Thursday, 5 March 2015

कश्मीर था बौद्ध गढ़
प्राचीनकाल में कश्मीर बौद्ध धर्म का पालनहार रहा है। यहां से होकर गए सिल्क रूट से ही बौद्ध धर्म के अनुयायी और भिक्षु चीन, तिब्बत और दूसरी ओर मध्य एशिया में आया-जाया करते थे। चतुर्थ बौद्ध संगीति कश्मीर में हुई थी। प्रथम बौद्ध संगीति 483 ईपू राजगृह में, द्वितीय बौद्ध संगीति वैशाली में, तृतीय बौद्ध संगीति 249 ईपू को पाटलीपुत्र में हुई थी।
चतुर्थ और अंतिम बौद्ध संगीति कुषाण सम्राट कनिष्क के शासनकाल (लगभग 120-144 ई.) में हुई। यह संगीति कश्मीर के 'कुण्डल वन' में आयोजित की गई थी। इस संगीति में 500 बौद्ध विद्वानों ने भाग लिया और त्रिपिटक का पुन: संकलन व संस्करण हुआ।
कश्मीर के बारामूला, गुलमर्ग, परिहास पोरा, हार वन, कानिसपोरा, उशकुरा में बौद्ध मठों के खंडहर आज भी मौजूद हैं। इन स्थानों का ऐतिहासिक महत्व है और विश्व में फैले बौद्ध समुदाय का इनसे लगाव है। बौद्ध मठ परिहास पोर कस्बे में है, जो श्रीनगर से मात्र 26 किलोमीटर की दूरी पर है।

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