Saturday, 30 May 2015

फ़ा ठाट लुआंग स्तूप ,लाओस
लाओस एक छोटा देश है जो थाईलैंड के बाजु में है ,और यह देश भारतीयों के घूमने के लिए एक सस्ता और अच्छा स्थान है क्यों की भारत के 100 रूपये यहाँ के पैसे कीप के 12722 ( बारह हजार सात सौ बाईस ) के बारबार है
फ़ा ठाट लुआंग का बौद्ध स्तूप लाओस देश की राजधानी विनतिएन में मौजूद है और यह लाओस के लोगो के लिए गर्व का कारण है। यह स्तूप पूरी तरह सोने से धका हुआ है ,

फ़ा ठाट लुआंग का बौद्ध स्तूप 3 सदी में मौर्या साम्राज्य के समय बौद्ध धर्म का प्रचार करने आये बौद्ध भिक्षु द्वारा बनवाया गया था और ऐसा माना जाता है की यह बौद्ध भिक्षु अपने साथ भगवन बुद्ध के पवित्र अवशेष ले कर आये थे जिसे सम्राट अशोक ने भेजा था जो इस स्तूप में रखे थे और जिसे , जिसे खमेर साम्राज्य के मंदिर के रूप में 13 वीं सदी में फिर बनाया गया था जो बाद में तबाह हो गया था ।मध्य 16 वीं सदी में, राजा सेठथिरथ अपनी राजधानी लुआंग प्राबांग से आज के विनतिएन में ले कर आया और इस स्तूप का निर्माण करवाया और सन् 1641 में, डच ईस्ट इंडिया कंपनी के राजदूत गेर्रित वन वुयसोफ़्फ़ का भव्य स्वागत लाओस के राजा सौरिगना वोंगसा ने अपनी राजधानी विनतिएन में किया था ,जिस के बारे में डच राजदूत ने लिखा है की यह स्तूप हज़ारो पौंड के वजन के सोने से ढका था और यह इस स्तूप की भव्यता का प्रमाण है। पर ,फ़ा ठाट लुआंग का यह स्तूप 1828 में थाई आक्रमण से नष्ट हो गया था और इस स्तूप को परित्यक्त कर छोड़ दिया गया था ,और इसे फ्रेंच लोगो ने 1900 में इस के मूल स्वरूप में वापस बनाया जिसे फ्रेंच वास्तुकार लुई देलापोर्टे के विस्तृत चित्र के आधार पर बनाया गया है पर यह प्रयास विफल हुआ और इसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वापस बनाया जा सका
आज यह स्तूप लाओस के लोगो के लिए लाओ संस्कृति और पहचान का प्रतीक है यह स्तूप तीन हिस्सों में बना है जो बौद्ध सिद्धांतो का प्रतीक है यह स्तूप तीन स्तरों में बना है यह का पहला स्तर 226 फीट (68 मीटर) का है ,दूसरा स्तर 157 फीट (47 मीटर) है ,और तीसरा स्तर 98 फीट (29 मीटर) है और पूरा स्तूप 147.6 फीट (44 मीटर) का है

हाव फ्रा काइव बौद्ध मंदिर,लाओस 



लाओस एक छोटा देश है जो थाईलैंड के बाजु में है ,और यह देश भारतीयों के घूमने के लिए एक सस्ता और अच्छा स्थान है क्यों की भारत के 100 रूपये यहाँ के पैसे कीप के 12722 ( बारह हजार सात सौ बाईस ) के बारबार है


हाव फ्रा काइव का बौद्ध मंदिर यह के  राजा सेठथिरथ के आदेश पर 1565-1566 में बनाया गया था। इस मदिर में जैस्पर (जबरजद,सूर्यकांत मणि,मणिविशेष) पत्थर से बानी बुद्ध की मूर्ति राखी है जिसे ने  सोने की शाल पहन राखी है ऐसा कहा जाता है की इस मूर्ति को भारतीय राजा नागसेन ने 43 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (आज का पटना ) शहर में बनवाया था जहा यह 300 सालो तक रही और फिर इसे श्रीलंका भेज दिया गया ताकि उसे गृह युद्ध से बचाया जा सके ,फिर इसे बर्मा भेजा गया ताकि वहां बौद्ध धर्म का प्रचार किया जा सके ,पर इसे ले जा रहा जहाज भटक गया और यह गलती से कम्बोडिया जा पहुंची ,और जब 14 वीं सदी में आथुनिया साम्राज्य में प्लेग फैला तक इसे लाओस लाया गया ,पर इत्तिहासकार इस बात को गलत बताते है ,यह मदिर कई बार गिरा भी और इसे आखरी बार लाओस में राज कर रही फ्रेंच सरकार ने 1936 और 1942 के बीच अन्तिम बार सवार था , 

Thursday, 28 May 2015


वाट अरुण बौद्ध मंदिर, बैंकॉक , थाईलैंड 

यह वाट अरुण बौद्ध मंदिर थाईलैंड के याइ जिले में है ,जो चाओ फ्रया नदी के किनारे बना हुआ है ,ऐसा कहा जाता है की एक बौद्ध मंदिर अयुथिया साम्राज्य के समय से मौजूद था जिसे  वाट  मैकॉक कहा जाता था।  एक  प्रसिद्ध इत्तिहासकार बताते है की फ्रांसीसी नक्शे में दिखाया गया था इस जगह पे एक बौद्ध मंदिर राजा नंराई के शासनकाल (1656-1688) में भी था और जब अयुथिया साम्राज्य का पतन हुआ तब राजा ताकशिन ने अपनी राजधानी इस मदिर के पास   थोनबुरी  नाम की जगह पे बनायीं थी। ऐसा माना जाता है  की राजा ताकशिन ने यहा से गुजरते  हुआ इस मंदिर का वापस जीर्णोद्धार करने की  कसम खाई थी ,यह मंदिर ताकशिन साम्राज्य के शाही महल के पास था जब तक राजा ताकशिन के उत्तराधिकारी राजा रामा प्रथम उस महल को नदी के दूसरे तरफ नहीं ले गए और यह मदिर कुछ समय तक वीरान पड़ा रहा जब तक राजा रामा द्वितीय ने इस का वापस जीर्णोद्धार नहीं कराया और इस के खमेर शैली टॉवर को 70 मीटर उँचा नहीं बनवा दिया। 


वास्तुकला 

वाट अरुण की मुख्य विशेषता है इस का खमेर शैली टॉवर है जो  पोर्सिलेन नाम की रंगीन मिटटी से ढका गया है ,जिस की उचाई 66.8 मीटर है। खमेर शैली टॉवर का निर्माण यहा के राजा रामा द्वितीय के दौरान शुरू हुआ 1809-1824 और  राजा रामा तृतीय   (1824-1851) के समय पूरा हुआ। टावरों को राक्षसों और बंदरों की पंक्तियों के द्वारा सहारा दिया गया है ।

Thursday, 14 May 2015

दाशिंग शान बौद्ध मंदिर , शांक्सी प्रोविंस ,चीन
प्राचीन दाशिंग शान बौद्ध मंदिर चीन के शांक्सी प्रोविंस के प्राचीन नगरी शियान में मौजूद है यह पश्चिमी जिन राजवंश (265-316) के दौरान बनाया गया था। सुई और तांग राजवंशों के दौरान बौद्ध धर्म के अनुयाई यह व्यापक रूप में आये कई भारतीय भिक्षुओं यहा सूत्र अनुवाद और बौद्ध सिद्धांतों के प्रचार करने के लिए यहा पर रहे.समय के साथ,दाशिंग शान बौद्ध मंदिर विशेष रूप से बौद्ध सूत्र के अनुवाद करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाले तीन मंदिरों में से एक बन गया जिस में और दो थे अन्य दो डा सी बौद्ध मंदिर इन और जिअंनफु बौद्ध मंदिर हैं।

वाइल्ड गूज पैगोडा , शांक्सी प्रोविंस ,चीन
चीन के शांक्सी प्रोविंस के प्राचीन नगरी शियान में मौजूद है इस वृहद संरचना (वाइल्ड गूज पैगोडा) का निर्माण बौद्ध भिक्षु ह्वेन शांग के 17 साल के भारत के सफर को रेखांकित करने के लिए छठी शताब्दी में किया गया था तब यह पगोडा पांच मंजिला था पर बाद में इसे महारानी वू ज़िटियन के द्वारा 704 में फिर से बनाया गया था और इस में पांच नयी मंज़िल जोड़ी गयी थी पर बाद में 1556 में बड़े पैमाने पर भूकंप में यह तबाह हो गया था और इसे फिर से बनाया गया आज यहा सात मंज़िले है।