Thursday, 27 August 2015

मेस अयनक ,काबुल,अफगानिस्तान (बौद्ध खंडहर)
मेस अयनक ,काबुल से 40 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में है यहा पर गन्धरा काल के बौद्ध स्तूप मिले है। जो लगभग लगभग 400,000 वर्ग मीटर में फैला है। यहा पर बुद्ध की मुर्तिया, स्तूप ,बौद्ध मठ आदि मिले है।




Monday, 3 August 2015

कतेक मठ तिब्बती

कतेक मठ तिब्बती बौद्ध धर्म के न्यिन्गमा स्कूल के छह प्रमुख मठों में से एक है।यह  चीन के   सिचुआन में स्थित है। इसे फाग्मो  दृपा  दोरजे  ग्यल्पो  के एक छोटा भाई द्वारा 1159 में स्थापित किया गया था। 
पोताला  पैलेस,तिब्बत  


पोताला  पैलेस  तिब्बत  की राजधानी  ल्हासा में है  यह स्थान दलाई लामा का का   मुख्य निवास स्थान था जब तक 14 वें दलाई लामा 1959 तिब्बती विद्रोह के दौरान भारत नहीं आ गए यह अब एक संग्रहालय और विश्व विरासत स्थल है।
 जोखांग  मठ  ,तिब्बत 


जोखांग  मठ  को  642 में राजा सोंगत्सान  गम्पो  द्वारा निर्माण किया गया था।प्रसिद्ध बौद्ध मास्टर अतिशा  11 वीं शताब्दी में यहां पढ़ाया करते थे और यह ल्हासा में सबसे महत्वपूर्ण मठों में एक बन गया था यहा पर  मंगोलों द्वारा कई बार हमला  किया गया था, लेकिन इमारत बच गई।पिछले कई शताब्दियों में मंदिर परिसर का विस्तार किया है और अब लगभग 25,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र में यह फैला है। जुलाई 1966 में,सांस्कृतिक क्रांति के दौरान कट्टरपंथी चीनी  रेड गार्ड ने यहा हमला किया हजारों बौद्ध धर्म ग्रंथों को लूट लिया और आग लगा दी।
गानदेंन  मठ,तिब्बत


गानदेंन  मठ 1409 में जी त्सोंगखापा  लोसाँग -द्रगपा  (1357-1419) द्वारा स्थापित किया गया था।यह मठ ल्हासा से 40 किलोमीटर की दूरी पर  पूर्वोत्तर में है।निर्वासित तिब्बती आबादी  ने इस मठ की एक शाखा भारत के कर्नाटका में खोली है। 
सेडा मठ - तिब्बती बौद्ध धर्म का सबसे  बड़ा  स्कूल।

सेडा मठ  गार्जे  तिब्बती स्वायत्त प्रान्त में मौजूद है 

यह स्कूल सबसे  पहले 1980 में सांस्कृतिक क्रांति के बाद शुरू हुआ 10,000 से अधिक भिक्षुओं और  भिक्षुणी के लिए घर है और साल के कुछ भागो में यहा   40,000 भिक्षुओं और  भिक्षुणी निवास करते है और एक कमरे में करीब 4 लोग तक रहते है 
लॉन्गमैन गुफा ,हेनान,,चीन
मध्य चीन के हेनान प्रांत में स्थित लॉन्गमैन गुफा वर्ष 2000 में यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त विश्व सांस्कृतिक धरोहर में से एक है। चीन की सर्वोच्च पत्थर पर की गई नक्काशी वाली इस लॉन्गमैन गुफा उत्तर से दक्षिण दिशा में करीब एक किलोमीटर लंबी है और इसमें 1300 गुफाएं, 50 पगौडा और 97000 से अधिक बुद्ध की प्रतिमाएं मौजूद हैं। यहां केवल पत्थर पर की गई नक्काशी वाला का ही संग्रहालय नहीं है, बल्कि इसे इतिहास और संस्कृति का विश्वकोश भी माना जाता है।


त्वुनहुंग की मकाओ गुफा
मकाओ गुफा उत्तर पश्चिम चीन के त्वुनहुंग में स्थित एक विशाल कला खजाना है , जो चीन की चार प्रमुख बौद्ध गुफाओं में से सबसे बड़ी और सब से प्रचूर पाषाण कलाकृतियों से संगृहित गुफा समूह है और अब तक विश्व में सुरक्षित सब से विशाल और सब से अच्छी तरह संरक्षित बौध कला खजाना मानी जाती है।
मकाओ गुफा उत्तर पश्चिमी चीन के कानसू प्रांत के त्वुनहुंग शहर के दक्षिण पूर्व में खड़े मिंगशा पहाड़ की पूर्वी तलहटी में स्थित है । मिंगशा पहाड़ी के पूर्वी पक्ष की चट्टानों पर दक्षिण उत्तर की दिशा में पांच मंजिलों पर खुदी अनगिनत गुफाएं बड़ी सुन्दर शैली में पंक्तिबद्ध अवस्थित हैं , जो अत्यन्त शानदार और ध्यानाकर्षक है ।
कहा जाता है कि मकाओ गुफा का निर्माण स्थल ल्ये चुन नाम के एक बौद्ध भिक्षु द्वारा निश्चित किया गया था । ईस्वी 366 में बौद्ध भिक्षु ल्ये चुन जब तुन हुङ जिले के सानवी पहाड़ की तलहटी पहुंचे , तो वक्त संध्या की वेली था , विश्राम के लिए वहां कोई जगह नहीं थी , इसी बीच उस की निगाह उठी , तो निगाह के आगे खड़े मिन शा पर्वत चोटी पर सुनहरी किरणें फूटने लगी , मानो हजारों बुद्ध महात्मा किरणों से दिव्यदृष्ट हो रहे हो । बड़े आश्चार्य का दृश्य था , भिक्षु ल्ये चुन एकदम मनमुग्ध हो गया, मन ही मन सोचा कि यह निश्चय ही एक तीर्थ स्थान है । ल्ये चुन ने इस पवित्र स्थान में बुद्ध गुफा खोदने का निश्चय किया , उस ने बड़ी संख्या में कारीगरों को बुला कर गुफा का निर्माण काम आरंभ किया , गुफा खोदने का काम विस्तृत होता चला गया और थांग राजवंश के समय तक यहां एक हजार से ज्यादा गुफाएं खोदी जा चुकी थीं ।
एतिहासिक उल्लेख के अनुसार ईस्वी तीन सौ 66 से ले कर लगातार एक हजार वर्षों की लम्बी अवधि में यहां गुफाओं का निर्माण जारी रहा , सातवीं शताब्दी के थांग राजवंश तक यहां एक हजीर से अधिक गुफाएं खोदी गई थी , इसलिए मकाओ गुफा सहस्त्र बौध गुफा भी कहलाती है ,14वीं शताब्दी तक एक हजार छह सौ अस्सी मीटर लम्बा विशाल गुफा समूह बनाया जा चुका था ।
चीन के विभिन्न राजवंशों के लोगों ने मकाओ गुफाओं में बड़ी संख्या में बुद्ध मुर्तियां खोदी थीं और रंगीन भित्ति चित्र बनाए थे । मकाओ गुफा पूर्व और पश्चिम को जोड़ने वाले रेशम मार्ग पर स्थित था और प्राचीन काल में पूर्व पश्चिम की धार्मिक व सांस्कृतिक ज्ञान के आदान प्रदान का संगम स्थल था , इसलिए मकाओ गुफा की कलाकृतियों में चीनी और विदेशी कलाओं का अनूठा समावेश हुआ था और विविध कला शैलियों के कारण वह विश्व का शानदार और महान कला खजाना बन गई ।
कालांतर में एतिहासिक परिवर्तन होने तथा विभिन्न प्रकार की क्षति लगने के परिणामस्वरूप मकाओ गुफा समूह में अब कुल पांच सौ गुफाएं बची हैं ,जिन में करीब पचास हजार वर्ग मीटर के भित्ति चित्र तथा दो हजार से ज्यादा बुद्ध मुर्तियां सुरक्षित हैं । गुफाएं आकार और साइज में अलग अलग होती हैं और गुफाओं में सुरक्षित मुर्तियां छोटी बड़ी विविध रूप रंगों में हैं , उन के आभूषण और हस्त मुद्रा भी नाना प्रकार की है , जिस से भिन्न भिन्न एतिहासिक कालों की विशेषता व्यक्त होती है । भित्ति चित्रों में बहुधा बौध धर्म की कथाएं हैं । हजार से अधिक साल गुजरने के बाद भी अब गुफाओं में सुरक्षित भित्ति चित्र रंग में चटक और ताजा लगते हैं । यदि इन चित्रों को एक सूत्र में जोड़ा गया , तो उन की लम्बाई तीस किलोमीटर होगी ।
देश के दूर दराज निर्जन क्षेत्र में स्थित होने के कारण मकाओ गुफा सदियों से बाह्य दुनिया के लिए अज्ञात रही थी । बीसवीं शताब्दी के आरंभिक काल में संयोग से इस रहस्यमय गुफा का पता चला , जिस में प्राप्त विशाल कला कृति खजाने ने सारी दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया ,साथ ही उस के लूटखसोट की हृद्यविदारक कहानी भी हुई ।
वर्ष 1900 में मकाओ गुफा के प्रबंधक साधु वांग द्वारा संयोग रूप से एक गुप्त पुस्तक भंडार का पता लगा , इस गुप्त भंडार को आगे चल कर बौध सूत्र गुफा कहलाने लगी । इस तीन मीटर लम्बे चौड़े भंडार में बौध सूत्रों , दस्तावेजों , रेशमी कपड़ों , चित्रों , रेशमी बुद्ध तस्वीरों तथा हस्तलिपि की प्रतियों के ढेर के ढेर छुपे थे , जिन की संख्या 50 हजार से अधिक थी । ये सांस्कृतिक अवशेष ईस्वी चौथी शताब्दी से ले कर 11 वीं शताब्दी तक के थे और उन में चीन , मध्य एशिया , दक्षिण एशिया तथा यूरोप के इतिहास , भूगोल , राजनीति , जाति , सेना , भाषा लिपि , कला साहित्य , धर्म और औषधि चिकित्सा जैसे सभी क्षेत्रों के विषय मिलते थे , जो चीन का प्राचीन विश्व कोश माना जाता है ।
गुप्त पुस्तक भंडार का पता चलने के बाद साधु वांग ने पैसा कमाने के लिए उस में से कुछ सांस्कृतिक अवशेषों को बाजार में बेचा , इस से मकाओ गुफा में मूल्यवान सांस्कृतिक अवेशष सुरक्षित होने की खबर भी लोगों में फैल गई । उसकी ओर विश्व के विभिन्न देशों के तथाकथित अन्वेषज्ञों का ध्यान भी आकृट हो गया , वे उसे लूटने के लिए एक के बाद एक त्वुनहुंग आ धमके । मात्र बीस से कम सालों की अवधि में वे त्वुनहुंग की मकाओ गुफा से 40 हजार बौध सूत्र और बड़ी मात्रा में अमोल भित्ति चित्र व मुर्तियां लूट कर अपने देश ले गए, जिस से मकाओ गुफा की संपत्ति को अकूत भारी क्षति पहुंची ।अब भी ब्रिटेन , फ्रांस , रूस , भारत , जर्मनी , डैन्मार्क , स्वीडन , दक्षिण कोरिया , फनलैंड तथा अमरीका में त्वुनहुंग की मकाओ गुफा के हजारों अवशेष संगृहित रहे हैं , जिन की कुल संख्या बौध सूत्र गुफा के कुल अवशेषों का दो तिहाई भाग बनती है ।
बौध सूत्र गुफा का पता लगने के बाद कुछ चीनी विद्वान भी त्वुनहुंग के सांस्कृतिक धरोहरों के अध्ययन में लगे । वर्ष 1910 में प्रथम खपे में चीनी विद्वानों की विशेष रचनाएं प्रकाशित हुईं , इस तरह विश्व उत्कर्ष शास्त्र के नाम से त्वुनहुंग शास्त्र का जन्म हुआ । बीते दशकों में विश्व के विभिन्न देशों के विद्वानों ने त्वुनहुंग कला पर बड़ा उत्सुकता दिखाई और उस पर लगातार अनुसंधान किया । चीनी विद्वानों ने त्वुनहुंग शास्त्र के अध्ययन में जो भारी उपलब्धियां प्राप्त की है , उस का अत्यन्त बड़ा प्रभाव हुआ है ।



मूल्यवान चीनी सांस्कृतिक खजाने के रूप में त्वुनहुंग की मकाओ गुफा की रक्षा को चीन सरकार हमेशा बड़ा महत्व देती आई है । चीन सरकार ने वर्ष 1950 में उसे राष्ट्रीय श्रेणी के संरक्षण वाले प्रमुख सांस्कृतिक अवशेष नाम सूची में शामिल किया , वर्ष 1987 में युनेस्को ने उसे विश्व सांस्कृतिक धरोहर नामसूची में रखा ।विश्व के विभिन्न स्थानों से मकाओ गुफा का दौरा करने आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ती जा रही है । मकाओ गुफा के अवशेषों की रक्षा के लिए चीन सरकार ने मकाओ गुफा के सामने सानवी पहाड़ की तलहटी में त्वुनहुंग कला संग्रहालय बनाया , जिस में मकाओ गुफा की कुछ कला कृतियों की प्रतियां प्रदर्शित होती हैं ।
इधर के सालों में चीन सरकार ने बीस करोड़ य्वान की राशि लगा कर मकाओ गुफा का काल्पनिक दिजिगल गुफा बनाने की योजना बनायी । सूत्रों के अनुसार दिजिगल गुफा में दर्शक असली मकाओ गुफा देखने का अनुभव पा सकते हैं , दिजिगल गुफा के भीतर घूमते हुए भीतरी स्थापत्य कला , रंगीन मुर्तियां तथा भित्ति चित्र आदि सभी कला कृतियां देखने को मिलती हैं । विशेषज्ञों का कहना है कि दिजिगल मकाओ गुफा के निर्माण से मकाओ गुफा के असली भित्ति चित्रों को क्षति पहुंचने से बचाया जा सकता है और त्वुनहुंग के सांस्कृतिक धरोहकों को पंजीकृत तथा सुरक्षित करने में मदद मिलेगी , ताकि मकाओ गुफा के अवशेषों और संस्कृति की आयु दीर्घ बनायी जाएगी ।
फयू बौद्ध मंदिर ,झेजियांग,चीन 

मंदिर 33,000 मीटर के एक भूमि क्षेत्र है। यह 9,300 मीटर वर्ग के निर्माण क्षेत्र के साथ, 294 हॉल और कमरे शामिल है।  इसे पहली बार 15 वि सदी में बनाया गया था 

Sunday, 2 August 2015

लिउहे पगोडा ,झेजियांग,चीन 

यह मूल रूप से उत्तरी सांग राजवंश (960-1127) के दौरान 970 ईस्वी में निर्माण किया गया था,
1121 में नष्ट कर दिया, और दक्षिणी सांग राजवंश (1127-1279) के दौरान, 1165 से पूरी तरह से वापस बनाया गया। अतिरिक्त बाहरी ओरी  का काम मिंग (1368-1644) और किंग के राजवंशों (1644-1911) के समय किया  गया था। पैगोडा  अष्टकोणीय आकार में है और 13 मंज़िला है और 59.89 मीटर लम्बा है। 
लिंगइन मठ ,झेजियांग,चीन 

मठ भारत से आया है जो भिक्षु हुई ली ने पूर्वी जिन राजवंश के दौरान 328 ईस्वी में स्थापित किया गया था। वुयूए  साम्राज्य (907-978) के तहत अपने चरम पर, मंदिर में 3000 से अधिक भिक्षुओं का निवास  था ,नौ बहुमंजिला इमारतों, 18 मंडप, 72 हॉल, 1300 से अधिक छात्रावास के कमरे भी इस समय बनाये गए थे बाद में दक्षिणी सांग राजवंश के दौरान, मठ, झेजियांग बौद्ध धर्म के  चेन संप्रदाय के दस सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक माना जाता था।


जिंगकी बौद्ध मंदिर झेजियांग,चीन
जिंगकी बौद्ध मंदिर को पहले हुिरि योंगमिंग बौद्ध मंदिर कहा जाता था यह पहली बार वुयूए साम्राज्य के राजा कियान होंगज़ी द्वारा ई 954 में बनाया गया था एक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु योंगमिंग यानशो के लिए दक्षिण सांग राजवंश में, जैसा कि इसके नाम जिंगकी बौद्ध मंदिर कर दिया गया था, इतिहास में इस मन्दिर को कई बार नष्ट कर दिया गया और फिर से बनाया गया था।वर्तमान मंदिर का बहुत सा हिस्सा है 1980 में बनाया गया था विशेष रूप से, 100 से अधिक किलोग्राम वजनी एक तांबे की घंटी।
गूॉकिंग  बौद्ध मंदिर,झेजियांग,चीन 


इस बौद्ध मंदिर को मूल रूप से सुई राजवंश के दौरान 598 ईस्वी में बनाया गया है,और किंग   सम्राट याँगचंग के शासनकाल के दौरान (1722-1735 ईस्वी) इस का जीर्णोद्धार कराया गया था। महायान बौद्ध धर्म के तिअनताई स्कूल का उदय यही से मन जाता है जो बाद में जापान और कोरिया में भी फैला।

 बाओगो बौद्ध मंदिर,झेजियांग,चीन 


मंदिर को पहले  लिंग्शन बौद्ध मंदिर कर नाम से जाना जाता था और इसे ग राजवंश के दौरान 880 ईस्वी में बनाया गया था और इस का नाम बाओगो बौद्ध मंदिर नाम दिया गया था।  मुख्य हॉल उत्तरी सांग राजवंश के दौरान, 1013 ईस्वी में बनाया गया था। और यह  चीन के  सबसे पुराना और सबसे अच्छी तरह से संरक्षित लकड़ी के निर्माण कार्य में से एक है। इस मंदिर में  तांग साम्राज्य , मिंग साम्राज्य और किंग साम्राज्य के समय भी कुछ काम हुआ था।  
युआनटोंग  बौद्ध मंदिर ,युन्नान,चीन

यह पहली बार देर से 8 वीं और 9 वीं शताब्दी के शुरू में बनाया गया था,तांग राजवंश में ननज़हो  साम्राज्य  के  समय में में

 मिंग राजवंश (1465-1487) और किंग राजवंश (1686) के समय में दो प्रमुख पुनर्स्थापनों और विस्तार का कार्य इस बौद्ध मंदिर में किया गया 
चोंगशेंग बौद्ध मंदिर के तीन पगोडा,युन्नान,चीन
तीन पगोडा ईंटाें से बना है और सफेद मिट्टी के साथ ढके हुए हैं। किअन्सुन पगोडा जो मुख्य पैगोडा है कथित तौर पर राजा क्वान फेंगयौ ने 823-840 ईस्वी के दौरान बनाया गया इस की उचाई 69.6 मीटर (227 फीट) है और चीन के इतिहास में सबसे बड़ा पगोडा में से एक है ,अन्य दो पगोडा को लगभग सौ साल बाद बनाया गया था इन की उचाई 42.19 मीटर (140 फीट) है।
बाओ ’इन बौद्ध मंदिर   ,शन्शी,चीन

यह  बौद्ध मंदिर 1440 और 1446 के बीच, वांग क्सी, नाम के स्थानीय मुखिया द्वारा बनाया गया था मठ परिसर 1443 तक पूरा कर लिया गया था।दीवार के चित्रों, मूर्तियों और अन्य सजावटी विवरण का काम 1460 तक पूरी तरह  समाप्त हो गया था ।

Saturday, 1 August 2015

नांचन बौद्ध मंदिर  ,शन्शी,चीन


एक बीम पर एक शिलालेख के अनुसार,नांचन बौद्ध  मंदिर तांग राजवंश के दौरान 782 ईस्वी में बनाया गया था।यह 845 में जब  सम्राट वूज़ोंग चीन में बौद्ध धर्म पर प्रतिबंध लगा दिया तब यह मंदिर विनाश से बच गया क्यों की यह पहाड़ो में अलग तलक स्थल पर है एक और बीम पर लिखा शिलालेख इंगित करता है कि  हॉल सांग राजवंश की 1086 में पुनर्निर्मित किया गया था, और उस समय के दौरान मूल वर्ग स्तंभों को गोल स्तंभों से बदला गया था,
फोगोंग  मंदिर का पैगोडा  ,शन्शी,चीन


फोगोंग  मंदिर का पैगोडा  डटोंग पर दक्षिण लियाओ राजवंश की राजधानी से 85 किमी (53 मील) बनाया गया था  पैगोडा तिआन नाम के एक बौद्ध भिक्षु ने  1056 में बनवाया है। 
फोगअंग बौद्ध  मंदिर ,शन्शी,चीन 


यह बौद्ध मंदिर उत्तरी वी राजवंश के दौरान पांचवीं शताब्दी में स्थापित किया गया था।785-820 के वर्षों से,में मंदिर   में निर्माण कार्य किया गया 32 मीटर का मंडप बनाया गया 845 में सम्राट वूज़ोंग  चीन में बौद्ध धर्म पर प्रतिबंध लगा दिया और मंदिर को जल दिया गया  और केवल ज़ूशी पैगोडा ही बचा ,बारह साल बाद 857 में बौद्ध मंदिर वापस  बनाया गया था,निंग गोन्ग्यु  नामक महिला, हॉल के निर्माण के लिए आवश्यक धन दान दिया 

जिंग 'अंन् बौद्ध मंदिर ,शंगाई ,चीन 


यह बौद्ध मंदिर  प्राचीन चीन के तीन राज्यों की अवधि के दौरान वू साम्राज्य  में 247 ईस्वी में बनाया गया था।मूलतः  यह मंदिर सूज़ौ क्रीक के बगल में स्थित था सांग राजवंश के दौरान 1216 में इस की जगह बदली गयी और आज की जगह पर लाया गया ,वर्तमान मंदिर किंग राजवंश में बनाया गया था,लेकिन, सांस्कृतिक क्रांति के दौरान, मंदिर एक प्लास्टिक कारखाने में परिवर्तित कर दिया गया 1983, वह अपने मूल उद्देश्य को लौटा दिया  गया और पुनर्निर्मित किया गया और इस में  जिंग 'अंन्  पैगोडा  के साथ 2010 में पूरा किया।
जेड  बौद्ध मंदिर ,शंघाई,चीन 

किंग राजवंश में सम्राट गुआंग जू के शासन (1875-1908) के दौरान,हुई जन नाम का एक बौद्ध भिक्षु तिब्बत  पर एक तीर्थ यात्रा पर गए थे तिब्बत के बाद वह  बर्मा गया वहां  चेन जून-पु, जो  बर्मा में तेह रहा एक चीनी  विदेशी नागरिक था उस ने हुई जन को बुद्ध के पांच जेड मूर्तियों (हरिताश्म) का दान दिया,जो ,  हुई जन शंघाई वापस लेकर आया और  दान  के धन से एक बौद्ध मंदिर बनाया ,और उसके बाद   शीघ्र ही उनकी मृत्यु हो गई   इस मंदिर 1911 के विद्रोह के दौरान कब्जा कर लिया था और मूर्तियों मैगेन  रोड के लिए ले जाया गया।

के चेन के नाम से एक बौद्ध  मठाधीश ने , बाद में शेंग द्वारा दान भूमि पर बनाया गया एक नया मंदिर था,शेंग  जो  किंग साम्राज्य की अदालत में एक वरिष्ठ अधिकारी  था
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