Friday, 6 March 2015

केसरिया का बौद्ध स्तूप
केसरिया वह स्थान हैं जहां कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ ने कपिलवस्तु छोड़ने के बाद राजसी वस्त्र त्यागकर यहां के संत अनार कलाम से दीक्षा लेकर ज्ञान की खोज में निकल पड़े थे, इसके बाद उनका नाम महात्मा बुद्ध पड़ गया। यह स्थान बिहार के मोतिहारी ( पूर्वी चंपारण ) से 35 किलोमीटर दूर है यह दुनिया का सबसे उँचा बौद्ध स्तूप है करीब 104 फ़ीट इस के बाद जावा इंडोनेशिया में मौजूद बोराबुदूर का स्तूप है जो 103 फ़ीट है साथ ही जब भगवान बुद्ध को अपने महापरिनिर्वाण का आभास हो गया तो वे वैशाली से कुशीनगर की ओर की ओर चल पड़े। लौटते समय उन्होंने इसी स्थल पर अपने प्रिय शिष्य आनंद को भिक्षा पात्र सौंपते हुए वापस लौटाया था और कुशीनगर की ओर चल पड़े थे। इसके अलावा केसरिया राजा बेन की राजधानी रही है, जिसकी चर्चा पुराणों में मिलती है। केसरिया में प्रतिदिन किसी ने किसी देश के पर्यटक पहुंचते रहते हैं। सबसे ज्यादा चीन, जापान, थाईलैंड, कोरिया, मलेशिया, श्रीलंका, कंबोडिया, दक्षिण अफ्रिकी देशों के अलावा देश के विभिन्न भागों के पर्यटक यहां आते हैं। इसके अलावा चकिया प्रखंड के सागर गांव में बौद्ध स्तूप के अलावा बावन बिगहा तालाब भी है जहां भगवान बुद्ध ने स्नान किया था।

उत्कृष्ट वास्तुकला के नमूना विश्व के सबसे प्राचीन व ऊंचे बौद्ध स्तूप की खुदाई अभी भी एएसआई ने अधर में लटका रखी है। वर्ष 1996 से इसकी खुदाई ठप है।और बिहार सरकार ने इसे अपने पर्यटन मानचित्र पर भी जगह नहीं दी है। बकि केसरिया आनेवाले पर्यटकों के कारण केंद्र व राज्य सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए की विदेशी मुद्रा की आय हो रही है।राज्य सरकार की बेवसाइट हो अन्य कोई पर्यटन से जुड़ा दस्तावेज कहीं भी केसरिया के बौद्ध स्तूप की चर्चा नहीं मिलती। एक जगह मोतिहारी को भगवान बुद्ध से जुड़ा लिखा गया है जबकि मोतिहारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मस्थली रही है। बापू से जुड़े कई स्थल इस जिले में हैं, लेकिन इसे भी पर्यटन मानचित्र में जगह नहीं मिली है।

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