Thursday 5 March 2015

कुशीनगर ( उत्तर प्रदेश)    
मल्ल वंश की राजधानी
अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध पर्यटन केन्द्र के रूप में विख्यात कुशीनगर उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण नगर है। इसी स्थान पर महात्मा बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था। कुशीनगर को कसिया या कुशीनारा नाम से भी जाना जाता है। गोरखपुर से महज 53 किमी. की दूरी पर स्थित यह नगर एक जमाने में मल्ल वंश की राजधानी थी। साथ ही कुशीनगर प्राचीनकाल के 16 महाजनपदों में एक था। चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान के यात्रा वृत्तातों में भी इस प्राचीन नगर का उल्लेख मिलता है। इस प्राचीन स्थान को प्रकाश में लाने के श्रेय जनरल ए कनिंघम और ए. सी. एल. कार्लाइल को जाता है जिन्होंनें 1861 में इस स्थान की खुदाई करवाई। 1904 से 1912 के बीच इस स्थान के प्राचीन महत्व को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने अनेक स्थानों पर खुदाई करवाई। प्राचीन काल के अनेक मंदिरों और मठों को यहां देखा जा सकता है।
निर्वाण स्तूप
निर्वाण स्तूप, निर्वाण चैत्‍य के नाम से भी लोकप्रिय है जो महापरिनिर्वाण मंदिर के पीछे स्थित है। दोनो मंदिर और 2.74 मीटर ऊंचा स्तूप, 15.81 मीटर की ऊंचाई वाले स्तूप के साथ निर्मित किया गया है जिसमें एक गोलाकार आधार पर प्‍लेटफॉर्म बनाया गया है। स्तूप ईंटों का बना हुआ है जिसे 1876 में जनरल ए. कनिंघम ने भारत के पहले पुरातत्‍व सर्वेक्षण द्वारा करवाई गई खुदाई में प्राप्‍त किया गया था।
इसी वर्ष में इसे ए. सी. एल. सेरेल्‍ली के द्वारा मूल राज्‍य में बहाल कर दिया गया। ऐसा माना जाता है कि इस पूरे स्‍मारक को मल्‍ल के द्वारा बनवाया गया था, इस स्‍मारक को बुद्ध का घर माना जाता है। बाद में, इस स्‍मारक को सम्राट अशोक के द्वारा विकसित किया गया था।
बुद्ध के एक शिष्‍य जिन्‍हे हरिबाला कहा जाता था, उन्‍होने मथुरा से स्‍तुप को मंगवाकर कुशीनगर के वर्तमान क्षेत्र में स्‍थापित करवाया था, ऐसा उन्‍होने गुप्‍त वंश के शासनकाल के दौरान कुमारगुप्‍त के क्षेत्र में किया था। यहां भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण के द्वारा की गई खुदाई में बुद्ध भगवान के काल की राख युक्‍त एक तांबे का बर्तन भी प्राप्‍त हुआ है। पोत पर मिला शिलालेख बुद्ध की इस जगह पर होने की प्रमाणिकता की पुष्टि करता है।
रामभर स्तूप, कुशीनगर
रामभर स्तूप को मुकुटबंधन - चैत्‍य या मुक्‍त - बंधन विहार के नाम से भी प्राचीन बौद्ध ग्रंथों में पुकारा गया है। यह स्‍तुप, निर्वाण मंदिर से दक्षिण - पूर्व की दिशा में लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्तूप , दुनिया भर के बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए एक अत्‍यधिक पूजास्‍थल है। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध की 483 ईसा पूर्व में हुई मृत्‍यु के बाद उनका इसी स्‍थान पर अंतिम संस्‍कार कर दिया गया था।
वाट थाई मंदिर, कुशीनगर
वाट थाई कुशानारा चालेरमराज मंदिर जिसे संक्षिप्‍त में वाट थाई मंदिर कहा जाता है, इसे भगवान बुद्ध के थाईलैंड के एक शिष्‍य ने उसके देश के राजा भूमिबोल अदुलयादेज की विलय की स्‍वर्ण जंयती के अवसर पर बनवाया था। इस मंदिर का उद्घाटन सोमदेज फरा यानसांगवारा ने करवाया था, जो थाईलैंड के राज्‍य के सर्वोच्‍च शासक थे।
उन्‍होने इस मंदिर का उद्घाटन 21 फरवरी, 1999 को किया था। इसका पूरा निर्माण 2001 में पूरा हुआ और तभी इसे आम जनता के लिए खोला गया। इस मंदिर के निर्माण के लिए पैसा तही बौद्धों से दान में इक्‍ट्ठा किया गया। इस मंदिर का मूल रूप एक वन मठ के रूप में था, जिसके आसपास कई पेड़- पौधे, झाडि़यां और हजारों किस्‍म के वृक्ष लगे हुए है।
यह मंदिर थाई - बौद्ध वास्‍तुकला शैली में बना हुआ है जो लगभग 10 एकड़ के भारी परिसर में फैला हुआ है। मंदिर के अलावा, परिसर में मठ, गार्डन, स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र, स्‍कूल और एक पुस्‍तकालय भी स्थित है। यह कुशीनगर के सबसे सुंदर गंतव्‍य स्‍थलों में से एक है। इस मंदिर में हर साल हजारों थाईलैंड के यात्री दर्शन करने आते है। इसकी विशाल संरचना शहर के सभी हिस्‍सों से देखी जा सकती है।
चाइजीन मंदिर, कुशीनगर
चाइनीज मंदिर को लिन सुन चाइनीज मंदिर भी कहा जाता है जो कुशीनगर में निर्मित सबसे आधुनिक मंदिरों में से एक है। यह एक पहला बौद्ध स्‍मारक है जो लोगों का ध्‍यान बरबरस अपनी ओर आकर्षित करता है और इसे शहर के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है।
यह मंदिर चीनी और वियतनाम वास्‍तुशिल्‍प डिजायन के मिश्रण से बनी एक रंगबिरंगी और अद्वि‍तीय संरचना है जो शहर में स्थित अन्‍य बौद्ध मंदिरों और स्‍मारकों से अलग और उल्‍लेखनीय दिखता है। इस मंदिर में रखी बुद्ध की मूर्ति चीनी शैली में बनाई गइ है। यह प्रतिमा ही पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का एक बड़ा केंद्र है।
मुख्‍य मंदिर और बुद्ध भगवान की मूर्ति के अलावा, इस मंदिर का परिसर काफी बड़ा है और यहां कई जगहों व शहरों के बौद्ध मंदिरों के मॉडल का प्रदर्शन भी किया गया है जिनमें उत्‍तर भारत के राजगीर, बिहार का बोधगया, नेपाल का लुम्बिनी, उत्‍तर प्रदेश के सारावती और निर्वाण मंदिर और कुशीनगर में स्‍तुप शामिल हैं।
इस मंदिर को वियतनाम के लिन - सन बौद्धों के द्वारा प्रबंधित किया जाता है, मंदिर परिसर में एक ध्‍यान कक्ष, धर्म हॉल, विहार और एक स्‍कूल भी स्थित है।
उत्‍तर प्रदेश के कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण मंदिर, पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर में भगवान बुद्ध की 6.1 मीटर ऊंची मूर्ति लेटी हुई मुद्रा में रखी है। यह मूर्ति उस काल को दर्शाती है जब 80 वर्ष की आयु में भगवान बुद्ध ने अपने पार्थिव शरीर को छोड़ दिया था और सदा - सदा के लिए जन्‍म और मृत्‍यु के बंधन से मुक्‍त हो गए थे, यानि उन्‍हे मोक्ष की प्राप्ति हो गई थी।
महापरिनिर्वाण मंदिर, कुशीनगर
भगवान बुद्ध की इस मूर्ति को लाल बलुआ पत्‍थर के एक ही टुकडें से बनाया गया था। इस मूर्ति में भगवान को पश्चिम दिशा की तरफ देखते हुए दर्शाया गया है, यह मुद्रा, महापरिनिर्वाण के लिए सही आसन माना जाता है। इस मूर्ति को एक बड़े पत्‍थर वाले प्‍लेटफॉर्म के सपोर्ट से कोनों पर पत्‍थरों के खंभे पर स्‍थापित किया गया है।
इस प्‍लेटफॉर्म या मंच पर, भगवान बुद्ध के एक शिष्‍य हरिबाला ने 5 वीं सदी में एक शिलालेख बनवाया था। मंदिर और विहार दोनों ही एक शिष्‍य की तरफ से गुरू को दिया जाने वाला उपहार था। इस मंदिर में हर साल, पूरी दुनिया से हजारों पर्यटक और तीर्थयात्री भारी संख्‍या में आते है।
माथाकौर मंदिर
यह मंदिर निर्वाण स्तूप से लगभग 400 गज की दूरी पर है। भूमि स्पर्श मुद्रा में महात्मा बुद्ध की प्रतिमा यहां से प्राप्त हुई है। यह प्रतिमा बोधिवृक्ष के नीचे मिली है। इसके तल में खुदे अभिलेख से पता चलता है कि इस मूर्ति का संबंध 10-11वीं शताब्दी से है। इस मंदिर के साथ ही खुदाई से एक मठ के अवशेष भी मिले हैं।
आधुनिक स्तूप
कुशीनगर में अनेक बौद्ध देशों ने आधुनिक स्तूपों और मठों का निर्माण करवाया है। चीन द्वारा बनवाए गए चीन मंदिर में महात्मा बुद्ध की सुंदर प्रतिमा स्थापित है। इसके अलावा जापानी मंदिर में अष्ट धातु से बनी महात्मा बुद्ध की आकर्षक प्रतिमा देखी जा सकती है। इस प्रतिमा को जापान से लाया गया था।
बौद्ध संग्रहालय
कुशीनगर में खुदाई से प्राप्त अनेक अनमोल वस्तुओं को बौद्ध संग्रहालय में संरक्षित किया गया है। यह संग्रहालय इंडो-जापान-श्रीलंकन बौद्ध केन्द्र के निकट स्थित है। आसपास की खुदाई से प्राप्त अनेक सुंदर मूर्तियों को इस संग्रहालय में देखा जा सकता है। यह संग्रहालय सोमवार के अलावा प्रतिदिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।
देवरिया यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो यहां से 35 किमी. की दूरी पर है। कुशीनगर से 53 किमी. दूर स्थित गोरखपुर यहां का प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जो देश के अनेक प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। वाराणसी यहां का निकटतम प्रमुख एयरपोर्ट है।




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