Thursday 5 March 2015

अमरावती ,आन्ध्र प्रदेश

अमरावती आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले में कृष्णा नदी के दाहिने तट पर स्थित एक प्राचीन नगर है यह नगर सातवाहन राजाओं के शासनकाल में हिन्दू और बौद्ध संस्कृति का केन्द्र था।
धम्मपद अट्ठकथा में उल्लेख है कि बोधिसत्व अपने किसी पूर्व जन्म में सुमेध नामक एक ब्राह्मण कुमार के रूप में इस नगर में पैदा हुए थे। अशोक की मृत्यु के बाद से तक़रीबन चार शताब्दियों तक दक्षिण भारत में सातवाहनों का शासन रहा। आंध्रवंशीय सातवाहन नरेश शातकर्णी ने लगभग 180 ई.पू. अमरावती को अपनी राजधानी बनाया। सातवाहन नरेश ब्राह्मण होते हुए भी महायान मत के पोषक थे। और उन्हीं के शासनकाल में अमरावती का प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप बना, जो तेरहवीं शताब्दी तक बौद्ध यात्रियों के आकर्षण का केन्द्र बना रहा। मूल स्तूप घण्टाकार था। स्तूप की ऊँचाई सौ फुट थी। आधार से शिखर तक तक्षित शिला-पट्ट लगाये गये थे। इस प्रकार का अलंकरण अन्यत्र नहीं मिलता। चीनी यात्री युवानच्वांग ने उस स्थान के बारे लिखा था कि बैक्ट्रिया के समस्त भवनों की शान-शौक़त इसमें निहित थी। बुद्ध के जीवन की कथाओं के दृश्य उन पर उत्कीर्ण थे।
अमरावती स्थित महान बौद्ध स्तूप या महाचैत्य आंध्र प्रदेश का सबसे बड़ा स्तूप था जिसका व्यास संभवत: 50 मीटर और ऊंचाई 27 मीटर थी। इसकी ईंटों से बनी एक गोलाकार वेदिका या ड्रम है जिसकी चारों दिशाओं में निकले हुए 7.20 x 2.10 मीटर माप के आयताकार अयक चबूतरे हैं। प्रत्येक चबूतरे पर पांच अयक स्तंभ प्रतीकात्मक रूप से खड़े रहे होंगे जो महात्मा बुद्ध के जीवन की पांच घटनाओं अर्थात् जन्म, महाप्रयाण, ज्ञान, प्रथम उपदेश और अंतिम निर्वाण के द्योतक हैं। ड्रम और अयक चबूतरे मूर्तियों के फलकों से ढंके हुए थे। सभी चार अयक चबूतरों से सात क्रिस्टल से और एक हाथीदांत से बनी स्मृति चिह्न मंजूषाएं प्राप्त हई हैं जिनमें से कुछ में हडि्डयों के टुकड़े, मोती, बहुमूल्य पत्थर और सोने के बने फूल रखे हुए थे। यह शरीरक प्रकार का स्तूप है और इसलिए इसका विशेष महत्व है।
इस गोलाकार ड्रम पर एक अंड अथवा गोलार्ध गुम्बद खड़ा है। नक्काशी युक्त लंबे गुम्बद की पट्टियों ने गुम्बद के ऊर्ध्वाधर भाग को घेरा हुआ है जिसके ऊपर गचकारी सजावट की गई है। बुद्ध के जीवन की घटनाएं, जातक कथाएं, पशुओं की आकृतियाँ, फूलों की सजावट इन मूर्तियों के विषय हैं जिन्‍हें स्थानीय रूप से उपलब्ध हल्के हरे चूनापत्थर पर उकेरा गया है। इस ड्रम के शिखर पर हर्मिका या बक्से जैसी संरचना बनी है जिस पर एक छत्र या छतरी खड़ी है। प्लिंथ के अवशेष को छोड़कर अब सभी कुछ लुप्त है।
स्तूप के ड्रम पर 4 मीटर चौड़ा एक सुव्यवस्थित प्रदक्षिणापथ है जो कुड्डपाह स्लैब से बना है। इसके बाह्य सिरे पर पत्थर से रेलिंग बनाकर इसकी सुरक्षा की गई है जो चारों ओर से प्रवेश द्वारों से बिंधे हुए हैं और बाहर की ओर निकले हुए हैं। इस रेलिंग में सीधे खड़े स्तंभ लगे हैं। सीधे खडे स्तंभों के प्रत्येक जोड़े को जोड़ते हुए तीन सूचियां या छड़े लगायी गई हैं और इन स्तंभों के शीर्ष पर उष्णिष बनी हुई है। प्रवेश द्वार के दोनों ओर स्तंभों पर पहरा देते हुए बैठे हुए शेर की आकृति बनी है। बाद के काल की पत्थर से बनी रेलिंग अत्यधिक अलंकृत थी।
महाचैत्य का इतिहास मोटे तौर पर एक हजार सात सौ वर्ष (लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 14वीं शताब्दी ईसवी सन् तक) के काल में फैला हुआ है। इस महास्तूप की नींव अवश्‍य ही सम्राट अशोक के दूत, महादेव भिक्षु द्वारा रखी गई होगी जिसे महिषमण्डल में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार के लिए नियुक्त किया गया था। ऐसा विश्वास है कि इसका पहला निर्माण सादगीपूर्ण था।
इसका सजावटी नवीनीकरण बाद में अगली सात शताब्दियों के दौरान किया गया। इस स्तूप को सात शताब्दियों से वशिष्टी पुत्र पुलुमवी, शिवस्‍कंद सातकर्णी, गौतमीपुत्र यज्ञ श्री सातकर्णी, जैसे राजाओं, आचार्य नागार्जुन जैसे बौद्ध भिक्षुओं, नंदा जैसी भिक्षुणियों और उत्तरा, खालता जैसे आम अनुयायियों आदि का संरक्षण प्राप्त था। साक्ष्यों से पता चलता है कि इस स्तूप की पूजा की जाती थी। इसने सातवाहन, इक्ष्वाकु, चालुक्य, पल्लव, सालंकयान, विष्णुकंदिन, काकतिया और कोटा राजाओं के शासन काल के दौरान लोगों को आकृष्‍ट किया। चीनी यात्री युवान च्वांग और तिब्बती इतिहासकार, तारानाथ ने अपने लेखों में बौद्ध धर्म के इस प्राचीन स्थल की महानता का बढ़ा-चढ़ा कर उल्लेख किया है। त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण के कर्नल, कोलिन मैकेंजी ने सन् 1797 में स्तूप के अवशेषों की खोज की। बाद में श्री बर्गीस, श्री टी.एन. रामचन्द्रन, श्री रिया, डॉ आर. सुब्रह्मण्यम, डा. के. कृष्णामूर्ति और डॉ आई. कार्तिकेय शर्मा जैसे पुरातत्वविदों ने इस पर कार्य किया।
इस स्‍तूप से प्राप्‍त मूर्तिकला संपदा में से अच्‍छी संख्‍या में मूर्तियां ब्रिटिश म्यूजियम, लंदन, मूसी गूमेट, जर्मनी; राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली; इंडियन म्यूजियम, कोलकाता; गर्वमेंट म्यूजियम, मद्रास की दीर्घाओं में प्रदर्शित की गयी हैं। शेष को स्थल संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है।
महास्तूप-अमरावती आन्‍ध्र प्रदेश का सबसे बड़ा स्‍तूप माना जाने वाला यह महाचैत्‍य मौर्य शासन काल (तीसरी शताब्‍दी ई॰पूर्व) में बनवाया गया था जिसे 14वीं शताब्‍दी ई0 तक परवर्ती राजवंशों का सतत् आश्रय प्राप्‍त होता रहा। इस शारीरक स्तूप पर उत्कीर्ण मूर्तिकला अपने आप में अलग तरह की है जो 'अमरावती स्कूल ऑफ आर्ट' के नाम से लोकप्रिय है। यहां से प्राप्‍त स्मृति-चिन्ह मंजूषाएं, इससे जुड़ी पवित्रता और श्रद्धा की साक्षी हैं। इस स्तूप की अधिकांश मूर्तियों ने भारत, ब्रिटेन और जर्मनी के जाने-माने संग्रहालयों को समृद्ध किया है।
यहाँ अशोक स्तंभ और अमरावती संग्रहालय भी जरूर देखे
विजयवाड़ा का हवाई अड्डा अमरावती तक पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा है।
गुंटूर और विजयवाड़ा के रेलवे स्टेशनअमरावती तक पहुंचने के लिए सबसे अच्छे है यहा से अमरावती तक पहुंचने के लिए बस भी आसानी उपलब्ध है

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