Friday, 6 May 2016
बाओ क्वॉक् पैगोडा,हुऐ शहर,वियतनाम
बाओ क्वॉक् पैगोडा वियतनाम के हुऐ शहर में मौजूद है परफ्यूम नदी के किनारे इसे 1670 में , चीन से एक बौद्ध भिक्षु थिच गियाक फोंग ने बनाया गया था, 18 वी सदी में न्गुयेन राजवंश के समय इस पैगोडा का विस्तार किया गया था यह पैगोडा करीब 2 हेक्टर में फैला है
पैगोडा स्तूप का ही रूप होता है
Wednesday, 27 April 2016
ट्रेन क्वाक पैगोडा , हनोई ,वियतनाम
ट्रेन क्वाक हनोई शहर में सबसे पुराना बौद्ध पैगोडा है मूल रूप से सम्राट लय नाम दे के समय छठी शताब्दी में निर्मित 1,450 साल पुराना है यह बौद्ध पैगोडा में सबसे बड़ा मरम्मत का काम 1815 में किया गया था जब इस के हाल के साथ रिसेप्शन हॉल और सैंक्चुअरी में मरमत की गयी थी इस पैगोडा का एक मुख्य भाग ट्रेन क्वाक बौद्ध मंदिर या पैगोडा है यह कुछ महत्वपूर्ण भिक्षु की अस्थियां रखी है पगोडा में से अधिकांश 17 वीं सदी में बनाया गया था, लेकिन सबसे बड़ा पैगोडा 2004 में पुनर्निर्माण किया गया था। यह पैगोडा लाल रंग का है क्योंकि चीनी और वियतनामी संस्कृति में लाल सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है
Thursday, 7 April 2016
प्राचीन बौद्ध गुफा देवगढ़, ललितपुर, उत्तर प्रदेश,
देवगढ़ गांव बेतवा नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है और यह स्थान देवगढ़ नाम के प्रसिद्द जैन तीर्थस्थल के पास है यह महावीर स्वामी वन्यजीव अभयारण्य में मौजूद है इस तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है इस तक पहुंचने के लिए आप को नाव का इस्तेमाल करना होगा यह प्रसिद्द देवगढ़, जैन तीर्थस्थल से 6 किलोमीटर दूर जंगल में स्थित है
बौद्ध धर्म की बाग की गुफाएँ
बाग गुफाएं, मध्य प्रदेश में धार जिले से 17 किलोमीटर दूर विन्ध्य पर्वत के दक्षिणी ढलान पर हैं । ।कुछ इतिहासकार इन्हें चौथी और पांचवी सदी में निर्मित मानते हैं । लेकीन अधिकतर 7 वीं सदी में बानी है । ये इंदौर और वडोदरा के बीच में बाघिनी नदी के किनारे हैं इन गुफाओं का संबंध बौद्ध धर्म के महायान मत से है दुर्गम स्थल पर स्थित होने के कारण सैर-सपाटा पसंद करने वाले लोग उस तरफ आसानी से रुख नहीं करते लेकिन दूर देश से आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए यह धरोहर एक जिज्ञासा का विषय हमेशा से बनी रहती है। बौद्ध धरम को दर्शाती हुई इन 9 गुफायों में से केवल 5 ही अभी बची हुई हैं
पहली गुफा 'गृह गुफा' कहलाती है। दूसरी गुफा 'पांडव गुफा' के नाम से प्रख्यात है। यह बाकी सब गुफाओं से अधिक बड़ी और अधिक सुरक्षित प्रतीत होती है। तीसरी गुफा का नाम 'हाथीखाना' है। इसमें बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए कोठरियाँ बनी हुई हैं। चौथी गुफा को 'रंगमहल' कहा जाता है। पाँचवी गुफा बौद्ध भिक्षुओं के एक स्थान पर बैठकर प्रवचन सुनने के लिए बनाई गई थी। पाँचवी और छठी गुफा आपस में मिली हुई हैं तथा इनके बीच का सभा मंडप 46 फुट वर्गाकार है।
सातवीं, आठवीं और नौवीं गुफाओं की हालत ठीक नहीं है और वे अवशेष मात्र ही नजर आती हैं। इन गुफाओं की एक विशेषता यह भी है कि इनके अंदर जाकर इतनी ठंडक का अहसास होता है जैसे आप किसी एयरकंडीशन कक्ष में आ गए हों। गुफाओं के अंदर कई जगह से पहाड़ों से प्राकृतिक तरीके से पानी भी रिसकर आता रहता है। ये गुफाएँ कई शताब्दी पुरानी हैं।
भित्ति चित्र अब संग्रहालय में :
बाग की गुफाओं के भित्ति चित्र कई शताब्दियों तक प्रकृति ने सहेजकर रखे थे। बाद में जंगलों की कटाई और गुफाओं में बाबाओं-महात्माओं द्वारा आग जलाने और धुँआ करने के बाद इन भित्ति चित्रों पर संकट मंडराने लगा। गुफाओं के अंदर चमगादड़ों ने भी अपने डेरे बना लिए थे। नमी और आर्द्रता की वजह से भी भित्ति चित्र प्रभावित हो रहे थे। तब इन्हें गुफा से हटाने का निर्णय लिया गया।
1982 से इन चित्रों को दीवारों व छतों से निकालने का कार्य शुरू हुआ। नमी से प्रभावित इन चित्रों को तेज धार वाले औजारों से काटकर दीवारों से अलग किया गया। निकाले गए चित्रों को मजबूती देने के उद्देश्य से फाइबर ग्लास एवं अन्य पदार्थों से माउंटिंग की गई। चित्रों को वापस मूल स्वरूप में लाने के लिए उनकी रासायनिक पदार्थों से फैंसिंग की गई।
बाद में इन चित्रों को गुफाओं के सामने निर्मित संग्रहालय में रखा गया। इन चित्रों को अब संग्रहालय में ही देखा जा सकता है। गुफाओं के भीतर अब सिर्फ मूर्तियाँ ही बची हैं जिनमें से अधिकांश बुद्ध की हैं या फिर बुद्ध के जीवनकाल से जुड़ी घटनाओं को बयान करती हैं।
कैसे जाएँ, कब जाएँ :
बाग की गुफाएँ बहुत सुंदर स्थान पर स्थित हैं। सामने बाग नदी बहती है और चारों ओर हरियाली तथा जंगल हैं। धार जिले में विंध्य श्रेणी के दक्षिणी ढाल पर, नर्मदा नदी की एक सहायक नदी बागवती के किनारे उसकी सतह से 150 फुट की ऊँचाई पर यह विश्व प्रसिद्ध गुफाएँ हैं। अगर आप स्वंय के वाहन से बाग जाना चाहते हैं तो उसमें काफी सहूलियत रहेगी। इंदौर से 65 किलोमीटर दूर है धार।
धार से 71 किलोमीटर की दूरी पर आदिवासी क्षेत्र टांडा है। यहाँ पहुँचने के बाद बाग कस्बा सिर्फ 20 किमी दूर रह जाता है। बाग पहुँचने के बाद 7 किमी का रास्ता तय करके इन गुफाओं तक पहुँचा जा सकता है। यहाँ जाने का सबसे अच्छा मौसम बारिश का है क्योंकि गुफाओं के सामने बहने वाली बाग नदी उस समय बहती है। यह मौसमी नदी है और गर्मियाँ आने तक सूख जाती है। नदी के सूखने से वहाँ का दृश्य थोड़ा अधूरा-अधूरा सा लगने लगता है।
Tuesday, 22 March 2016
बौद्ध गुफा पोहाले पांडव लेणी,कोल्हापुर ,महाराष्ट्र
पोहाले पांडव लेणी गुफाएं बौद्ध पुरातात्विक स्थल है जो महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर से 8 किमी उत्तर पश्चिम में तालुका पन्हाला में स्थित है इन गुफाओं लेटराइट चट्टान में खुदी हुई है वहाँ दो मुख्य गुफाओं हैं जिस में से एक में चैत्य है दो चट्टानों को काटकर पानी का एक स्रोत भी है ,यह पर कुछ लोगो ने एक शिवलिंग रख दिया है जिस देख कर ही बताया जा सकता है की यहा बिलकुल नया है ,उस शिवलिंग के पीछे आसानी से बौद्ध चैत्य देखा जा सकता है ,जिस की पूजा कभी बौद्ध भिक्षु किया करते होगे जो हीनयान बौद्ध परंपरा का सबूत है इस के आलावा यहा ध्यान कक्ष भी मौजूद है और भी कई सबूत यहा आसानी से देखे जा सकते है जो यह बात साबित करते है यह एक बौद्ध गुफा है
Thursday, 10 March 2016
परफ्यूम पैगोडा , हनोई ,वियतनाम
परफ्यूम पैगोडा वियतनाम की राजधानी हनोई में मौजूद एक एतिहासिक पगोडा है ,परफ्यूम पैगोडा
हुओंग तीच पहाड़ों में बनाया एक विशाल बौद्ध परिसर है। यहा एक धार्मिक बौद्ध त्योहार का आयोजन होता है जो वियतनाम भर से तीर्थयात्रियों की बड़ी संख्या को खींचता है ,ऐसा कहा जाता है की 15 वीं सदी में ली थांह टोंग के शासनकाल के दौरान यहा एक छोटा सी संरचना थी
परफ्यूम पैगोडा वियतनाम की राजधानी हनोई में मौजूद एक एतिहासिक पगोडा है ,परफ्यूम पैगोडा
हुओंग तीच पहाड़ों में बनाया एक विशाल बौद्ध परिसर है। यहा एक धार्मिक बौद्ध त्योहार का आयोजन होता है जो वियतनाम भर से तीर्थयात्रियों की बड़ी संख्या को खींचता है ,ऐसा कहा जाता है की 15 वीं सदी में ली थांह टोंग के शासनकाल के दौरान यहा एक छोटा सी संरचना थी
Wednesday, 24 February 2016
मोघालमरी बौद्ध मठ, पश्चिम मेदिनीपुर,पश्चिम बंगाल
मोघालमरी पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर में मौजूद एक बौद्ध स्थल है। इस स्थान पर खुदाई का काम 2002-03 में शुरू हुआ, कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अशोक दत्ता के नेतृत्व में जिन्होंने पता लगाया की यहा एक बौद्ध मठ है जो की 6 वीं सदी से 12 वीं सदी तक आस्तित्व में रहा इस ले बाद इस स्थल पर दूसरी बार खोज राज्य पुरातत्व निदेशालय द्वारा नवंबर 2013 में की गयी।
इस की पहली खुदाई में पांच पांच स्तूप की ईटे और मिट्टी के बर्तनों सतह पर बिखरे मिले 2006-07 में एक और व्यापक खुदाई एम जी एम1 नाम के स्थान पर शुरू किया गया था जिस में सजावटी पुष्प, पशु और मानव मूर्ति मिली इस खुदाई का एक अन्य महत्वपूर्ण खोज एक स्लेट पत्थर बुद्ध की छवि की खोज थी
2012 में खुदाई का एक और दौर शुरू हुआ जिस में एक पत्थर के टुकड़े पर नक्क़ासी कर बुद्ध की मूर्ति मिली और बोधिसत्व और बुद्ध शिलालेख भी मिले, खुदाई के स्थान के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में एक प्रदक्षिणा पथ का पता चला है इस स्थान में मौजूद आंगन और कक्षों के आस पास एक बौद्ध विहार का भी पता चला है यह वज्रयान बुद्ध संप्रदाय का एक पूजा स्थान था।
Sunday, 21 February 2016
रामग्राम बौद्ध स्तूप ,नवलपरासी जिला,नेपाल
रामग्राम बौद्ध स्तूप नेपाल के नवलपरासी जिले में मौजूद एक बौद्ध स्तूप है जिस को जो कुछ 2500 साल पहले बनाया गया था इस के बारे में कहा जाता है की इस स्तूप में भगवान बुद्ध की के अवशेष है ऐसा कहा जाता है की भगवान बुद्ध परिनर्वाण के बाद उन की अवशेष को आठ बारबार हिस्सों में बाटा गया था ,और स्वयंम भगवान बुद्ध के बुद्ध होने से पहले शाक्य वंश के राजकुमार थे ,जिस वजह से अवशेष का एक हिस्सा शक्यो को मिला और उन्होंने इस पर स्तूप का निर्माण किया। बाद में ऐसा कहा जाता है की सम्राट अशोक महान ने उन आठ स्तुपो में से सात स्तुपो में से भगवान बुद्ध के अवशेष निकलवाए और उन अवशेषों को बारबार बाँट के उन पर 84,000 हज़ार स्तुपो का निर्माण किया लेकिन ऐसा कहा जाता है की नागो के राजा रामग्राम के स्तूप की रक्षा स्वय कर रहे थे इस कारण इस स्तूप से भगवान बुद्ध के अवशेष नहीं निकले जा सके ,और यह रामग्राम स्तूप में भगवान बुद्ध की के अवशेष पर बनाये गए पेहेले आठ स्तूप में एक मात्र सुरक्षित बचा स्तूप है। रामग्राम बौद्ध स्तूप स्तूप 7 मीटर (23 फुट) ऊंची है और यह जगह युनेस्को विश्व विरासत स्थल में से एक है इसे यह दर्जा 1996 में मिला है।
त्रिरश्मी या पांडु बौद्ध गुफाएं नासिक, महाराष्ट्र
त्रिरश्मी या पांडु बौद्ध गुफाएं नासिक, महाराष्ट्र,के दक्षिण में 8 किमी दूर स्थित है।
त्रिरश्मी या पांडु बौद्ध गुफाएं हीनयान बौद्ध संप्रदाय की 24 गुफाओं एक समूह है जिन्हे 2 शताब्दी ईसवी से लेकर 3 शताब्दी ई.पू. तक बने गया था। गुफाओं में से अधिकांश विहार हैं (बौद्ध भिक्षु के रहने का स्थान ) लेकीन 18 वीं गुफा है जो एक चैत्य (बौद्ध पूजा स्थान )है.
वैसे तो यहा 24 गुफाओं एक समूह है लेकीन दो गुफा प्रमुख आकर्षण हैं मुख्य गुफा जो चैत्य (प्रार्थना हॉल) और जिस में एक सुंदर स्तूप है दूसरी गुफा 10 जो संरचनात्मक और शिलालेख दोनों रूप से सुसज्जित है। गुफाओं को पुंडरु कहा जाता था पाली में भाषा है जिसका अर्थ है "पीला गेरू रंग" जिस बौद्ध भिक्षु पहना करते थे , इस कारण इस गुफा का नाम पांडु गुफा पड़ा इस का महाभारत से कोई रिश्ता नहीं है।
Thursday, 18 February 2016
भगवान बुद्ध का अस्थि कलश , इंडियन म्यूजियम कोलकाता ,भारत
सारनाथ में साल 1798 में धर्मराजिका स्तूप की खुदाई के दौरान बनारस के राजा चेतसिंह के दीवान जगत सिंह के मजदूरों को एक पत्थर के बक्से में रखी मंजूषा में अस्थियां मिली थीं जिसके बारे में माना जाता है कि यह महात्मा बुद्ध की थीं।
सूचना के अधिकार के तहत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पूर्वी क्षेत्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार, ‘सारनाथ के स्तूप से प्राप्त पत्थर के बक्से में एक हरे रंग की संगमरमर की मंजूषा मिली जिसमें अस्थियां रखी थीं। ऐसा माना जाता है कि अस्थियों को गंगा में विसर्जित कर दिया गया था और मंजूषा को इंडियन म्यूजियम, कोलकाता को सौंप दिया गया।’
सारनाथ में साल 1798 में धर्मराजिका स्तूप की खुदाई के दौरान बनारस के राजा चेतसिंह के दीवान जगत सिंह के मजदूरों को एक पत्थर के बक्से में रखी मंजूषा में अस्थियां मिली थीं जिसके बारे में माना जाता है कि यह महात्मा बुद्ध की थीं।
सूचना के अधिकार के तहत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पूर्वी क्षेत्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार, ‘सारनाथ के स्तूप से प्राप्त पत्थर के बक्से में एक हरे रंग की संगमरमर की मंजूषा मिली जिसमें अस्थियां रखी थीं। ऐसा माना जाता है कि अस्थियों को गंगा में विसर्जित कर दिया गया था और मंजूषा को इंडियन म्यूजियम, कोलकाता को सौंप दिया गया।’
पटना संग्रहालय में रखे बुद्ध के अवशेष पटना संग्रहालय के सबसे बेशकीमती संपत्ति में से एक है और यहा पर1972 के बाद से मौजूद है। पवित्र अवशेष वैशाली जिले में बनया गांव में बने एक स्तूप से प्राप्त हुआ था जिसे पुरातत्वविद् अनंत सदाशिव अल्टेकर द्वारा 1958-1961 में किये गए एक अभियान के दौरान प्राप्त किया गया था , यह एक सफ़ेद बास्केट में रखा गया है जो बुद्ध की राख से एक तिहाई भरा है इस के साथ कुछ और सामान भी वहा मौजूद है जिसे , एक टूटे हुए कांच के मोती, तांबा पंच मार्क सिक्के, शंख और सोने की एक छोटी पत्ती आदि सामान है ।
पौराणिक कथा के अनुसार, बुद्ध ने 483 ईसा पूर्व में कुशीनगर में महापरिनिर्वाण को प्रापत किया ,उनके अंतिम कार्य के बाद उनके अवशेषों को आठ भागो में बाटा गया था ,जिस में से एक भाग वैशाली के लिच्छवी को भी मिला जिस पर उन्होंने स्तूप का निर्माण किया ,बुद्ध के बाकि अवशेषों पर भी स्तुपो का निर्माण हुआ , चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के अनुसार सम्राट अशोक ने एक स्तूप को छोड़ के सभी स्तुपो में से बुद्ध के अवशेष निकलवाके उस में से प्राप्त अवशेष को बारबार भागो में बांटा कर करीब 84000 स्तूप का निर्माण करवाया था। ऐसा कहा जाता है सम्राट अशोक ने जिस एक स्तूप में अवशेष छोड़े थे वो इस खुदाई में प्राप्त हुआ और इस समय पटना संग्रहालय में मौजूद है यह जो स्तूप का निर्माण वैशाली के लिच्छवी द्वारा किया गया था।
थे पैगोडा ,हनोई, वियतनाम
पैगोडा हनोई से 30 किलोमीटर साईं सोन गांव में स्थित है,यह पैगोडा एक कृत्रिम झील के किनारे पर , साईं सोन पर्वत के पैर में स्थित है पैगोडा 11 वीं सदी मेंके लय नहं टोंग के शासनकाल के दौरान स्थापित किया गया था। पैगोडा को तीन भागों में बांटा गया है ,प्रवेश द्वार हॉल प्रार्थना हॉल है,बीच के कक्ष में बुद्ध के चित्र है , आखरी कक्ष में बौद्ध भिक्षु की मूर्तियां हैं।
Sunday, 14 February 2016
वन पिल्लर पैगोडा , हनोई ,वियतनाम
वन पिल्लर पैगोडा वियतनाम की राजधानी हनोई में मौजूद एक एतिहासिक पगोडा है
बौद्ध विहार सम्राट लइ थाई टोंग, जो 1028-1054 तक शासन किया द्वारा बनाया गया था,ऐसा कहा जाता है की राजा की कोई संतान नहीं थी और जब उन्हें संतान हुई तो उन्होंने इस की खुशी में इस पैगोडा का निर्माण किया ,
बू फ़ोन बौद्ध विहार ,डाँग नई प्रांत, वियतनाम
बू फ़ोन बौद्ध विहार डाँग नई प्रांत वियतनाम में है बौद्ध विहार 17 वीं सदी में थिच बू फ़ोन द्वारा बनाया गया था, पहले यह एक छोटा सा विहार था 18 वीं सदी के अंत में, मिंग राजवंश के पतन के बाद,जातीय चीनी प्रवासियों की एक बड़ी संख्या दक्षिणी वियतनाम में आई जिन्होंने इस विहार को बनवाया
Tuesday, 9 February 2016
ट्रक लाम बौद्ध मठ, डा लाट प्रांत, वियतनाम
ट्रक लाम बौद्ध मठ वियतनाम के डा लाट प्रांत में मौजूद है और शहर से कुछ दूर प्रेन्न पहड़ी पर मौजूद है इस की खासियत है इस की सुंदरता क्यों की यह चारो तरफ से पहाड़ी से घिरा हुआ है और एक पहाड़ पर बसा है यह बौद्ध मठ समुद्र तल से करीब 1300 मीटर ऊपर है और इस तक पहुचने के लिए दो प्रवेश द्वार है जिस के लिए आप को 222 सीढ़ियाँ और 63 सीढ़ियाँ चलना पड़ता है और और हेक्टेयर में फैला है इस में एक तालाब भी है।
Thursday, 4 February 2016
लीन्ह सोन पैगोडा ,डा लाट प्रांत , वियतनाम
लीन्ह सोन पैगोडा डा लाटप्रांत वियतनाम में हैलीन्ह सोन पैगोडा1938 में बनाया गया था और इसका काम 1940 में खोला गया था । यह पैगोडाय एशियाई शैली में बनाया गया है। इस पैगोडा के मुख्य कक्ष में एक पीतल से बानी गौतम बुद्ध, की मूर्ति है,जो कमल पर बैठी है और उस का वज़न 250 किलो है यहा एक बहोत बड़ा घंटा भी है ।
लीन्ह सोन पैगोडा डा लाटप्रांत वियतनाम में हैलीन्ह सोन पैगोडा1938 में बनाया गया था और इसका काम 1940 में खोला गया था । यह पैगोडाय एशियाई शैली में बनाया गया है। इस पैगोडा के मुख्य कक्ष में एक पीतल से बानी गौतम बुद्ध, की मूर्ति है,जो कमल पर बैठी है और उस का वज़न 250 किलो है यहा एक बहोत बड़ा घंटा भी है ।
Monday, 1 February 2016
लीन्ह सोन पैगोडा ,डा लाट प्रांत , वियतनाम
लीन्ह सोन पैगोडा डा लाटप्रांत वियतनाम में हैलीन्ह सोन पैगोडा1938 में बनाया गया था और इसका काम 1940 में खोला गया था । यह पैगोडाय एशियाई शैली में बनाया गया है। इस पैगोडा के मुख्य कक्ष में एक पीतल से बानी गौतम बुद्ध, की मूर्ति है,जो कमल पर बैठी है और उस का वज़न 250 किलो है यहा एक बहोत बड़ा घंटा भी है ।
कोंडना बौद्ध गुफाएं रायगढ़ महाराष्ट्र ,मुंबई के पास
कोंडना गुफाएं महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में 16 बौद्ध गुफाओं के समूह हैं। यह कोंडना गुफाओं 1 शताब्दी ईसा पूर्व में खुदे हुए थे और तीन गुफाएं कोंडना, भाजे या भेजा और कार्ला गुफाओं के समूह में से एक है इन गुफाओं शानदार बौद्ध वास्तुकला का हिस्सा हैं जहा मूर्तियां, विहार, स्तूप, चैत्य सब कुछ है 1900 के प्रारंभ में आये एक भूकंप ने गुफा के कई स्तूप और ने प्रवेश द्वार और फर्श क्षतिग्रस्त कर दिया है पर यह हमारे गौरवशाली अतीत का एक हिस्सा है
Friday, 29 January 2016
बौद्ध तीर्थ रामतीर्थम् ,विजयनगरम,आंध्र प्रदेश
रामतीर्थम् नाम की जो जगह है उस का सम्बन्ध राम से जोड़ा जाता है लेकीन यहा मिले ऐतिहासिक तथ्य यह बताते है की यह जगह पहले बौद्ध और जैन धर्म का महत्त्वपूर्ण स्थान रही है और यहा हुई ताजा जांच में यह बात साबित हुई की यहा बहुत बड़ा बौद्ध मठ था। और यहा जैन मंदिरो के अवशेष भी मिले है और यह मौजूद राम मदिर करीब 1000 साल पुराना है करीब 10 वी शताब्दी का ,लेकीन यह स्थान उस से पहले कोई महत्वपूर्ण बौद्ध और जैन स्थान था। इस स्थान का बौद्ध धर्म से जुड़ा होना कोई बड़ी बात नहीं है क्यों की आंध्र प्रदेश में सातवाहन राजाओ के काल में बौद्ध धर्म बड़ा फैला था और आप आंध्र प्रदेश में करीब 23-24बड़े बौद्ध तीर्थ आसानी से देख सकते है
इस स्थान में आपस ने जुडी तीन पहाड़ी है ,जो बोधीकोंडा ,गुरबकताकोण्डा,दुर्गाकोण्डा (घनीकोंडा)
गुरबकताकोण्डा
इस में बौद्ध धर्म से जुडी सबसे महत्वपूर्ण पहाड़ी है गुरबकताकोण्डा जिस में एक बौद्ध मठ मिला है। इस स्थान पर मिला बौद्ध मठ बड़े अच्छे से बना है और इस में बुद्ध भगवान की अमरावती शैली की मूर्ति भी मिली है और साथ कुछ स्तूप भी मिले है इस की अच्छे से जांच की जानी बाकि है
दुर्गाकोण्डा (घनीकोंडा)
इस स्थान में एक प्राकृतिक गुफा में देवी दुर्गा की मूर्ति है लेकिन उस के बहार आप आसानी से बौद्ध और जैन धर्म से जुड़े अवशेष देख सकते है
बोधीकोंडा
यह स्थान को भगवान राम के साथ जोड़ा जाता है लेकिन आप यहा मौजूद जैन मंदिर आसानी से देख सकते है
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