हाव फ्रा काइव बौद्ध मंदिर,लाओस
लाओस एक छोटा देश है जो थाईलैंड के बाजु में है ,और यह देश भारतीयों के घूमने के लिए एक सस्ता और अच्छा स्थान है क्यों की भारत के 100 रूपये यहाँ के पैसे कीप के 12722 ( बारह हजार सात सौ बाईस ) के बारबार है
हाव फ्रा काइव का बौद्ध मंदिर यह के राजा सेठथिरथ के आदेश पर 1565-1566 में बनाया गया था। इस मदिर में जैस्पर (जबरजद,सूर्यकांत मणि,मणिविशेष) पत्थर से बानी बुद्ध की मूर्ति राखी है जिसे ने सोने की शाल पहन राखी है ऐसा कहा जाता है की इस मूर्ति को भारतीय राजा नागसेन ने 43 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (आज का पटना ) शहर में बनवाया था जहा यह 300 सालो तक रही और फिर इसे श्रीलंका भेज दिया गया ताकि उसे गृह युद्ध से बचाया जा सके ,फिर इसे बर्मा भेजा गया ताकि वहां बौद्ध धर्म का प्रचार किया जा सके ,पर इसे ले जा रहा जहाज भटक गया और यह गलती से कम्बोडिया जा पहुंची ,और जब 14 वीं सदी में आथुनिया साम्राज्य में प्लेग फैला तक इसे लाओस लाया गया ,पर इत्तिहासकार इस बात को गलत बताते है ,यह मदिर कई बार गिरा भी और इसे आखरी बार लाओस में राज कर रही फ्रेंच सरकार ने 1936 और 1942 के बीच अन्तिम बार सवार था ,
लाओस एक छोटा देश है जो थाईलैंड के बाजु में है ,और यह देश भारतीयों के घूमने के लिए एक सस्ता और अच्छा स्थान है क्यों की भारत के 100 रूपये यहाँ के पैसे कीप के 12722 ( बारह हजार सात सौ बाईस ) के बारबार है
हाव फ्रा काइव का बौद्ध मंदिर यह के राजा सेठथिरथ के आदेश पर 1565-1566 में बनाया गया था। इस मदिर में जैस्पर (जबरजद,सूर्यकांत मणि,मणिविशेष) पत्थर से बानी बुद्ध की मूर्ति राखी है जिसे ने सोने की शाल पहन राखी है ऐसा कहा जाता है की इस मूर्ति को भारतीय राजा नागसेन ने 43 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (आज का पटना ) शहर में बनवाया था जहा यह 300 सालो तक रही और फिर इसे श्रीलंका भेज दिया गया ताकि उसे गृह युद्ध से बचाया जा सके ,फिर इसे बर्मा भेजा गया ताकि वहां बौद्ध धर्म का प्रचार किया जा सके ,पर इसे ले जा रहा जहाज भटक गया और यह गलती से कम्बोडिया जा पहुंची ,और जब 14 वीं सदी में आथुनिया साम्राज्य में प्लेग फैला तक इसे लाओस लाया गया ,पर इत्तिहासकार इस बात को गलत बताते है ,यह मदिर कई बार गिरा भी और इसे आखरी बार लाओस में राज कर रही फ्रेंच सरकार ने 1936 और 1942 के बीच अन्तिम बार सवार था ,
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