Monday 28 September 2015

कोथदुवा राजा महाविहार ,श्रीलंका
कोथदुवा राजा महाविहार दक्षिणी श्रीलंका में मडुगंगा नदी पर कोथदुवा द्वीप पर है।द्वीप गाले शहर के लगभग 35 किलोमीटर उत्तर में दक्षिणी प्रांत में स्थित है। मंदिर में 340 सीई के लगभग बुद्ध के दांत के अवशेष को यहा रखा गया था ,जो आज कल टूथ रेलिक टेम्पल में रखा है जो श्रीलंका के कैंडी शहर में है और यहा पर जाया श्री महा बोधि पेड़ की एक शाखा भी है जो देवा पथिराजा द्वार लगाया गया , जो राजा परक्कमबहु चतुर्थ करने के एक मंत्री थे
मुथियांऩगना राजा महाविहार, बदुल्ला,श्रीलंका
मुथियांऩगना राजा महाविहार श्रीलंका के उवा प्रांत में बदुल्ला नामक जिले में मौजूद एक प्राचीन विहार है
बौद्ध इस जगह के विश्वास करते हैं इस जगह का गौतम बुद्ध द्वारा दौरा किया गया था और यह सोलोसमस्थाना में से एक है सोलोसमस्थाना श्रीलंका के में 16 पवित्र स्थानों को माना जाता है ऐसा कहा जाता है की आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद 8 साल पर, भगवान बुद्ध केलनिया का 3 दौरा किया था नागा लोगों के एक राजा मणिअक्कितः द्वारा निमंत्रण पर इस यात्रा के दौरान इन्दका नाम के एक स्थानीय मुखिया ने बदुल्ला में उसकी जगह की यात्रा करने के लिए भगवान बुद्ध को आमंत्रित किया।वहाँ भगवान बुद्ध द्वारा किए गए उपदेश के अंत में,, इन्दका भगवान बुद्ध की यात्रा की स्मृति में पूजा करने के लिए कुछ करना चाहता था ।भगवान बुद्ध ने उसे अपने कुछ बाल और पसीने की कुछ बूँदें दी जो मोतियों में बदल गई ऐसा यहा कहा जाता है और उस पर इन्दका ने एक स्तूप बनवाया जो आज भी यहा है

Friday 25 September 2015

जेतवनरमा दगोबा, अनुराधापुरा, श्रीलंका
जेतवनरमा दगोबा अनुराधापुरा के पूर्वी भाग में बना एक बहुत बड़ा स्तूप है।अनुराधापुरा के राजा महासेना (273-301) ने महाविहार के तबाह हो जाने के बाद इस का निर्माण कराया और उनके पुत्र मघवन्ना प्रथम ने स्तूप का काम पूरा कराया ,बौद्ध धर्म से जुड़े कुछ लोग मानते है इस स्तूप में बुद्ध के अवशेष रखे है। जब इसे बनाया गया था यह निश्चित रूप से दुनिया में तीसरी सबसे ऊंची स्मारक थी , पहले दो मिस्र के पिरामिड थे। यह मूल रूप से है 120 मीटर उँचा था पर जब केवल 70 मीटर ही बचा है ,इसे बनाने में 90 लाख से अधिक ईंटों का इस्तेमाल हुआ था जब यह बना उस समय करीब 3000 बौद्ध भिक्षु इस में निवास करते थे

वीजा नियम : श्रीलंका के लिए भारतीय सैलानियों को पहले से वीजा लेने की कोई जरूरत नहीं होती है। आपके पास सि़र्फ एक वैध पासपोर्ट होना चाहिए। इसके बाद भारतीय सैलानियों को कोलंबो पहुंचने के बाद वहीं वीजा जारी कर दिए जाते हैं। श्रीलंका के लिए भारतीयों को पहले से वीजा लेने की जरूरत केवल विशेष परिस्थितियों में ही होती है।

मुद्रा : श्रीलंका की मुद्रा रुपया है। भारत के 100 रुपये आम तौर पर 230 श्रीलंकाई रुपये के बराबर होते हैं

Friday 18 September 2015

लंकारमा दोगबा , अनुराधापुरा, श्रीलंका
लंकारमा श्रीलंका के प्राचीन राज्य अनुराधापुरा, में राजा वलागम्बा द्वारा निर्मित एक स्तूप है। प्राचीन स्तूप के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है पर इसे बाद में फिर से निर्मित किया गया
स्तूप अपने दौर में जमीन के ऊपर 10 फीट (3 मी) बना रहा होगा ।स्तूप का व्यास 45 फीट (14 मीटर) है। इस स्तूप में जो आंगन है वो आकर में गोल है और उसका व्यास 1332 फीट (406 मीटर) है। स्तूप के खंडहर के आस पास खम्भों की पंकतिया है और इसमें कोई संदेह नहीं है की स्तूप के ऊपर एक छत रही होगी जो इन खम्भों पर टिकी होगी और इस स्थान को कभी बौद्ध भिक्षु अपने निवास के तौर पर इस्तेमाल करते हो गेए इस तरह की स्थापत्य को श्रीलंका में वतडागे कहते है ऐसा ही एक स्तूप भारत के आंध्रप्रदेश के अमरावती में भी मिलता है
वीजा नियम : श्रीलंका के लिए भारतीय सैलानियों को पहले से वीजा लेने की कोई जरूरत नहीं होती है। आपके पास सि़र्फ एक वैध पासपोर्ट होना चाहिए। इसके बाद भारतीय सैलानियों को कोलंबो पहुंचने के बाद वहीं वीजा जारी कर दिए जाते हैं। श्रीलंका के लिए भारतीयों को पहले से वीजा लेने की जरूरत केवल विशेष परिस्थितियों में ही होती है।
मुद्रा : श्रीलंका की मुद्रा रुपया है। भारत के 100 रुपये आम तौर पर 230 श्रीलंकाई रुपये के बराबर होते हैं
अभयगिरी विहार अनुराधापुरा, श्रीलंका
अभयगिरी विहार अनुराधापुरा में स्थित थेरवाद और महायान बौद्ध धर्म के एक प्रमुख मठ स्थल था।यह दुनिया में सबसे व्यापक खंडहरऔर देश में सबसे पवित्र बौद्ध तीर्थ शहरों में से एक है। इसे 2 शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित किया गया और यह 1 शताब्दी ईस्वी से एक बौद्ध धर्म के बारे में जानने के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्था में हो गया था,
वीजा नियम : श्रीलंका के लिए भारतीय सैलानियों को पहले से वीजा लेने की कोई जरूरत नहीं होती है। आपके पास सि़र्फ एक वैध पासपोर्ट होना चाहिए। इसके बाद भारतीय सैलानियों को कोलंबो पहुंचने के बाद वहीं वीजा जारी कर दिए जाते हैं। श्रीलंका के लिए भारतीयों को पहले से वीजा लेने की जरूरत केवल विशेष परिस्थितियों में ही होती है।
मुद्रा : श्रीलंका की मुद्रा रुपया है। भारत के 100 रुपये आम तौर पर 230 श्रीलंकाई रुपये के बराबर होते हैं।

Tuesday 15 September 2015

सेला चैत्य अनुराधापुरा, श्रीलंका
सेला चैत्य अनुराधापुरा, श्रीलंका के प्राचीन पवित्र शहर में जेतवनरमाया के पश्चिम में 8 किलोमीटर दूर स्थित है।यह 1 शताब्दी ईसा पूर्व में शासन करने वाले राजा लज्जितिस्सा द्वारा निर्माण किया गया था।स्तूप के आधार का व्यास 37 ½ फीट है। ऐसा कहा जाता है सम्राट अशोक के पुत्र अरहंत महिंदा ने राजा से देवनम्पीया तिस्सा से यहा मुलाकात की और उन्हें बौद्ध धर्म स्वीकार करने के लिए मनाया था देवनम्पीया तिस्सा उस समय इस स्थान पर शिकार पर थे यह स्थान बाद में अरहंत महिंदा और 3,000 बौद्ध भिक्षु का निवास बन गया था । इस स्थान पर बहुत सी पवित्र स्थान और गुफाएं मिली है जहा कभी बौद्ध भिक्षु रहे होगे ,

इसुरुमुनिया विहार, ,अनुराधपुरम ,श्रीलंका
इसुरुमुनिया तिसावेवा (तीसा टैंक) के पास मौजूद एक विहार है। यह बौद्ध विहार राजा देवनम्पीया तिस्सा द्वारा बनाया गया था जिन्होंने प्राचीन श्रीलंका की राजधानी अनुराधापुरा में शासन किया था । यह विहार एक गुफा से जुड़ा हुआ है जो चट्टान से ढ़की हुई है उस के ऊपर एक छोटा स्तूप बनाया गया है। यह साफ़ देखा जा सकता है स्तूप के ऊपर किया गया निर्माण का काम वर्तमान काल का है। और इस के पास एक चट्टान पर कुछ नक्काशी की गयी है।

Sunday 13 September 2015

मिरिसावेतिया स्तूप ,अनुराधपुरम ,श्रीलंका
मिरिसावेतिया स्तूप महान राजा दुतुगेमुनु द्वारा बनाया गया था जिनके राज का समय था (161-137 ईसा पूर्व) में ,उन्होंने श्रीलंका को एक झंडे के नीचे एकजुट किया
ऐसा कहा जाता है राजा दुतुगेमुनु के पास एक राज-दंड था जिस में बुद्ध के पवित्र अवशेष थे जब राजा दुतुगेमुनु एक बार पानी का कोई त्यौहार मानाने जा रहा था तब उस ने इस राज-दंड को किसी जगह गड़ा दिया जब वह वापस आया, तो वह और उस का कोई आदमी उस पवित्र राज-दंड को नहीं निकाल पाया और इस चमत्कार से अभिभूत हो कर राजा दुतुगेमुनु ने वह मिरिसावेतिया स्तूप का निर्माण कराया। एक और कहानी में ऐसा कहा जाता है की यह महान राजा दुतुगेमुनु की एलारा की महान विजय के याद में राज-दंड वहाँ रखा गया है और यह स्तूप बना के राजा दुतुगेमुनु बुद्ध के प्रति अपना समर्पण और श्रद्धा दिखाना चाहता था
अगले 700 सालो में यह स्तूप पूरी तरह तबाह हो गया क्यों की इस जगह से आबादी पूरी तरह खत्म हो गयी और यहा का राजघराना कही और चला गया ,जब अंग्रेज हेनरी पार्कर 1873 में मिरिसावेतिया स्तूप को देखा तो वह केवल एक मिटटी का ढेर था और उसे साफ़ कराया गया और इस के निर्माण की कोशिश की गयी पर पैसे की कमी की वजह से यह काम नहीं हो पाया और 1896 में यह काम आधे में रुक गया। इस के बाद इस को 1980 तक भुला दिया गया और 1980 में इस का निर्माण फिर शुरू हुआ और स्तूप फिर बनाया गया पर यह पूरा हो पता इस से पहले यह 1987 में फिर गिर गया और श्रीलंका सरकार की बड़ी किरकिरी हुई इस का निर्माण फिर किया गया और 1993 में इसे फिर से खोल दिया गया

थुपरमाया ,अनुराधपुरम ,श्रीलंका



महिंदा, सम्राट अशोक के पुत्र थे जो बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए  श्रीलंका में दूत के रूप में भेजे गए थे। इन के वजह से श्रीलंका में थेरावदा  बौद्ध धर्म की और चैत्य पूजा की शुरवात श्रीलंका  में हुई। उसके अनुरोध पर राजा देवनम्पियतिस्सा द्वारा थुपरमाया स्तूप या दोगबा बनवाया गया जो  बुद्ध की हंसली की हड्डी पर बना है और पवित्र मन जाता है यह बौद्ध धर्म की शुरूआत के बाद श्रीलंका में निर्मित पहला दोगबा माना जाता है।

Friday 4 September 2015

रुवनवेलिसया अनुराधपुरम ,श्रीलंका
रुवनवेलिसया श्रीलंका में एक स्तूप है,यह दुनिया भर में पवित्र स्तूप मना जाता है ,यह140 ईसा पूर्व में गामिनी अभया द्वारा बनाया गया था जो चोल राजा एलारा को हरा कर श्रीलंका का स्वामी बन गया था।
लोवामहापाया ,अनुराधापुरा, श्रीलंका
लोवामहापाया अनुराधापुरा, श्रीलंका के प्राचीन शहर में जया श्री महाबोधि और रुवनवेलिसया के बीच स्थित एक इमारत है। यह भी ब्रेजन पैलेस या लोहप्रसादय के रूप में जाना जाता है क्योंकि छत कांसे की टाइल्स के साथ ढकी हुई थी । प्राचीन समय में, इमारत चायख़ाना और उपोसथागरा (उपोसथा घर) शामिल थे। यहा सिममलके नाम की जगह थी जहाँ बौद्ध अनुयायी पोया के दिनों में इकठ्ठा हो कर बौद्ध धर्म के सूत्र सुना करते था।
लोवामहापाया राजा दुतुगेमनु द्वारा निर्मित एक ईमारत है यह ईमारत नौ मंज़िला थी और और इमारत की एक तरफ की लंबाई में 400 फुट (120 मीटर) थी। यहा 40 पंक्तियों में 40 पत्थर के खम्बे थे जो कुल मिला के 1600 खम्भों का निर्माण करते थे और इस पर छत भी मौजूद थी ऐसा कहा जाता है की इमारत के निर्माण के लिए छह साल लग गए थे इमारत पूरी तरह से राजा सद्धतिस्सा के शासनकाल के दौरान नष्ट हो गयी थी। आज यह एक छोटी सी ईमारत मौजूद है जो बौद्ध धर्मलम्बियो द्वारा उपोसथा के लिए उपयोग की जाती है
उपोसथा दिवस, राजा बिम्बिसार के अनुरोध पर बुद्ध द्वारा स्थापित किया गया था और बुद्ध इस दिन पर आम आदमियो के लिए बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को देने के लिए भिक्षुओं के निर्देश दिए थे
उपोसथा अनुपालन या आत्म -अवलोकन के लिए बौद्ध दिन है ,बुद्ध के समय (500 ईसा पूर्व) से अस्तित्व में है, और अभी भी कई बौद्ध देशों में इस दिन छुट्टी रहती है ,यह कई देशो में पूर्णिमा के दिन को उपोसथा का दिन मन जाता है और कई देशो में अर्ध चद्रमा के दिन को भी उपोसथा का दिन माना जाता है ,चीन और जापान में एक महीने में दस बार मनाया जाता है,1, 8 वीं, 14 वीं, 15 वीं, 18 वीं, 23 वीं, 24 वीं और प्रत्येक चांद्र मास के अंतिम तीन दिनों को उपोसथा अनुपालन का दिन मन जाता है।
इस दिन संघ के आम और खास सदस्य अपनी धार्मिक प्रथा का सही ढंग से पालन करने सीखते है ,धम्म के बारे में अपने ज्ञान को बढ़ाते है और सदियों पुराने धार्मिक कृत्यों के माध्यम से
अपनी धार्मिक प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं।प्रत्येक उपोसथा के दिन, बौद्ध उपासक और उपासिका पंचशील और आठ शीलो का अभ्यास करते है ,बौद्ध भिक्षु को उनकी तरह से भेंट देते है ,और बौद्ध उपासक और उपासिका ध्यान का अभ्यास भी करते है।
जया श्री महाबोधि अनुराधापुरा,श्रीलंका
जया श्री महा बोधि श्रीलंका के अनुराधापुर में एक पवित्र पीपल का पेड़ है ,यह वही पेड़ की एक शाखा है जिस के नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था ,यह 249 ईसा पूर्व में लगाया गया था,इसे 3 शताब्दी ईसा पूर्व में, यह सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा द्वारा श्रीलंका में तब लाया गया जब वे बौद्ध धर्म का प्रचार करने श्रीलंका आयी थी और इसे राजा देवनम्पीया तिस्सा दवरा लगाया गया था यह दुनिया में मौजूद सबसे पुराना मानव दवरा लगाया वृक्ष है