सतधारा स्तूप
साँची से 17 किलोमीटर की दूरी पर हलाली नदी पर सतधारा स्तूप स्थित है। यहाँ पर सात स्तूप हैं, जिसमें सारिपुत्र तथा मौदत्रलयायाना नामक भगवान बुद्ध के शिष्यों के अवशेष पाये गये थे। सोनारी गाँव साँची से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर छोटी पहाड़ियों पर बौद्ध स्तूप स्थापित हैं। विदिशा से 17 किलोमीटर की दूरी पर अंधेर गाँव है जहाँ पर तीन बौद्ध स्तूप है, जिनमें वाकीपुत्र, मोगालयापुत्र तथा हरिथीपुत्र के अवशेष पाये गये हैं। यहाँ चारों ओर जंगल की हरियाली छाई थी. बाईं तरफ काफ़ी गहराई में “बेस” नदी बह रही है चारों तरफ कई नक्काशी युक्त शिलाखंड जो स्तूप के ही भाग रहे होंगे, बिखरे पड़े है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई) अधिकारियों के अनुसार यहाँ बौद्ध हीनयान संप्रदाय के स्मारक तथा पुरा अवशेष 28 हेक्टेर में फैले हुए हैं. मुख्य स्तूप,के अलावा 29 स्तूप और 2 विहार भी हैं. मुख्य स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के काल (3 री सदी ईसा पूर्व) में बड़े ईंटों से बनाया गया था. 400 वर्ष पश्चात ऊपर पत्थरों से मढ़ा गया था जो अब नहीं रहा. खुदाई में मिट्टी के पात्रों के टुकड़े मिले हैं जिनको 500 – 200 वर्ष ईसा पूर्व का माना गया है. बौद्ध शैल चित्र भी मिले हैं जिन्हें चौथी से सातवीं सदी के बीच का समझा गया है
साँची से 17 किलोमीटर की दूरी पर हलाली नदी पर सतधारा स्तूप स्थित है। यहाँ पर सात स्तूप हैं, जिसमें सारिपुत्र तथा मौदत्रलयायाना नामक भगवान बुद्ध के शिष्यों के अवशेष पाये गये थे। सोनारी गाँव साँची से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर छोटी पहाड़ियों पर बौद्ध स्तूप स्थापित हैं। विदिशा से 17 किलोमीटर की दूरी पर अंधेर गाँव है जहाँ पर तीन बौद्ध स्तूप है, जिनमें वाकीपुत्र, मोगालयापुत्र तथा हरिथीपुत्र के अवशेष पाये गये हैं। यहाँ चारों ओर जंगल की हरियाली छाई थी. बाईं तरफ काफ़ी गहराई में “बेस” नदी बह रही है चारों तरफ कई नक्काशी युक्त शिलाखंड जो स्तूप के ही भाग रहे होंगे, बिखरे पड़े है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई) अधिकारियों के अनुसार यहाँ बौद्ध हीनयान संप्रदाय के स्मारक तथा पुरा अवशेष 28 हेक्टेर में फैले हुए हैं. मुख्य स्तूप,के अलावा 29 स्तूप और 2 विहार भी हैं. मुख्य स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के काल (3 री सदी ईसा पूर्व) में बड़े ईंटों से बनाया गया था. 400 वर्ष पश्चात ऊपर पत्थरों से मढ़ा गया था जो अब नहीं रहा. खुदाई में मिट्टी के पात्रों के टुकड़े मिले हैं जिनको 500 – 200 वर्ष ईसा पूर्व का माना गया है. बौद्ध शैल चित्र भी मिले हैं जिन्हें चौथी से सातवीं सदी के बीच का समझा गया है
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