वात्विक एवं साम्स्कृतिक महत्व का स्थान है। यह अपने बौद्ध स्तूप के कारण प्रसिद्ध है जो 1982 में प्रकाश में आये थे। ये स्तूप अशोक के शासनकाल में (ईसापूर्व तीसरी शताब्दी) निर्मित हैं।
यहां लगभग दो हजार वर्ष पुराने बौद्ध स्तूप और लगभग 5 हजार वर्ष पुराने शैलचित्र गुफाएँ मौजूद है। देउर कोठार, रीवा-इलाहाबाद मार्ग के सोहागी में स्थित है। यहां मौर्य कालीन मिट्टी ईट के बने तीन बडे स्तूप और लगभग 46 पत्थरो के छोटे स्तूप बने है। अशोक युग के दौरान विंध्य क्षेत्र में धर्म का प्रचार प्रसार हुआ और भगवान बौद्ध के अवशेषों को वितरित कर स्तूपों का निर्माण किया गया। यह क्षेत्र कौशाम्बी से उज्जैनी अवन्ति मार्ग तक जाने वाला दक्षिणापक्ष का व्यापारिक मार्ग था। इसी वजह से बौद्ध के अनुयायिओं ने यहां पर स्तूपों का निर्माण किया होगा। ऐसा कहा जाता है कि देउर कोठार में भरहुत से अधिक प्राचीन स्तूप है। यहां बौद्ध भिक्षू अत्यात्मिक स्थल बनाकर शिक्षा-दिक्षा और साधना करते रहे होगें इसके प्रमाण यहां मिलते है।
बौद्ध धर्म के अनुयायियों का विंध्यक्षेत्र शिक्षण केन्द्र था इसके प्रमाण देउर कोठार मे मिलते है। वर्ष 1999-2000 में इन स्तूपों की खोज हुई। तब यहां पर खुदाई के दौरान तोरणद्वार के अवधेश, मौर्य कालीन ब्राही लेख के अभिलेख, शिलापट्ट स्तंभ और पात्रखंड बडी संख्या में मिले। पुरानिधियों के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि यह स्तूप परिसर भरहुत, सांची के समान ही विशाल और विकसित रहा होगा। इतना ही नही यहां हजारों वर्ष पुराने शैलचित्र वाली गुफायें भी स्थित है।

Friday 6 March 2015

सम्राट अशोक का अहरौरा उत्तर प्रदेश,का शिलालेख
अहरौरा उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर ज़िले में स्थित है। यहाँ पर अहरौरा बाँध के समीप एक पहाड़ी पर स्थित शिला पर अशोक का लघु शिलालेख उत्कीर्ण हैं।
इसा शिला की खोज 1961 ई. में प्रोफ़ेसर गो.रा. शर्मा ने की थी। मिराशी ने इसे सम्पादित किया था।

उत्तर प्रदेश से मिलने वाला यह प्रथम लघु शिलालेख था।
यह लेख सहसराम व बैराठ के लघु शिलालेख से मिलता जुलता है, सिवाय अंतिम पंक्ति के।
यह लेख काफ़ी घिसा-पिटा एवं अस्पष्ट है।

बौद्ध स्थल पनगुँरिया गाँव और   तालपुरा  गाँव ,मध्य प्रदेश


मध्य प्रदेश के गाँव पनगुँरिया और तालपुरा में सम्राट अशोक के शिलालेख और कुछ स्तूप पाये गए है। 
यह स्थान बुधनी -रेहटी रोड से 500मीटर दूर सीहोर जिले में है और मध्य प्रदेश के राजधानी से काफी पास है।  

पनगुँरिया गाँव


यहा पर सारू -मारू-की -कोठड़ी के पास सम्राट अशोक के दो शिलालेख मिले है  यह कुछ छोटे स्तूप जो  2 से  16 मीटर व्यास के है और एक बड़ा स्तूप के अवशेष है जो 76मीटर  व्यास का है। जिस के चारों और परिक्रमा पथ भी पाया गया है 

तालपुरा  गाँव 

यह से कुछ दूर पूर्व दिशा में दो एक दूसरे से जुड़े स्तूप मिले है जो अच्छी अवस्था मे है यह पर सम्राट अशोक का एक और शिलालेख मिला है। 

इस वक़्त यह स्थान देख रेख के आभाव में नष्ट हो रहा है। जैसे की देश में मौजूद अनेक बौद्ध स्थलों का हाल है। 




सम्राट अशोक का गुजर्रा मध्य प्रदेश,का शिलालेख
मौर्य राजवंश के तीसरे राजा सम्राट अशोक कलिंग युद्ध में हुए भीषण नरसंहार को देख नहीं सके। इस युद्ध में एक लाख से ज्‍यादा लोग मारे गए थे। इसके बाद सम्राट का मन द्रवित हो उठा और उन्‍होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया। इसके बाद उन्‍होंने बुंदेलखंड को भी छोड़ दिया ।झांसी से करीब 40 किमी. दूर गुजर्रा गांव में 15 दिनों के लिए रुके थे। यहां रखे एक बड़े पत्‍थर में सम्राट ने पांच पंक्तियों में पूरी दुनिया को अहिंसा का संदेश दिया था।
सम्राट अशोक के शासनकाल में गुजर्रा नामक यह स्थान भारत का मध्य बिंदु माना जाता था। कलिंग युद्ध के बाद 261 ईसा पूर्व सम्राट अशोक इस स्थान पर बिहार से सांची जाते समय रुके थे। छोट-छोटे पत्‍थरों और पहाडि़यों से घिरे इस स्‍थान का नजारा काफी विहंगम है। यहां रखे हुए एक बड़े पत्‍थर पर सम्राट अशोक का लघु शिलालेख है। इसे पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर रखा है। यह करीब 10 फीट चौड़ा और मोटा है। इस पर सम्राट का नाम भी लिखा है इसलिए इसे विशेष माना जाता है।
अशोक का सम्राज्य पूरे भारत के साथ ही पश्चिमोत्‍तर के हिंदुकुश और ईरान की सीमा तक था। इनके द्वारा लिखवाए गए अभी तक कुल 33 शिलालेख प्राप्‍त हुए हैं। ये लेख बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से एक है

सम्राट अशोक का रूपनाथ मध्य प्रदेश,का शिलालेख

मध्य प्रदेश के कटनी जिले के बहोरीबंद के समीप रूपनाथ है यहा सम्राट अशोक का एक शिलालेख मिला है।
रूपनाथ में मौर्य शासक अशोक का लघु शिलालेख सं.1 यहाँ एक चट्टान पर उत्कीर्ण है। लेख में अशोक यह दावा करते हैं कि उसके धम्म प्रचार के फलस्वरूप भारत के निवासी अपने नैतिक आचरण के कारण देवताओं से मिल गये हैं। वैसे इस शिलालेख की भाषा आम समझ में नहीं आती लेकिन इसका पुरातत्व विभाग ने इसका रूपांतर किया है। हालांकि यह भी ज्यादा पुष्ट नहीं लेकिन लिखे रूपांतर के अनुसार सम्राट अशोक ने यहां स्वयं इस स्थान को महत्वपूण्र माना है। दरअसल सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म तथा मध्यप्रदेश का रिस्ता गहरा है। कहा जाता है कि अशोक ने उज्ज्यनी अर्थात उज्जैन जाते वक्त संभवत: रूपनाथ पहुंचे थे। यहां के लोगों का मनना है कि यही वह महत्वूपर्ण शिलालेख है जिसे स्वयं अशोक ने संपादित किया था हा


लांकि इसके प्रमाण नहीं ।