Sunday 27 December 2015

बौद्धनाथ स्तूप काठमांडू नेपाल
बौद्धनाथ काठमाण्डू के पूर्वी भाग में स्थित प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप तथा तीर्थस्थल है। एसा माना जाता है कि यह दुनिया के सबसे बड़े स्तूपों में से एक है। यह विश्‍व धरोहर में शामिल है।बौद्धनाथ स्तूप का निर्माण नेपाली लिच्छवि राजा ने सिवादेवा ने 590-604ईसवी के आस पास किया था कुछ अन्य नेपाली इतिहासकार बताते है राजा मानादेवा के शासनकाल के लिए 464-505ईसवी में इस का निर्माण हुआ है, तिब्बती स्रोतों से यहा स्तूप होने की बात पता चली और इसे 15 वीं या 16 वीं सदी में खोदा गया जहा राजा अंशुवर्मा (605-621ईसवी) के अवशेष वहाँ से मिले ,तिब्बती राजा त्रिसोंग दैटसन का नाम भी इस स्तूप के निर्माण में जोड़ा जाता है। नेपाल के हेलम्बू प्रान्त के बौद्ध भिक्षु योलमो नगंगचंग शाक्य जंगपो को इस स्तूप को पुनर्जीवित करने का श्रेय जाता है। इस स्तूप के बारे में माना जाता है कि जब इसका निर्माण किया जा रहा था, तब इलाके में भयंकर अकाल पड़ा था। इसलिए पानी न मिलने के कारण ओस की बूंदों से इसका निर्माण किया गया। स्तूप 36 मीटर ऊंचा है और स्तूप कला का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है।

अप्रैल 2015 नेपाल भूकंप में इस स्तूप को क्षति पहुंची है और इस में दरारे आ गयी है इस के ऊपरी भाग को हटा दिया गया है ,ताकि इसेसुधरा जा सके जो अक्टूबर 2015 तक पूरी होने की उम्मीद है।

Tuesday 8 December 2015

थुल स्तूप ,सिंध पाकिस्तान
थुल पाकिस्तान के सिंध में सबसे पुराना गांवों में से एक है। जिस की एक महान ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है।यह स्तूप क्षेत्र के पश्चिमी इलाके में स्थित है दादू जिले में जूही शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर यह गाँव मौजूद है। आज के समय में गाँव के लोग इस स्तूप की ईटे निकल के ले गए है और यह स्तूप बहुत बुरी हालत में है ऐसा कहा जाता है यह स्तूप महान बौद्ध राजा कनिष्क के समय का है जिस की राजधानी पेशावर थी ,बुद्ध की टेराकोटा की मूर्ति 02 अन्य मुर्तिया जो बुद्ध के जन्म के दृश्य को दर्शाती ती थी और कुछ सजावटी मिट्टी के बर्तनों यहा से मिले थे

Saturday 5 December 2015

भगवान बुद्ध का अस्थि कलश ,राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली,भारत
भगवान बुद्ध का अस्थि कलश भारत की राजधानी नई दिल्ली में ,इसे उत्तर प्रदेश और नेपाल के पास के जिला बस्ती में पिपरहवा से प्राप्त किया गया है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 1972 में ,यहा से मिली जानकारी के अनुसार भगवान बुद्ध के अस्थि का जो भाग उनके कुल कपिलवस्तु को प्राप्त हुआ था उस पे यहा स्तूप बनाया गया था ,क्यों की यहा मिले शिलालेखो से मिली जानकारी के अनुसार "सकियानं" लिखा हुआ है जिस का मतलब" शाक्य " होता है इस में मिली और जानकारी के अनुसार इस पर "सुकिति- भतिनं" लिखा हुआ है जिस का मतलब है भगवान बुद्ध के भाइयो द्वारा इस के अलावा पिपरहवा से प्राप्त मोहरो पर ॐ देवपुत्र विहार कपिलवस्तु भिक्षु संघस्य जो यह बात प्रमाणित करता है यह स्थान पर कपिलवस्तु का नियंत्रण था और यह स्थान नेपाल में मौजूद उस स्थान से ज्यादा दूर भी नहीं है जहा भगवान बुद्ध के जन्म हुआ था और जिसे लुम्बिनी नाम से जाना जाता है पिपरहवा से लुम्बिनी की दुरी केवल 70 किलोमीटर है ,जो इस बात को प्रमाणित करता है यह स्थान पर उस वक़्त शक्यो का नियंत्रण रहा होगा
यहा पायी गयी भगवान बुद्ध की पवित्र अस्थियो में 20 टुकड़े पाये गए है जो खोपड़ी के मालूम पड़ते है और सब से बड़ा टुकड़ा 3 X 5सेंटीमीटर का है

Tuesday 1 December 2015

करूमाडीकुट्टन ,अलाप्पुझा शहर,केरल
वैसे तो केरल में बौद्ध धर्म से जुडी हुई इक्का- दुक्का जगह ही है ,उन में सब से प्रसिद्ध है यह जगह।
करूमाडीकुट्टन अलाप्पुझा शहर से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। यह जगह भगवान बुद्ध की विशाल काले ग्रेनाइट की प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है। जिसे यहा के स्थानीय लोग करूमाडीकुट्टन कहते है यह मूर्ति 9 वीं और 10 वीं सदी है जब बौद्ध धर्म अपने चरम पे था, भगवान बुद्ध की यह मूर्ति आधी टूटी हुई है , और इस के टूटे होने के पीछे कई कहानी प्रचलित है इस में से एक इस प्रकार है की ग्रामवासीयो से गुस्सा एक हाथी ने इस मूर्ति को गुस्से में तोड़ दिया था और दूसरी कहानी इस प्रकार है की मुगल साम्राज्य का कोई सम्राट भारत से बौद्ध धर्म को खत्म करना कहता था और इस लिए उस ने बुद्ध की इस मूर्ति के साथ बहुत सी मूर्ति तोड़ी और यह उस काल किस बची हुई कुछ मूर्तियों में से एक है।
दिआमेर-भाशा प्राचीन बौद्ध शैल चित्रकला ,पाक अधिकृत कश्मीर ,भारत
पाक अधिकृत कश्मीर जिसे पाकिस्तान अपना बताता है और गिलगित-बल्तिस्तान प्रान्त कहता है इस में प्रस्तावित -दिआमेर-भाशा डैम में करीब 30,000 प्राचीन बौद्ध नक्काशियों और शिलालेखों डूब जायेगे ऐसा कहा जा रहा है की यहा मौजूद शिलालेख में ब्राह्मी, सोग़दाई , मध्य फारसी, चीनी, तिब्बती और यहा तक की प्राचीन हिब्रू के शिलालेख मौजूद है और यहा के करीब शिलालेख 80 प्रतिशत शिलालेख ब्राह्मी भाषा में हैं। यहा पर मौजूद सबसे पुरानी शैल चित्र पाषाण युग की है इस के बाद कांस्य युग शैल चित्र भी यहा मौजूद है। ऐसा कहा जाता है पहली शताब्दी में बौद्ध धर्म यहा पंहुचा और पांचवीं और आठवीं शताब्दी के बीच अपने चरम पर पहुंच गया उस समय काल के बुद्ध और स्तूपों के कई शानदार चित्र यहा देखे जा सकते है इस के अलावा यहा तिब्बती बौद्ध धर्म के चित्र भी देखे जा सकते है जो अब डूब जायेगे।





भारत सरकार इस डैम का विरोध कर रही है क्यों यह पाकिस्तान द्वारा अधिकृत भारतीय सीमा में बन रहा है , और उस ने अमेरिका से भी अपील की थी को वो इस डैम के लिए पाकिस्तान को पैसा न दे और न अपने देश की प्राइवेट कंपनी को पैसा देने दे लेकीन अमेरिका ने भारत के पीठ में छुरा घोपते हुए पाकिस्तान को पैसे देने पर सहमति दे दी है
( यह इलाका पाकिस्तान द्वारा कब्ज़ा किये हुए भारतीय हिस्से में है ,जिस पर पाकिस्तानी नियंत्रण है )

Sunday 29 November 2015


काहू -जो -दारो ,मीरपुर खास,सिंध प्रांत,पाकिस्तान
काहू -जो -दारो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मिला एक बौद्ध स्तूप है जो मीरपुर खास नामक जगह के पास है ,ऐसा कहा जाता है की इसे सम्राट अशोक ने बनाया था सन 232 के आस पास बनवाया था क्यों की कहा जाता है की महात्मा बुद्ध यहा आये थे और यहा के स्तुपो में उनके पवित अवशेष भी मिले है,इसे सन 1889 में रेलवे लाइन बिछते हुए खोजा गया था यह प्राचीन स्थल 30 एकड़ में फैला हुआ है आज इस जगह के हालत बहुत ज्यादा ख़राब है ,लोग इस पर कब्ज़ा कर रहे है और इस जगह की ईटे घर बनाने के लिए ले जा रहे है अब कुछ सपाट मैदान ही बचा है।
शांगलो बाग़,स्वात घाटी ,पाकिस्तान ( बौद्ध नक्काशी)
पाकिस्तान के स्वात जिले के मिंगोरा कसबे के कोकरिआ गांव में मौजूद है शांगलो बाग़ नामक स्थान यहा पर गांधार काल की बुद्ध की पत्थर पर नक्काशी मौजूद है जो बहुत तेजी से खराब हो रही है और इसे संरक्षण की सख्त जरूरत है

अमलुकदरा स्तूप, स्वात घाटी ,पाकिस्तान 

अमलुकदरा का स्तूप, पाकिस्तान की स्वात घाटी की अमलुकदरा की सुंदर छोटी सी घाटी में नवगई गांव के उत्तर पर 2 किलोमीटर के बारे में स्थित है,यहा पहुँचने के लिए बुनैर की तरफ जाने वाली रोड पर गांव के सहारे 1 किमी चलने की आवशकता है।

यह स्तूप कुषाण कल का है और इस के आस पास मठ के खंडहर, स्तूप और विविध अवशेष अभी भी देखा जा सकता है,जिस अवैध तरीके से खोदा जा रहा है ,ताकि इसे बीच के पैसे कमाए जा सके , इस जगह की 1938 में बारगैर और राइट द्वारा जांच की गई थी जिस में गांधार काल की मूर्तियां मिली थी ,इस के बाद इस जगह की जांच नहीं हो पायी है ,न ही पाकिस्तान सरकार की इस की जांच करने में कोई दिलचस्पी है इस के अलावा यहा कुषाण से तुर्क शाही साम्राज्य के सिक्के मिले है जो 2 से 7 वीं शताब्दी के बीच के है

स्वात बुद्धा ,जेहानाबाद ,पाकिस्तान 

पाकिस्तान के स्वात घाटी में मौजूद है स्वात बुद्धा या जहानाबाद बुद्धा यह मूर्ति 7 मीटर (23 फुट) की मूर्ति है, गांधार युग के दौरान, 1 शताब्दी के आसपास बनाया गया था,तालिबान ने इस 2008 में तोड़ने की कोशिश की इस के बाद इस का स्वरुप बिगड़ गया

Thursday 26 November 2015

तख़्त-ए रूस्तम (बौद्ध स्तूप) समंगान, अफगानिस्तान
वैसे तो दुनिया में बहुत सी ऐसे जगह मौजूद है जो इतिहास के पन्ने में दफ़न है ,ऐसा
ही एक जगह है तख़्त-ए रूस्तम नाम का बौद्ध स्तूप जो अफगानिस्तान में मौजूद है , इस का नाम तख़्त-ए रूस्तम ईरान के प्रसिद्ध वीर रूस्तम के आधार पर पड़ा जो यहा की लोककथा का प्रसिद्ध पात्र है इस के बारे में ज्यादा जानकारी तो अभी मिली नहीं है ,और यहा के वर्त्तमान हालत में ऐसा असंभव है क्यों की यहा तालिबान और अफगानिस्तान की फ़ौज का युद्ध का मैदान बना हुआ है ,कुषाण शासकों के अधीन 4 और 5 वीं शताब्दी के दौरान यह एक प्राचीन शहर और प्रमुख बौद्ध केंद्र में से एक था ,कुषाण शासकों खुद बौद्ध धर्म को मानते थे और उनकी प्रजा भी उनके समय बौद्ध धर्म बहुत फला फुला लेकीन 6 वीं सदी में इस्लाम के उदय के साथ यहा बौद्ध धर्म का सूर्य आस्त हो गया और आज केवल बौद्ध धर्म से जुड़े अवशेष और कुछ यादे ही यहा बाकि है
यह स्तूप और मठ पहाड़ो को काट के बनाया गया है और यह थेरवाद बौद्ध सम्रदाय से था इस में पांच कक्ष,दो पूजा के स्थान जिस में से एक में गुंबददार छत है और उस पर खूबसूरत कमल के पतों को उकेरा गया है ,इस के पास की पहाड़ी पर स्तूप मौजूद है जिस के अंदर कुछ गुफाएं है और इस स्तूप का व्यास 22 मीटर वर्ग है ,तख्त के पास बौद्ध विहारों की सख्या 10 है स्थानीय लोग इसे "किए तेहि " बुला थे है।





भाजा गुफाएं , पुणे ,महाराष्ट्र
भाजा गुफाएं 22 चट्टानों को काटकर बनाया गया गुफाओं का समूह है जिसे 2 शताब्दी ई.पू. में बनाया गया है ,यह पुणे और लोनावला के नज़दीक है और भाजा गांव से 400 फीट ऊपर है। यह बहुत प्राचीन व्यापार मार्ग था जो उत्तर भारत और दक्षिण भारत को जोड़ता था और इस के द्वारा दक्कन के पठार और अरब सागर के बीच व्यापार होता था। इस जगह का उल्लेखनीय भाग 14 स्तूप का एक समूह है,यह स्तूप में से कुछ स्तूप भाजा में निवास करने वाले भिक्षुओं के अवशेष हैं, जिन का नाम यहा शिलालेख पर लिखा हुआ है जो इस प्रकार है अम्पिनिका ,धम्मगिरी, संघड़ीना है। इस के आल्वा यह बुद्ध की कुछ पत्थर पर उकेरी गयी मुर्तिया भी है।








Tuesday 24 November 2015

विज्जासन टेकड़ी बौद्ध गुफाएं ,भद्रवती , चंद्रपुर जिला , महाराष्ट्र ( हालत - देख रेख के आभाव में ख़राब )
भद्रवती एक शहर है जो महाराष्ट्र राज्य के चंद्रपुर जिले में एक नगर पालिका परिषद है। यह चंद्रपुर शहर से 26 किमी दूर स्थित है। यहा पर मौजूद है 2000 साल पुरानी बौद्ध गुफाएं जो विज्जासन टेकड़ी के नाम से जानी जाती है , इसे वाकाटक वंश द्वारा बनाया गया है।
वाकाटक वंश(300 से 500 ईसवी लगभग) सातवाहनों के उपरान्त दक्षिण की महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा। तीसरी शताब्दी ई. से छठी शताब्दी ई. तक दक्षिणापथ में शासन करने वाले समस्त राजवंशों में वाकाटक वंश सर्वाधिक सम्मानित एवं सुसंस्कृत था। मगध के चक्रवर्ती गुप्तवंश के समकालीन इस राजवंश ने मध्य भारत तथा दक्षिण भारत के ऊपरी भाग में शासन किया। इनका मूल निवास स्थान बरार, विदर्भ में था। वाकाटक वंश का संस्थापक 'विंध्यशक्ति' था।प्रवरसेन बड़ा ही शक्तिशाली राजा था। इसने चारों दिशाओं में दिग्विजय करके चार बार 'अश्वमेध यज्ञ' किये और वाजसनेय यज्ञ करके सम्राट का गौरवमय पद प्राप्त किया। प्रवरसेन की विजयों के मुख्य क्षेत्र मालवा, गुजरात और काठियावाड़ थे। पंजाब और उत्तर भारत से कुषाणों का शासन इस समय तक समाप्त हो चुका था। पर गुजरात-काठियावाड़ में अभी तक शक 'महाक्षत्रप' राज्य कर रहे थे। प्रवरसेन ने इनका अन्त किया। यही उसके शासन काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी। गुजरात और काठियावाड़ के महाक्षत्रपों को प्रवरसेन ने चौथी सदी के प्रारम्भ में परास्त किया था।



औरंगाबाद यूनिवर्सिटी गुफाएँ (बुद्ध गुफाएं ),औरंगाबाद जिला ,महाराष्ट्र
औरंगाबाद यूनिवर्सिटी गुफाएँ वैसे तो बहुत खूबसूरत है लेकीन यह अपने पास की मौजूद अजंता-एलोरा गुफाएं जितनी मश्हूर नही है और शायद इतिहास का एक भुला अध्याय बन गयी है जिस के बारे में बहुत कम लोग जानते है। सिह्यचल पर्वतमाला में मौजूद इन गुफाओं की जितनी तारीफ की जाये शायद ही कम है।
औरंगाबाद गुफाएँ बारह कृत्रिम गुफाएँ बौद्ध गुफाएँ है जिन्हे औरंगाबाद यूनिवर्सिटी गुफाएँ के नाम से भी जाना जाता है। यह औरंगबाद के मश्हूर बीबी का मकबरा से उत्तर में लगभग 2 किमी दूर है औरंगाबाद गुफाएं 6 और 7 वीं शताब्दी के दौरान अपेक्षाकृत नरम बेसाल्ट चट्टान को खोद के बनाई गयी है औरंगाबाद गुफाओं की मूर्तिकला नक्काशियों भारतीय शास्त्रीय कला के सर्वोच्च उपलब्धियों में से एक हैं और इस की तुलना अजंता की गुफाओं की चित्रकला से की जा सकती है





Thursday 12 November 2015

शोहो -जी (गिफु) जापान 
यह शोहो -जी विहार पहले 1638 में स्थापित किया गया था, लेकिन 1692 तक ओबकु स्कूल में शामिल नहीं किया था। यह जगह अपने गिफु ग्रेट बुद्धा के लिए प्रसिद्ध है जिसे 832 में पूरा किया गया और इस को मंदिर के 11
वे मुख्य भिक्षु ने बनवाया था।

शोगेन -जी बौद्ध मठ,मीनोकामो ,जापान
शोगेन -जी बौद्ध मठ जापान के गिफु जिले के मीनोकामो शहर में है। यह 1330 में मूल रूप से बौद्ध भिक्षु कंज़न ईजेन जेनजी के अभ्यास का एक जगह थी।

Tuesday 10 November 2015

ईहो-जी जेन बौद्ध विहार , तजिमी, गिफु जापान
ईहो-जी बौद्ध विहार जापान के गिफु जिले में है। ईहो-जी बौद्ध विहार ज़ेन बौद्ध धर्म की नान्ज़ेन जी शाखा द्वारा 1313 में स्थापित किया गया था। यहा पर ध्यान की एक विधि ज़ाज़ेन सिखाई जाती है इस के साथ यह ज़ाज़ेन प्रशिक्षुओं का घर है और आम लोगो के लिए भी ज़ाज़ेन ध्यान विधि की कक्षाएं लगाई जाती है 10 सितंबर 2003, मुख्य रहने वाले क्वार्टर में से एक एक आग से नष्ट हो गया था। तजिमी के निवासियों द्वारा चलाए एक अभियान के बाद इसे फिर बनाया गया 29 अगस्त, 2007में । इस जगह को जापानी सरकार द्वारा राष्ट्रीय खजाना f घोषित किया गया है।
शोफुकु -जी बौद्ध विहार,फुकुओका ,जापान
शोफुकु -जी बौद्ध विहार जापान के हकाता-कु के फुकुओका जिले में है
यह विहार इसई द्वारा मिनामोतो नो योरिटोमो के समर्थन से बनवाया गया था। इसका निर्माण 1195 में पूरा किया गया था यह बौद्ध धर्म की जेन शाखा का जापान में सबसे पुराना बौद्ध ज़ेन विहार है।

Friday 6 November 2015

ईहिजी-जी बौद्ध मठ,फुकुई ,जापान
ईहिजी-जी बौद्ध मठ ज़ेन बौद्ध धर्म के एक शाखा सोटो स्कूल के दो मुख्य विहारों में से एक है,यह जापान के फुकुई जिले के 5 किमी पूर्व में स्थित है। इसका विहार या मठ का संस्थापक ईहिजी- डोजेन था जिसने 13 वीं सदी के दौरान चीन से जापान बौद्ध धर्म की सोटो ज़ेन शाखा ले कर आया था , आज यहा करीब 200 बौद्ध भिक्षु रहते है और हर साल 12 लाख पर्यटक आते है ,आज यह विहार 82 एकड़ में फैला है
14,000 बौद्ध पूजा स्थलों के साथ बौद्ध धर्म की सोटो शाखा जापान का सबसे बड़ा बौद्ध संगठन है।


Thursday 5 November 2015


प्राचीन सोमपुरा महाविहार,नौगाँव ,बांग्लादेश
सोमपुरा महाविहार बांग्लादेश के पहारपुर, बदलगाछी उपजिला, नौगाँव जिला में है। यह महाविहार भरतीय उपमहाद्वीप में सबसे अच्छा ज्ञात बौद्ध विहार में से एक है और बांग्लादेश में सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों में से एक है। और इस जगह को 1985 में यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल में नामित किया गया है यह हिमालय के दक्षिण में पाया गया दूसरा सबसे बड़ा बौद्ध मठ है ,
सोमपुरा महाविहार, पाला राजवंश के राजा धर्मपाल द्वारा बनाया गया था,पाला सम्राज्य बौद्ध धर्म का महान संरक्षक था इसी राजवंश के कारण मध्यकालीन भारत में बौद्ध धर्म फिर फल फूल पाया था , पाला साम्राज्य की नीव यादव वंश के सैन्य कमांडर गोपाल ने राखी थी। इस लिए इसे यादव - पाल वंश भी कहा जाता है। पाल राजवंश के पश्चात सेन राजवंश ने बंगाल पर 160 वर्ष राज किया। जिस के समय भी बौद्ध धर्म अच्छी तरह फला फुल और इसे सेना - पाल वंश भी कहा जाता है।
यह जगह कुछ सदियों तब आबाद रही और 12 वीं सदी में पूरी तरह वीरान हो गयी क्यों की इस जगह वंगा साम्राज्य की तरह से हमला हुआ था जो उड़ीसा का था और यह जगह उस की बाद कभी आबाद नहीं हो पायी
यह विहार 20 एकड़ जमीन पर है ,चतुष्कोणीय संरचना 177 वर्ग से मिल के बानी है और और केंद्र में एक परंपरागत बौद्ध स्तूप है ,यहा के कमरे और आवास को ध्यान के लिए भिक्षुओं द्वारा इस्तेमाल किया जाता था। और यह जगह उस समय बौद्ध धर्म के जैन ,हिन्दू धर्म का भी प्रमुख केंद्र बन गया था ,और यह जगह पूर्वी भारत का महत्वपूर्ण बौद्ध विश्वविद्यालय बन गया था 

Tuesday 3 November 2015

बन्दरबान बुद्ध धातु जड़ी ,बांग्लादेश
बुद्ध धातु जड़ी बंगलादेश के बन्दरबान शहर के बालाघाट कस्बा के करीब स्थित है। यह बौद्ध विहार सन् 2000 में बनाया गया है। यहा भगवन बुद्ध के अवशेष रखे है जिसे म्यांमार (बर्मा)द्वारा यहा दिया गया है। यह बांग्लादेश में सबसे बड़ा थेरवाद बौद्ध मंदिर है और यहा बांग्लादेश की दूसरी सबसे बड़ी बुद्ध प्रतिमा है। बन्दरबान में बौद्धों की एक बड़ी जातीय आबादी है। बौद्ध बांग्लादेश की आबादी का 0.7% है,सबसे ज्यादा बौद्ध दक्षिण-पूर्वी जिले चटगांव और चटगांव के पहाड़ी इलाके में रहते है और मुस्लिम और हिन्दुओ के बाद बांग्लादेश में किसी धर्म की तीसरी बड़ी आबादी है।