Friday, 29 January 2016

बौद्ध तीर्थ रामतीर्थम् ,विजयनगरम,आंध्र प्रदेश
रामतीर्थम् नाम की जो जगह है उस का सम्बन्ध राम से जोड़ा जाता है लेकीन यहा मिले ऐतिहासिक तथ्य यह बताते है की यह जगह पहले बौद्ध और जैन धर्म का महत्त्वपूर्ण स्थान रही है और यहा हुई ताजा जांच में यह बात साबित हुई की यहा बहुत बड़ा बौद्ध मठ था। और यहा जैन मंदिरो के अवशेष भी मिले है और यह मौजूद राम मदिर करीब 1000 साल पुराना है करीब 10 वी शताब्दी का ,लेकीन यह स्थान उस से पहले कोई महत्वपूर्ण बौद्ध और जैन स्थान था। इस स्थान का बौद्ध धर्म से जुड़ा होना कोई बड़ी बात नहीं है क्यों की आंध्र प्रदेश में सातवाहन राजाओ के काल में बौद्ध धर्म बड़ा फैला था और आप आंध्र प्रदेश में करीब 23-24बड़े बौद्ध तीर्थ आसानी से देख सकते है
इस स्थान में आपस ने जुडी तीन पहाड़ी है ,जो बोधीकोंडा ,गुरबकताकोण्डा,दुर्गाकोण्डा (घनीकोंडा)
गुरबकताकोण्डा
इस में बौद्ध धर्म से जुडी सबसे महत्वपूर्ण पहाड़ी है गुरबकताकोण्डा जिस में एक बौद्ध मठ मिला है। इस स्थान पर मिला बौद्ध मठ बड़े अच्छे से बना है और इस में बुद्ध भगवान की अमरावती शैली की मूर्ति भी मिली है और साथ कुछ स्तूप भी मिले है इस की अच्छे से जांच की जानी बाकि है
दुर्गाकोण्डा (घनीकोंडा)
इस स्थान में एक प्राकृतिक गुफा में देवी दुर्गा की मूर्ति है लेकिन उस के बहार आप आसानी से बौद्ध और जैन धर्म से जुड़े अवशेष देख सकते है
बोधीकोंडा
यह स्थान को भगवान राम के साथ जोड़ा जाता है लेकिन आप यहा मौजूद जैन मंदिर आसानी से देख सकते है






Thursday, 28 January 2016

पात्तुर बौद्ध गुफा अकोला महाराष्ट्र
पात्तुर बौद्ध गुफा अकोला जिले में सबसे पुराना पुरातात्विक अवशेष में से एक है और शहर के पश्चिम में पहाड़ी के चट्टानी के बीच मौजूद है। यह विहार है जो चौकोर खंबो के सहारे खड़ा है ( विहार बौद्ध भिक्षु के रहने का स्थान है जहा वंदना भी की जा सके ) और इस में एक वराण्डा भी है। इस के अंदर एक सन्देश लिखा है जिसे पढ़ा नहीं जा सका है इस के अलावा यहा कोई सन्देश नहीं है लेकीन एक मूर्ति है जो पलती मार के बैठी है जिस के बारे में कहा जाता है यह जैन सम्प्रदाय से है लेकीन यह बौद्ध धम्म से जुडी भी हो सकती है। इस के बारे में कुछ कहना असंभव है



Tuesday, 19 January 2016

वैश्य टेकरी बौद्ध स्तूप ,कानीपुरा गाँव, उज्जैन,मध्य प्रदेश
तथागत भगवान गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद अवंती प्रदेश के बौद्ध भिक्षु का एक संघ भगवान बुद्ध के अंतिम दर्शन के लिए कुशीनगर गया था लेकीन उन के वह पहुचने से पहले ही भगवान बुद्ध के भौतिक अवशेषों का बटवारा हो चुका था और वहां तथागत भगवान गौतम बुद्ध का " चीवर और आसंदी " ही शेष बचे। अतः निर्णय लिया गया की तथागत भगवान गौतम बुद्ध की " चीवर और आसंदी " अवंती प्रदेश को दे दी जाये जिस पर उज्जैन में एक बड़े स्तूप का निर्माण हुआ ,और यह स्तूप का स्थान था वैश्य टेकरी ,कानीपुरा गाँव, इस स्तूप की उचाई है 100 और व्यास 350 फीट यह स्तूप के अवशेष आज भी मौजूद है
उज्जैन नगरी अवंति जनपद की राजधानी थी जिस के राज्यपाल सम्राट अशोक थे
इस के अलावा बौद्ध धर्म के महान सम्राट अशोक को भी उनके काल में उज्जैन का राज्यपाल बनाया गया था और उनके बड़े भाई सुशीम को तक्षशिला का राज्यपाल बनाया गया था ,इस के आलावा सम्राट अशोक महान की पहली पत्नी देवी भी उज्जैन के व्यापारी की बेटी थी और सम्राट
अशोक महान को उन से दो संतान हुई ,संघमित्रा और महेंद्र जो बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए श्रीलंका गए और वहाँ उनका परिनिर्वाण हुआ और वह से उनके अवशेष को ला कर तथागत भगवान गौतम बुद्ध के " चीवर और आसंदी " पर बने महास्तूप के बगल में संघमित्रा और महेंद्र के अवशेषों पर दो स्तुपो का निर्माण किया गया ,आज यह दोनों स्तूप सरकार के उपेक्षा में खंडर हो गए है जिसे के पुनर्निर्माण की जरूरत है  यहा मेले का आयोजन कियाजिसे हर साल फरवरी के दूसरे रविवार को आयोजित किया जाता है

Saturday, 16 January 2016

होई खानह् बौद्ध विहार ,बिन्ह डुआंग प्रांत ,वियतनाम 


होई खानह् बौद्ध विहार वियतनाम के बिन्ह डुआंग प्रांत में एक ऐतिहासिक बौद्ध मंदिर है जिसे 1741 में बनाया गया है ,लेकिन 1861 में यह फ्रांसीसी औपनिवेशिक सेना द्वारा वियतनाम पर कब्ज़े की कोशिश के दौरान नष्ट हो गया था इस उस के बाद कई बार सवार गया पर इस की पुराने जमाने की वास्तुकला हमेशा बरकरार राखी गई


Saturday, 9 January 2016

फाट तीच बौद्ध विहार ,बाक नाह प्रांत ,वियतनाम
फात तीच बौद्ध विहार ,वियतनाम के बाक नाह प्रांत में मौजूद है फाट तीच पर्वत के पास यह वियतनाम की एक महत्वपूर्ण सूचीबद्ध सांस्कृतिक जगह है

बौद्ध नगर तख़्त ए बही , ख़ैबर पख़्तूनख़्वा ,पाकिस्तान
तख़्त ए बही और पास में मौजूद सहर -ए-बहलोल पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रान्त के मरदान में मौजूद एक गांधार काल का बड़ा बौद्ध नगर है। इस बौद्ध मठ को 1 शताब्दी ईस्वी में बनाया गया था और यह 7 वी शताब्दी ईस्वी तक इस्तेमाल में रही जब तक 6 वी शताब्दी ईस्वी में इस्लाम के प्रभाव के साथ इस इलाके में इस्लामिक हमले शुरू हुए और इस इलाके के इस्लाम का राज स्थापित हो गया

तख़्त ए बही में आज मौजूद अवशेषों में मुख्य स्तूप ,छोटे मन्नत स्तूप , तीन स्तूप के एक समूह,एक आहाता जिस में ध्यान लगाया जाता था ,एक सभा गृह ,और बहुत सी स्वतंत्र इमारते मौजूद है।
सहर -ए-बहलोल नाम का एक और इलाका तख़्त ए बही से 5 किलोमीटर की दुरी पर मौजूद है जो कुषाण काल का एक समृद्ध बौद्ध नगर था और करीब 9.7 हेक्टेयर में फैला था।

Friday, 8 January 2016

डाउ पैगोडा,बक निन्ह प्रांत, वियतनाम
डाउ पैगोडा वियतनाम के बक निन्ह प्रांत में मौजूद है यह पैगोडा वियतनाम की राजधानी हनोई से 30 किमी दुरी पर स्थित है , इस पैगोडा का निर्माण काल 2 शताब्दी में 187-226 ईसवी में किया गया है और यह वियतनाम में सबसे पुराना प्रलेखित बौद्ध पैगोडा है।

Wednesday, 6 January 2016

नहं थाप बौद्ध विहार,बाक नाह प्रांत  ,वियतनाम 

नहं थाप बौद्ध विहार वियतनाम के बाक नाह प्रांत के थुक्न थन्ह जिले में  दुओंग नदी के पास मौजूद है  एक हजार आँखें और एक हजार हाथो के साथ  अवलोकितेश्वर बुद्ध (महायान बौद्ध संप्रदाय ) की मूर्ति है. यह वियतनाम  का प्रसिद्ध बौद्ध विहार है इस जगह 10 इमारत है  जो  100 मीटर की दूरी में फैली है 
और  17 वीं सदी में बनाई गई है 

तलाजा बौद्ध गुफाएं,भावनगर,गुजरात
तलाजा बौद्ध गुफाएं,भावनगर,गुजरात में मौजूद बौद्ध गुफाएं है
यहा पर करीब 30 बौद्ध गुफाएं है जिस से करीब 15 पानी जमा करने के लिए हैं। यह गुफाएं 2 शताब्दी ई.पू. की है क्षत्रप राजाओ के काल की जिस में बौद्ध भिक्षु के रहने का स्थान है और और बोधिसत्व की कलाकृति भी उभरी हुई है इन गुफाओ की वास्तुकल भी अलग है जिसे ईभला मंडपा कहा जाता है जिसे में चार अष्टकोणीय खंभे के सहारे एक बड़ा सा हॉल है


Tuesday, 5 January 2016

ताय ऐन बौद्ध विहार, ऐन गिआंग प्रांत ,वियतनाम
"ताय ऐन " दक्षिणी वियतनाम के ऐन गिआंग प्रांतके चाऊ डॉक् शहर में मौजूद के बौद्ध विहार है। जो अपनी ऐतिहासिक और अनूठी स्थापत्य कला के लिए मश्हूर है ,यह विहार 1847 में ऐन गिआंग प्रांत के के राज्यपाल डोअन उअन द्वारा बनाया गया था। यह विहार ख़ूबसूरत पहाड़ो से घिरा हुआ है और अपने खूबसूरत नज़ारो के के लिए भी प्रसिद्ध है ,इस विहार के आस पास कुछ स्तूप है जो आरिहत को प्राप्त बौद्ध भिक्षुओं को समर्पित है।