Tuesday, 30 June 2015
टेम्पल ऑफ़ द सिक्स बनयान ट्री(छह बरगद के पेड़ वाला मंदिर ) ग्वांगझोउ,चीन
यह एक प्राचीन बौद्ध मंदिर है जो मूल रूप से लिआंग राजवंश द्वारा 537 में बनाया गया था ,मंदिर को जला दिया था और उत्तरी सांग राजवंश के समय में इसे फिर से बनाया गया था।फ्लॉवर पैगोडा इस मंदिर का मुख्य आकषर्ण है जिसे , 1097 में बनाया गया था
यह एक प्राचीन बौद्ध मंदिर है जो मूल रूप से लिआंग राजवंश द्वारा 537 में बनाया गया था ,मंदिर को जला दिया था और उत्तरी सांग राजवंश के समय में इसे फिर से बनाया गया था।फ्लॉवर पैगोडा इस मंदिर का मुख्य आकषर्ण है जिसे , 1097 में बनाया गया था
गुआंगहुआ बौद्ध मंदिर फ़ूज्यान चीन
गुआंगहुआ बौद्ध मंदिर चीन के फ़ुज़ियान प्रांत में सहित है यह दक्षिणी चेन राजवंश (588 सीई) के अंत के सालो में बनाया गया था ,और तांग राजवंश (618-907) के समय यह मदिर बड़ा प्रसिद्ध हुआ ,सांग राजवंश (960-1279) में एक हजार से अधिक भिक्षुओं और भिक्षुणी इस मंदिर में बौद्ध धर्म का अभ्यास किया करती थी ,और यह मंदिर युआन राजवंश में युद्ध (1271-1368) के दौरान आग से नष्ट हो गया था,लेकिन धीरे-धीरे मिंग राजवंश (1368-1644) के दौरान अपने पूर्व गौरव को हासिल कर लिया था ।
यह चीन में सबसे प्रभावशाली चीनी बौद्ध धर्म मंदिरों में से एक है
Monday, 29 June 2015
काओ 'अन् बौद्ध मंदिर , फ़ूज्यान ,चीन
मूल रूप से काओ 'अन् बौद्ध मंदिर को चीनी के 'मैनीकेइज़्म' धर्म मानाने वाले लोगो द्वारा निर्मित किया गया, और बाद में इसे एक बौद्ध मंदिर बन गया ,ऐसा कहा जा सकता है की 'मैनीकेइज़्म-और बौद्ध धर्म का मिश्रण इस मंदिर में है या यह बौद्ध भेष में इस 'मैनीकेइज़्म' मंदिर है।
यह मंदिर 12 वीं सदी में सोंग राजवंश के समय बनायीं गयी थी जो झोपड़ी नुमा थी पर 13 वीं सदी में इसे पक्का बनाया गया।
मानी धर्म या मैनीकेइज़्म धर्म -एक प्राचीन धर्म था जो ईरान के सासानी साम्राज्य के अधीन बेबीलोनिया क्षेत्र में शुरू होकर मध्य एशिया और उसके इर्द-गिर्द के इलाक़ों में बहुत विस्तृत हो गया। इसकी स्थापना मानी 216-276 ईसवी अनुमानित) मानी नामक एक मसीहा ने की थी और इसमें बौद्ध धर्म, ज़रथुष्टी धर्म और ईसाई धर्म के बहुत से तत्वों का मिश्रण था। मानी की लिखाईयाँ पूर्ण रूप से तो नहीं बची लेकिन उनके बहुत से अंश और भाषांतरित प्रतियाँ अभी भी उपलब्ध हैं। यह धर्म तीसरी से सातवी शताब्दी ईसवी तक चला और अपने चरम पर विश्व के सबसे मुख्य धर्मों में से एक था। उस समय यह चीन से लेकर रोम तक विस्तृत था।
धर्म तांग राजवंश के दौरान चीन में पंहुचा यह मूल रूप से सोग़दा व्यपारियो ( मध्य एशिया में स्थित एक प्राचीन सभ्यता थी। यह आधुनिक उज़्बेकिस्तान के स्थान पर मौजूद थी ) के साथ यहा पंहुचा था हालांकि, मुख्य रूप से उत्तरी और मध्य चीन (चांग क्षेत्र) में मौजूद है और 843 की मैनीकेइज़्म धर्म विरोधी अभियान के दौरान एक मजबूत झटका लगा, और 845, के महान बौद्ध विरोधी अभियान के दौरान बौद्ध ,पारसी ,मैनीकेइज़्म और चीन के बहार से आये सभी धर्मो के खिलाफ अभियान में सभी दूसरे धर्म के पुजारियों को मारा या चीन से भगा दिया गया था ,जिस में भी मैनीकेइज़्म धर्म और बौद्ध धर्म को काफी नुकसान हुआ ,यह अभियान तांग सम्राट वूज़ोंग द्वारा चलाया गया था जिस का उद्देश था चीन के बहार से आये धर्मो को खत्म करना
मूल रूप से काओ 'अन् बौद्ध मंदिर को चीनी के 'मैनीकेइज़्म' धर्म मानाने वाले लोगो द्वारा निर्मित किया गया, और बाद में इसे एक बौद्ध मंदिर बन गया ,ऐसा कहा जा सकता है की 'मैनीकेइज़्म-और बौद्ध धर्म का मिश्रण इस मंदिर में है या यह बौद्ध भेष में इस 'मैनीकेइज़्म' मंदिर है।
यह मंदिर 12 वीं सदी में सोंग राजवंश के समय बनायीं गयी थी जो झोपड़ी नुमा थी पर 13 वीं सदी में इसे पक्का बनाया गया।
मानी धर्म या मैनीकेइज़्म धर्म -एक प्राचीन धर्म था जो ईरान के सासानी साम्राज्य के अधीन बेबीलोनिया क्षेत्र में शुरू होकर मध्य एशिया और उसके इर्द-गिर्द के इलाक़ों में बहुत विस्तृत हो गया। इसकी स्थापना मानी 216-276 ईसवी अनुमानित) मानी नामक एक मसीहा ने की थी और इसमें बौद्ध धर्म, ज़रथुष्टी धर्म और ईसाई धर्म के बहुत से तत्वों का मिश्रण था। मानी की लिखाईयाँ पूर्ण रूप से तो नहीं बची लेकिन उनके बहुत से अंश और भाषांतरित प्रतियाँ अभी भी उपलब्ध हैं। यह धर्म तीसरी से सातवी शताब्दी ईसवी तक चला और अपने चरम पर विश्व के सबसे मुख्य धर्मों में से एक था। उस समय यह चीन से लेकर रोम तक विस्तृत था।
धर्म तांग राजवंश के दौरान चीन में पंहुचा यह मूल रूप से सोग़दा व्यपारियो ( मध्य एशिया में स्थित एक प्राचीन सभ्यता थी। यह आधुनिक उज़्बेकिस्तान के स्थान पर मौजूद थी ) के साथ यहा पंहुचा था हालांकि, मुख्य रूप से उत्तरी और मध्य चीन (चांग क्षेत्र) में मौजूद है और 843 की मैनीकेइज़्म धर्म विरोधी अभियान के दौरान एक मजबूत झटका लगा, और 845, के महान बौद्ध विरोधी अभियान के दौरान बौद्ध ,पारसी ,मैनीकेइज़्म और चीन के बहार से आये सभी धर्मो के खिलाफ अभियान में सभी दूसरे धर्म के पुजारियों को मारा या चीन से भगा दिया गया था ,जिस में भी मैनीकेइज़्म धर्म और बौद्ध धर्म को काफी नुकसान हुआ ,यह अभियान तांग सम्राट वूज़ोंग द्वारा चलाया गया था जिस का उद्देश था चीन के बहार से आये धर्मो को खत्म करना
Sunday, 28 June 2015
टेम्पल ऑफ़ अजुर क्लाउड ( बौद्ध मंदिर )(बीजिंग ) ,चीन
यह युआन राजवंश (1271-1368) के दौरान, (संभवतः 1331 में) में बनाया गया था और 1748 में विस्तार किया गया था। यह मंदिर छह विभिन्न स्तरों पर बनाया गया है जो 100मीटर उचा है यह मंदिर अपने मनोरम दृश्यों के लिए भी जाना जाता है। यहा के अरहंत हॉल में 512 मूर्तियां हैं,जिस में 500 लकड़ी के अरहंत मुर्तिया शमिल है इस के अलावा जी गोंग (एक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु) की एक प्रतिमा भी यहा है । यह सन यात-सेन ( जो चीन के एक महान राष्ट्रवादी नेता थे ) याद में बना एक सन यात-सेन मेमोरियल हाल भी है जिस में सोवियत यूनियन की तरफ से दिया क्रिस्टल का ताबूत और उन से जुडी कुछ किताबे यहा राखी है
यह युआन राजवंश (1271-1368) के दौरान, (संभवतः 1331 में) में बनाया गया था और 1748 में विस्तार किया गया था। यह मंदिर छह विभिन्न स्तरों पर बनाया गया है जो 100मीटर उचा है यह मंदिर अपने मनोरम दृश्यों के लिए भी जाना जाता है। यहा के अरहंत हॉल में 512 मूर्तियां हैं,जिस में 500 लकड़ी के अरहंत मुर्तिया शमिल है इस के अलावा जी गोंग (एक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु) की एक प्रतिमा भी यहा है । यह सन यात-सेन ( जो चीन के एक महान राष्ट्रवादी नेता थे ) याद में बना एक सन यात-सेन मेमोरियल हाल भी है जिस में सोवियत यूनियन की तरफ से दिया क्रिस्टल का ताबूत और उन से जुडी कुछ किताबे यहा राखी है
वानशॉउ बौद्ध मंदिर (बीजिंग ) ,चीन
यह वानशॉउ बौद्ध मंदिर चीनी बौद्ध धर्म ग्रंथों को रखने के के मिंग राजवंश के वन्ली युग के दौरान 1577 में बनाया गया था; यह भी बाद में मिंग और किंग के राजवंशों के शाही परिवारों के लिए एक स्थायी उत्सव मानाने की जगह बन गयी ,यह मंदिर होने के साथ ही बीजिंग का कला संग्रहालय भी है जहा शांग और झोउ राजवंशों से जुड़ी कई चीज़े राखी है
योंन्गहे बौद्ध मंदिर (बीजिंग ) ,चीन
योंन्गहे बौद्ध मंदिर जिस का मतलब होता है लामा का मंदिर चीन की राजधानी बीजिंग में मौजूद है
योंन्गहे बौद्ध मंदिर पर निर्माण कार्य किंग राजवंश के दौरान 1694 में शुरू किया था।। यह मूल रूप से किंग राजवंश के अदालत के किन्नरों का आधिकारिक निवास था ।यह राजकुमार योंग (यिन जेन), जो सम्राट कांग्क्सी के पुत्र थे का दारबार बना ,जो बाद में राजा बनाने वाले थे ,जब उन्होंने 1722 में सम्राट का पद ग्रहण किया इमारत के आधे हिस्से को तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षुओं के लिए एक मठ में परिवर्तित कर दिया गया। अन्य आधा एक शाही महल बना रहा और जब सम्राट की मृत्य हुए तब उनके ताबूत को यहा रखा गया और उनके उत्तराधिकारी ने इस मंदिर में कुछ काम कराया।
योंन्गहे बौद्ध मंदिर जिस का मतलब होता है लामा का मंदिर चीन की राजधानी बीजिंग में मौजूद है
योंन्गहे बौद्ध मंदिर पर निर्माण कार्य किंग राजवंश के दौरान 1694 में शुरू किया था।। यह मूल रूप से किंग राजवंश के अदालत के किन्नरों का आधिकारिक निवास था ।यह राजकुमार योंग (यिन जेन), जो सम्राट कांग्क्सी के पुत्र थे का दारबार बना ,जो बाद में राजा बनाने वाले थे ,जब उन्होंने 1722 में सम्राट का पद ग्रहण किया इमारत के आधे हिस्से को तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षुओं के लिए एक मठ में परिवर्तित कर दिया गया। अन्य आधा एक शाही महल बना रहा और जब सम्राट की मृत्य हुए तब उनके ताबूत को यहा रखा गया और उनके उत्तराधिकारी ने इस मंदिर में कुछ काम कराया।
युन्जु बौद्ध मंदिर (बीजिंग ) ,चीन
युन्जु बौद्ध मंदिर चीन की राजधानी बीजिंग से 70 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में मौजूद है ,
यह मंदिर 7 वीं शताब्दी की शुरुआत में बनाया गया था।616 में, पहली बार बौद्ध भिक्षु जिंगवा दवरा बौद्ध धर्म के शास्त्रो को पत्थर पर उकेरा गया था क्यों की उस समय बौद्ध और ताओ धर्म में संघर्ष चल रहा था और भिक्षु को डर कही उन की हत्या न कर दी जाये और बौद्ध भिक्षु जिंगवा अपने ज्ञान को किसी तरह सुरक्षित रखना चाहते थे इस लिए उन्होंने उस को पत्थर पर उकेरा ,बौद्ध शास्त्रों और धर्म उपदेशो को पत्थर पर उकेरने का काम करीब 1000 वर्षो चला और 1655 में जा के खत्म हुआ। सुई और तांग साम्राज्य के समय 12 बौद्ध सूत्र पत्थर पर उकेरे गए ,लियाओ और जिन साम्राज्य के समय खितन त्रिपिटक को पत्थर पर उकेरा गया जो चीनी भाषा में बौद्ध धर्म शास्त्रो का एक मात्र बचा हुआ हिस्सा है ,, 1,122 बौद्ध धर्म ग्रंथ जो 3572 खंडों में 77,000 लकड़ी के पट्टे पर उकेरे गए है यह हज़ारो सैलानियों को आकर्षित करते है
Saturday, 27 June 2015
ज़हेंनजुए बौद्ध मंदिर (बीजिंग ) ,चीन
ज़हेंनजुए बौद्ध मंदिर मिंग साम्राज्य के समय बीजिंग में बनाया गया एक बौद्ध मंदिर है। जो पांच पैगोडा वाले बौद्ध मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह मदिर भारत में मौजूद और बौद्ध धर्म के सबसे अहम तीर्थस्थल महाबोधि मंदिर की तर्ज पर बना है ,पर यह बात आज तक नहीं पता की जा सकी है की भारत से यह वस्तुकला चीन कैसे पहुंची ,पर ऐसा कहा जाता है की 15 वीं सदी में मिंग साम्राज्य के राजा यॉन्गले के समय भारत से आये बौद्ध भिक्षु पंडिद्दा यहाँ यह कला ले कर आये थे इसके साथ बौद्ध भिक्षु पंडिद्दा अपने साथ पांच सोने से बानी भगण बुद्ध की पांच बुद्ध की मूर्ति भी ले कर आये थे जो पांच पैगोडा के नीचे दफ़न है। हालांकि, महाबोधि मदिर की तरह के डिजाइन चीनी स्थापत्य कला में पहले से मौजूद था ,जिसे दुनहुआंग ग्रोटोएस की गुफाओं के भित्ति चित्रो में देखा जा सकता है ,जो इस मंदिर से करीब 1000 साल पुराने है।
ज़हेंनजुए बौद्ध मंदिर मिंग साम्राज्य के समय बीजिंग में बनाया गया एक बौद्ध मंदिर है। जो पांच पैगोडा वाले बौद्ध मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह मदिर भारत में मौजूद और बौद्ध धर्म के सबसे अहम तीर्थस्थल महाबोधि मंदिर की तर्ज पर बना है ,पर यह बात आज तक नहीं पता की जा सकी है की भारत से यह वस्तुकला चीन कैसे पहुंची ,पर ऐसा कहा जाता है की 15 वीं सदी में मिंग साम्राज्य के राजा यॉन्गले के समय भारत से आये बौद्ध भिक्षु पंडिद्दा यहाँ यह कला ले कर आये थे इसके साथ बौद्ध भिक्षु पंडिद्दा अपने साथ पांच सोने से बानी भगण बुद्ध की पांच बुद्ध की मूर्ति भी ले कर आये थे जो पांच पैगोडा के नीचे दफ़न है। हालांकि, महाबोधि मदिर की तरह के डिजाइन चीनी स्थापत्य कला में पहले से मौजूद था ,जिसे दुनहुआंग ग्रोटोएस की गुफाओं के भित्ति चित्रो में देखा जा सकता है ,जो इस मंदिर से करीब 1000 साल पुराने है।
Friday, 26 June 2015
ज़्हिहुआ बौद्ध मंदिर (बीजिंग ) ,चीन
ज़्हिहुआ बौद्ध मंदिर वांग जेन के आदेश पर 1443 में बनाया गया था जो ज़्हेंगटोंग साम्राज्य की पर्यवेक्षण संस्कार कार्यालय की अदालत में एक शक्तिशाली हिजड़ा था। यह मंदिर और आस पास के भवन करीब 2 हेक्टेयर (4.9 एकड़) क्षेत्रफल में बने है जो इसे पुराने शहर क्षेत्र में मिंग राजवंश काल से सबसे महत्वपूर्ण मूल इमारत परिसरों में से एक बनता है ,लकड़ी के ढांचे से बना मिंग साम्राज्य के समय की कुछ बची हुए इमारतों में भी यह एक है जो अपनी काला छत की टाइलस के लिए बड़ा प्रसिद्ध है
तनज़हे बौद्ध मंदिर (बीजिंग ) ,चीन
तनज़हे बौद्ध मंदिर पश्चिमी बीजिंग में एक पहाड़ी क्षेत्र में स्थित एक बौद्ध मंदिर है। एक समय में, यह देश में सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक था। जिन राजवंश (265-420) में निर्मित यह मदिर 1,700 साल पुराना है। पूरे मंदिर का क्षेत्रफल 6.8 हेक्टेयर है। और इस मंदिर में जिन, युआन, मिंग और किंग साम्राज्य के समय काम कराया गया।
तनज़हे बौद्ध मंदिर पश्चिमी बीजिंग में एक पहाड़ी क्षेत्र में स्थित एक बौद्ध मंदिर है। एक समय में, यह देश में सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक था। जिन राजवंश (265-420) में निर्मित यह मदिर 1,700 साल पुराना है। पूरे मंदिर का क्षेत्रफल 6.8 हेक्टेयर है। और इस मंदिर में जिन, युआन, मिंग और किंग साम्राज्य के समय काम कराया गया।
Thursday, 25 June 2015
गुआंग्जी बौद्ध मंदिर (बीजिंग ) ,चीन
गुआंग्जी बौद्ध मंदिर बीजिंग में मौजूद प्रतिष्ठित बौद्ध मंदिरो में एक है और यह भी चीन के बौद्ध संघ का मुख्यालय भी है।गुआंग्जी बौद्ध मंदिर को मूल रूप से जिन राजवंश (1115-1234) में बनाया गया है और अन्य राजवंशों ने लगातार इस मंदिर में काम करवाया है परन्तु ,वर्तमान मंदिर मिंग राजवंश (1368-1644) के दौरान पूरा किया गया। यह मदिर 5.766 एकड़ के एक क्षेत्र में फैला है। यहाँ मिंग राजवंश और सांग राजवंश के समय के 100,000 से अधिक बौद्ध शास्त्रों का संग्रह है जो 20 अलग अलग भाषाओं में है।
कोंडाना बौद्ध गुफाएं, मुंबई
कोंडाना गुफाएं कर्जत में स्थित हैं। ये उस प्राचीन जीवन शैली की झलक दिखाती हैं जिसका अनुपालन बौद्ध लोग करते थे। चट्टानों को काटकर बनाई गई इन प्राचीन गुफाओं में अनेक मूर्तियाँ, स्तूप, विहार और चैत्य शामिल हैं। ये गुफाएँ दूसरी शताब्दी में बनाई गई थी जो इन्हें लगभग 2000 साल पुराना बनाती है।
मूर्तियाँ और स्तूप बौद्ध वास्तुकला के प्रतिनिधी हैं जिसे उस समय अपनाया गया था। गुफाओं के अंदर की गई नक्काशी में स्त्री और पुरुष को विभिन्न नृत्य मुद्राओं को दिखाया गया है। दुर्भाग्यवश एक प्राकृतिक आपदा भूकंप ने इन गुफाओं के प्रवेश द्वार, ज़मीन और कई स्तूपों को नष्ट कर दिया है।सालाना अनेक बौद्ध लोगों की भीड़ यहाँ उमडती है। इस पवित्र मंदिर की पवित्रता बनाए रखने के लिए यहाँ धूम्रपान करना और शराब पीना मना है।
Wednesday, 24 June 2015
बिग बेल टेम्पल , बीजिंग ,चीन
चीनी विज्ञान अकादमी द्वारा किये गए एक परीक्षण के अनुसार, "योंगले " नाम के इस घण्टे की ध्वनि 120 डेसीबल तक पहुचती है और रात के अंधरे में 50 किलोमीटर की दूरी तक सुनी जा सकती है।
फ़ायुआन बौद्ध मंदिर ,बीजिंग ,चीन
फ़ायुआन बौद्ध मंदिर बीजिंग में मौजूद प्रतिष्ठित बौद्ध मंदिरो में एक है। यह मंदिर प्रथम बार तांग राजवंश के दौरान 645 में सम्राट ली शिमिन ने बनवाया था और बाद में मिंग राजवंश के ज़्हेंगटोंग अवधि (1436-1449) में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया । यह मंदिर 6,700 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ हैं। इस मंदिर में चीन के सांस्कृतिक अवशेष की एक बड़ी संख्या में मौजूदगी है जो मिंग और किंग के राजवंशों से जुड़े हुए है ,जिस में प्राचीन कांसे की मूर्तियां, पत्थर के शेर सहित,वैरोचन मुद्रा में बैठी बुद्ध की सोने का पानी चढ़ी प्रतिमा है। इस के अलावा यहा पर मिंग और किंग के राजवंशों से प्राप्त बौद्ध ग्रंथों की बड़ी संख्या भी मौजूद है।
Tuesday, 16 June 2015
हुॅचेंग बौद्ध मंदिर , अनहुइ जिला,चीन
हुॅचेंग बौद्ध मंदिर चीन के अनहुइ जिले में है। यह मंदिर जिउहुए पर्वत पर बना हुआ है। ऐसा कहा जाता है की जिन साम्राज्य के समय साल 401 में इस मंदिर को बनाया गया था। ऐसा कहा जाता है की भारत से आये बौद्ध भिक्षु हुऐदु ने यहा पर एक छोटा सा मंदिर बनवाया था और इसे बाद के समय में और बड़ा बनाया गया था।
तिअननिंग पगोडा ,बीजिंग चीन
तिअननिंग पगोडा 1120 के आसपास लियाओ राजवंश दवरा बीजिंग में बनाया गया था। यह पैगोडा तेरह मंज़िल का है और ईंट और पत्थर से बना हुआ है इस की उचाई 57.8 मीटर है यह पैगोडा इस के बनाने के समय से ठीक वैसा ही रहा पर 1976 में आये एक भूकम्प में इसे कुछ नुकसान हुआ और इस की मरम्मत करनी पड़ी थी.
पगोडा शब्द का प्रयोग नेपाल, भारत, वर्मा, इंडोनेशिया, थाइलैंड, चीन, जापान एवं अन्य पूर्वीय देशों में भगवान् बुद्ध के और बौद्ध भिक्षु के अवशेषों पर निर्मित स्तंभाकृति मंदिरों के लिये किया जाता है। इन्हें स्तूप भी कहते हैं
Tuesday, 9 June 2015
पाक ऊ गुफाएं ,लाओस
पाक ऊ गुफाएं लाओस के लुआंग प्राबांग जिले में स्थित है यह गुफाएं मेकांग नदी से उत्तर में 25 किमी दूर है यहा सड़क और पानी दोनों से पंहुचा जा सकता है. यह गुफा अपनी लघु बुद्ध की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं। हज़ारो बुद्ध की मुर्तिया जो क्षतिग्रस्त है और जिन में से ज्यादातर लकड़ी से बानी है इस गुफा के दीवार और अलमारियों पर बाहर रखी हैं।वे मुर्तिया ध्यान, शिक्षण, शांति, वर्षा सहित, और (निर्वाण) की मुद्रा में है
लाओस एक छोटा देश है जो थाईलैंड के बाजु में है ,और यह देश भारतीयों के घूमने के लिए एक सस्ता और अच्छा स्थान है क्यों की भारत के 100 रूपये यहाँ के पैसेकीप के 12722 ( बारह हजार सात सौ बाईस ) के बारबार है
वाट मई ,लाओस
वाट मई लाओस देश में स्थित एक एक बौद्ध मंदिर है जो लाओस के लुआंग प्राबांग जिले में स्थित है।यह लुआंग प्राबांग के सबसे बड़े और बड़े पैमाने में सजाये गए मंदिरो में एक है। यह मंदिर रॉयल पैलेस संग्रहालय के पास स्थित है, 18 वीं सदी में निर्मित। इस मंदिर के अन्दर पन्ना और सोने से बानी एक बड़ी बुद्ध प्रतिमा है
लाओस एक छोटा देश है जो थाईलैंड के बाजु में है ,और यह देश भारतीयों के घूमने के लिए एक सस्ता और अच्छा स्थान है क्यों की भारत के 100 रूपये यहाँ के पैसे कीपके 12722 ( बारह हजार सात सौ बाईस ) के बारबार है
Sunday, 7 June 2015
वाट फु,लाओस
यह मंदिर लाओस देश के फु काओ पर्वत में स्थित है , यह लाओस के चम्पासक प्रांत में मेकांग नदी से कुछ 6 किमी की दुरी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है की यह मंदिर का आस्तित्व 5 वीं शताब्दी से है ,पर आज जो मंदिर मौजूद है वह 11 वीं से 13 वीं सदी के बीच बनाया गया है मंदिर, एक अनोखी संरचना है,जो पहले कभी भगवान शिव को समर्पित था ,और आज भी यहा एक शिवलिंग मौजूद है जिस पर एक पहाड़ी झरना गिरता है ,लेकिन जब लाओस में बौद्ध धर्म का प्रभाव बड़ा तो यह स्थान एक थेरावदा बौद्ध धर्म का केंद्र बन गया और आज इस मदिर में भगवान शिव के मंदिर के साथ भगवान बुद्ध के भी दर्शन होते है
लाओस एक छोटा देश है जो थाईलैंड के बाजु में है ,और यह देश भारतीयों के घूमने के लिए एक सस्ता और अच्छा स्थान है क्यों की भारत के 100 रूपये यहाँ के पैसे कीप के 12722 ( बारह हजार सात सौ बाईस ) के बारबार है
Wednesday, 3 June 2015
सिखोटाबॉन्ग स्तूप लाओस
सिखोटानबॉन्ग स्तूप लाओस के थाखेक शहर में है जो खामंमुउाने प्रोविंस में है। सिखोटानबॉन्ग स्तूप को लॉन्ग साम्राज्य के राजा सुमिनथारथ ने बनवाया था इसे 5 वीं से 6 वीं सदी ईसा पूर्व में बनाया गया था बौद्ध धर्म के ऐतिहासिक दस्तावेज़ बताते है की यह बुद्ध के समय सिखोटानबॉन्ग साम्राज्य के पहले राजा ननथसाने राज किया करते थे इस के बाद के 500 सालो तक इस स्तूप का इत्तिहास गुम हो जाता है 1433 में कबोंग शहर के राज्यपाल (माउंग काओ) ने इस स्तूप के आस पास सफाई करायी और इसे सुन्दर बनाया इस के बाद 15 वीं सदी राजा सयसेतथा द्वितीय ने इसे वापस बनवाया और इसे का गौरव लौटाया इस के बाद यह स्तूप फिर अन्धेरे में को गया और 1912 में गांव के लोगो ने स्तूप के आस पास की सफाई की और इस स्तूप को फिर से बनवाया और यहा रहने के लिए भिक्षुओं को आमंत्रित करते हुए स्तूप के उत्तर की ओर वे एक विहार का निर्माण किया जिस के बाद से यह स्तूप आज अपने रूप में दिखाई देता है
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