तेल्हाड़ा बौद्ध विश्वविद्यालय
बिहार में नालंदा बौद्ध विश्वविद्यालय और विक्रमशिला बौद्ध विश्वविद्यालय के बाद एक और प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं। नालंदा जिले के एकंगरसराय के तेल्हाड़ा पुरातात्विक स्थल में महाविहार के रूप में एक और प्राचीन विश्वविद्यालय का पता चला है। यहां के अवशेष नालंदा विश्वविद्यालय जैसे ही लगते हैं।
उत्खनन में मिले विश्वविद्यालय अवशेष बालादित्य के 45 फुट ऊंचे टीले की खोदाई में मिले हैं। उन्होंने बताया कि यहां तिलाधक (तेल्याढक) महाविहार के रूप में एक प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं, जो करीब एक किलोमीटर में फैला है। नालंदा और विक्रमशिला के बाद बिहार में यह तीसरे प्राचीन विश्वविद्यालय का पता चला है।
इतिहासकारों के मुताबिक, चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी के अपने यात्रा वृतांत में तेल्याढक का जिक्र किया था, जिसमें करीब सात बौद्ध मठों और करीब 1000 बौद्ध भिक्षुओं के अध्ययन की जानकारी मिलती है। तिलाधक विश्वविद्यालय में तीन मंदिरों का जिक्र है। इस विश्वविद्यालय में 1000 बौद्ध भिक्षु बैठकर मंत्रोच्चार और पूजा किया करते थे। खोदाई में बड़ा स्थान भी पाया गया है, जो इस बात का प्रमाण है कि इस पर बैठकर भिक्षु प्रार्थना किया करते थे। नालंदा विश्वविद्यालय की तरह यहां भी शिक्षकों के रहने के लिए छोटे-छोटे आवास प्राप्त हुए हैं। गौरतलब है, बिहार सरकार ने तेल्हाड़ा को पुरातात्विक स्थल घोषित कर रखा है और इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की कवायद चल रही है। जानकारों का कहना है कि इस स्थल पर अभी चल रही खोदाई में अभी और प्राचीन अवशेष मिलने की संभावना है। उनका कहना है कि आदंतपुरी और घोसरांवा में खोदाई होने से और भी विश्वविद्यालय के अवशेष मिल सकेंगे।
इस विहार का उल्लेख 7वीं ई॰ प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन-त्सांग ने ‘तिलस-अकिय’ के रूप में किया है। इस स्थल से प्राप्त कतिपय अभिलेखों में ‘तिलाधक’ अथवा ‘तिलाधक्य’ के अंकन से इसकी वास्तविक पहचान की सम्पुष्टि होती है। चीनी यात्री ने इस स्थल पर कम-से-कम सात महत्वपूर्ण विहारों के अवस्थित होने की चर्चा की है। इस यात्री के अनुसार विश्वविद्यालय परिसर के अंतर्गत एक हजार भिक्षुओं के अध्ययनरत होने की सूचना मिलती हैं, जो बौद्ध धर्म के महायान शाख से संबद्ध थे। इस स्थल पर निर्मित महाविहार की संरचना भव्य थी, जहां तीन मंजिले मंडप के अतिरिक्त अनेक मीनार, तोरणद्धार और घंटियों से युक्त छतरियां हुआ करती थीं।
बिहार सरकार द्वारा उत्खनन में तेल्हाडत्रा में गुप्त काल (4थी-5वीं सदी) से पाल काल (8वीं-12वीं सदी) के दौरान ‘बौद्ध विहार’ की संरचनाएं कई स्तरों में प्राप्त हुई है जिनमें साधना कक्ष, बारामदा, आंगन, कुएं और नाले के साक्ष्य सामने आए हैं। इनके अतिरिक्ति विहार के मध्य में तीन बौद्ध मंदिर के अवषेष भी प्रकाश में आएं हैं।
माना यही जा रहा है जब बख्तियार ख़िलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को तबाह किया तभी उस ने तेल्हाड़ा बौद्ध विश्वविद्यालय को भी तबाह कर दिया था।
पुरातात्विक खुदाई से इस स्थल से बड़ी संख्या में बौद्ध प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं, जिनमें धातु-प्रतिमाओं का सौन्दर्य और शिल्पीय अभिव्यक्ति अप्रतिम है। स्थल से कई पुराभिलेखीय अवशेष भी प्राप्त हुएं हैं, जो प्रस्तर खंडों के अतिरिक्त प्रस्तर प्रतिमाओं और पक्की मिट्टी के सीलोकं पर उकेरे गए हैं। तेल्हाड़ा से प्राप्त सील और सीलिंग जिनमें अधिकांश ‘टेराकोटा’ में निर्मित हैं की संख्या अत्यंत प्रभावशाली है। एक सील के ऊपर कठिन तप में लीन बुद्ध का अस्थिकाय अंकन अत्यंत आकर्षक और दुर्लभ है जो गांधार क्षेत्र से प्राप्त एक असाधारण प्रस्तर मूर्ती से प्रेरित दिखता है।
बिहार में नालंदा बौद्ध विश्वविद्यालय और विक्रमशिला बौद्ध विश्वविद्यालय के बाद एक और प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं। नालंदा जिले के एकंगरसराय के तेल्हाड़ा पुरातात्विक स्थल में महाविहार के रूप में एक और प्राचीन विश्वविद्यालय का पता चला है। यहां के अवशेष नालंदा विश्वविद्यालय जैसे ही लगते हैं।
उत्खनन में मिले विश्वविद्यालय अवशेष बालादित्य के 45 फुट ऊंचे टीले की खोदाई में मिले हैं। उन्होंने बताया कि यहां तिलाधक (तेल्याढक) महाविहार के रूप में एक प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं, जो करीब एक किलोमीटर में फैला है। नालंदा और विक्रमशिला के बाद बिहार में यह तीसरे प्राचीन विश्वविद्यालय का पता चला है।
इतिहासकारों के मुताबिक, चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी के अपने यात्रा वृतांत में तेल्याढक का जिक्र किया था, जिसमें करीब सात बौद्ध मठों और करीब 1000 बौद्ध भिक्षुओं के अध्ययन की जानकारी मिलती है। तिलाधक विश्वविद्यालय में तीन मंदिरों का जिक्र है। इस विश्वविद्यालय में 1000 बौद्ध भिक्षु बैठकर मंत्रोच्चार और पूजा किया करते थे। खोदाई में बड़ा स्थान भी पाया गया है, जो इस बात का प्रमाण है कि इस पर बैठकर भिक्षु प्रार्थना किया करते थे। नालंदा विश्वविद्यालय की तरह यहां भी शिक्षकों के रहने के लिए छोटे-छोटे आवास प्राप्त हुए हैं। गौरतलब है, बिहार सरकार ने तेल्हाड़ा को पुरातात्विक स्थल घोषित कर रखा है और इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की कवायद चल रही है। जानकारों का कहना है कि इस स्थल पर अभी चल रही खोदाई में अभी और प्राचीन अवशेष मिलने की संभावना है। उनका कहना है कि आदंतपुरी और घोसरांवा में खोदाई होने से और भी विश्वविद्यालय के अवशेष मिल सकेंगे।
इस विहार का उल्लेख 7वीं ई॰ प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन-त्सांग ने ‘तिलस-अकिय’ के रूप में किया है। इस स्थल से प्राप्त कतिपय अभिलेखों में ‘तिलाधक’ अथवा ‘तिलाधक्य’ के अंकन से इसकी वास्तविक पहचान की सम्पुष्टि होती है। चीनी यात्री ने इस स्थल पर कम-से-कम सात महत्वपूर्ण विहारों के अवस्थित होने की चर्चा की है। इस यात्री के अनुसार विश्वविद्यालय परिसर के अंतर्गत एक हजार भिक्षुओं के अध्ययनरत होने की सूचना मिलती हैं, जो बौद्ध धर्म के महायान शाख से संबद्ध थे। इस स्थल पर निर्मित महाविहार की संरचना भव्य थी, जहां तीन मंजिले मंडप के अतिरिक्त अनेक मीनार, तोरणद्धार और घंटियों से युक्त छतरियां हुआ करती थीं।
बिहार सरकार द्वारा उत्खनन में तेल्हाडत्रा में गुप्त काल (4थी-5वीं सदी) से पाल काल (8वीं-12वीं सदी) के दौरान ‘बौद्ध विहार’ की संरचनाएं कई स्तरों में प्राप्त हुई है जिनमें साधना कक्ष, बारामदा, आंगन, कुएं और नाले के साक्ष्य सामने आए हैं। इनके अतिरिक्ति विहार के मध्य में तीन बौद्ध मंदिर के अवषेष भी प्रकाश में आएं हैं।
माना यही जा रहा है जब बख्तियार ख़िलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को तबाह किया तभी उस ने तेल्हाड़ा बौद्ध विश्वविद्यालय को भी तबाह कर दिया था।
पुरातात्विक खुदाई से इस स्थल से बड़ी संख्या में बौद्ध प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं, जिनमें धातु-प्रतिमाओं का सौन्दर्य और शिल्पीय अभिव्यक्ति अप्रतिम है। स्थल से कई पुराभिलेखीय अवशेष भी प्राप्त हुएं हैं, जो प्रस्तर खंडों के अतिरिक्त प्रस्तर प्रतिमाओं और पक्की मिट्टी के सीलोकं पर उकेरे गए हैं। तेल्हाड़ा से प्राप्त सील और सीलिंग जिनमें अधिकांश ‘टेराकोटा’ में निर्मित हैं की संख्या अत्यंत प्रभावशाली है। एक सील के ऊपर कठिन तप में लीन बुद्ध का अस्थिकाय अंकन अत्यंत आकर्षक और दुर्लभ है जो गांधार क्षेत्र से प्राप्त एक असाधारण प्रस्तर मूर्ती से प्रेरित दिखता है।
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