Friday, 6 March 2015

डमरू ,छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ राजधानी रायपुर से से 96 किलोमीटर दूर बलौदाबाजार के डमरू में खुदाई के दौरान पहली बार बौद्ध धर्म से जुड़े एक मुख्य स्तूप और 14 अन्य मनौती स्तूप (वोटिव स्तूप) मिले हैं। इन वृत्ताकार संरचनाओं के बारे में पुरातत्ववेत्ताओं का दावा है ये अवशेष सबसे बड़े प्राचीन बौद्ध स्थल साबित हो सकते हैं।
डमरू में मिले 14 मनौती स्तूपों के व्यास 1.50 मीटर हैं, जबकि प्रमुख बौद्ध स्तूप का व्यास 9.50 मीटर। इनमें छह स्तूप आपस में मिले हुए हैं। इनके बीच आने-जाने का रास्ता भी बना हुआ है।
पुरातत्वविद् व उत्खननकर्ता डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का मानना है कि ये स्तूप पहली से लेकर छठवी शताब्दी के कालखंडों के यानी 1500 से 2000 वर्ष पुराने हैं। इन कालखंडों में कुषाण, सातवाहन, गुप्त, सोमवंशीय और परवर्ती गुप्त आदि काल के राजाओं का शासन था।

ये हैं मनौती स्तूप
मनौती स्तूप बौद्धों के लिए आस्था का केंद्र होते थे, जहां वे इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए मन्नतें मांगते थे। ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी के चीनी यात्री व्हेनसांग ने दक्षिण कोसल की राजधानी का जिक्र करते हुए लिखा है कि वहां सौ संघाराम थे, जहां भगवान तथागत बुद्ध के आए थे। वहां का हिंदू राजा सभी धर्मो का आदर करता है।
नए शासकों का भी खुलासा
खुदाई में ब्राम्ही लिपि में मिले उत्कीर्ण मृण-मुद्रांक से नए शासकों के नाम सामने आए हैं। इनमें महराज कुमार श्रीधरस्य, महाराज, रूद्रस्य, महाराज श्रीदरस्य, महाराज कुमार श्रीमट्टरस्य, और सदामा श्रीदामस्य शामिल हैं। पुरातत्वविद् इन शासकों के नाम और मिले बौद्ध स्तूप के बीच परस्पर संबंध पर भी विश्लेषण कर रहे हैं।

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